खुदरा ऋण का विस्तार अच्छा है, लेकिन ऋण पर अधिक निर्भरता नुकसानदायक

समय के साथ बड़ी संख्या में व्यक्तियों के कर्ज में वृद्धि भी घरेलू बचत को प्रभावित करती है, जो अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी बात नहीं है.

digital economy: govt should fix accountability

ऋण लेने की प्रथा मुद्रा के आविष्कार से बहुत पहले मौजूद थी. यह केवल मुद्रा के लोकप्रिय होने से सुगम हो गया था. लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर, प्लास्टिक मनी के आविष्कार के साथ कर्ज लेना काफी अधिक आसान हो गया. कर्ज मदद कर सकता है. महामारी के दौरान भारत में घरेलू कर्ज में वृद्धि और क्रेडिट कार्ड खर्च में उछाल इसका पर्याप्त सबूत हैं. लेकिन महामारी और संकट से परे, देश में क्रेडिट संस्कृति तेजी से बढ़ रही है. बैंकों और विभिन्न संस्थानों ने खुदरा ऋण को आगे ले जाने में अहम भूमिका निभाई है.

क्रेडिट कार्ड और बाय नाउ पे लेटर मॉडल की आक्रामक मार्केटिंग के माध्यम से भी युवाओं में क्रेडिट-संचालित व्यय का चलन तेजी से बढ़ रहा है, जिसे वस्तुओं और सेवाओं के विभिन्न क्षेत्रों द्वारा तेजी से अपनाया जा रहा है. इसका सबूत आपको इस आंकड़े से मिल सकता है कि जुलाई में औसत क्रेडिट कार्ड लेनदेन 11,830 रुपये तक पहुंच गया, जो अप्रैल 2020 में 3,665 रुपये से 223% अधिक है.

सिक्के के हमेशा दो पहलू होते हैं. खुदरा ऋण के विस्तार के सिक्के का पहला पहलू यह है कि इससे मांग में वृद्धि हो रही है, जो अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मदद करेगा. वहीं, दूसरा पहलू यह है कि एक अति-लीवरेज स्थिति में जाना अच्छा नहीं है. उपभोग करने के लिए ऋण पर अधिक निर्भरता व्यक्तिगत वित्त के मोर्चे पर परेशानी का कारण बन सकती है. क्रेडिट कार्ड से सब कुछ खरीदना एक ऐसी संस्कृति है, जिसे हम पश्चिम से सीख रहे हैं, विशेष रूप से अमेरिका से, जहां कर्ज चुकाने के लिए नौकरी पाना अपेक्षाकृत आसान है.

इसके अलावा, समय के साथ बड़ी संख्या में व्यक्तियों के कर्ज में वृद्धि भी घरेलू बचत को प्रभावित करती है, जो अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी बात नहीं है. एक देश जिसकी बचत दर कम है, वह देश के भीतर से अपनी निवेश आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता है और उसे अन्य देशों या एजेंसियों से उधार पर निर्भर रहना पड़ता है.

Published - September 23, 2021, 09:27 IST