अर्थव्यवस्था की स्थिति पर रिजर्व बैंक (RBI-Reserve Bank of India) ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि टीकाकरण अभियान की गति और कोविड-19 मृत्यु दर में कमी के साथ, भारत के लिए सतत और समावेशी विकास के लिए नए पथ पर चलने का सही समय आ गया है. आरबीआई ने अर्थव्यवस्था की स्थिति पर एक लेख में यह बात कही है. ईटी की खबर के अनुसार आरबीआई (RBI) के उप-गवर्नर (Deputy Governor) एम डी पात्रा के नेतृत्व में आरबीआई के अधिकारियों की एक टीम द्वारा बनाए गए रिपोर्ट/लेख में कहा गया है कि कृषि उत्पादन वृद्धि, विनिर्माण और सेवाओं के पुनरुद्धार द्वारा संचालित कुल आपूर्ति की स्थिति में सुधार हो रहा है, जबकि घरेलू मांग में मजबूती आ रही है.
वैश्विक जोखिमों के बीच ऊपर उठ रही है भारतीय अर्थव्यवस्था
वैश्विक जोखिमों के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) ऊपर उठ रही है. टीकाकरण में तेजी, नए मामलों और मृत्यु दर में कमी से आत्मविश्वास लौट रहा है.
उम्मीद से कम खाद्य कीमतों ने मुद्रास्फीति को रिजर्व बैंक के लक्ष्य के करीब लाने में मदद की है. रिपोर्ट कहा गया है कि भारत को सतत और समावेशी विकास (Overall development) के एक नए पथ पर स्थापित करने का अब सही समय आ गया है.
अक्टूबर का यह महीना चीजों की समाप्ति और शुरुआत, स्थायित्व और परिवर्तन का एक प्रतीक है. त्योहार सीजन से पहले रोजगार की संभावनाएं बढ़ रही हैं. जिसमें एंट्री लेवल हायरिंग सबसे तेज गति से बढ़ रही है.
शिक्षा सेवाओं, स्वास्थ्य देखभाल और फार्मास्यूटिकल्स के बाद आईटी क्षेत्र में भी तेजी से नौकरियों के अवसर प्राप्त हो रहे हैं.
आयात में 50 प्रतिशत की वृद्धि –
घरेलू आर्थिक गतिविधियों में तेजी को बताते हुए कहा गया है कि भारत का व्यापारिक आयात सितंबर में 56.4 बिलियन अमरीकी डॉलर के ऐतिहासिक मासिक उच्च स्तर को छू गया है, जबकि महीने के दौरान आयात में लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई. खासकर सोना, वनस्पति तेल और इलेक्ट्रॉनिक सामान में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है.
पहले की तुलना में अब वैश्विक विकास की गति धीमी हो रही है, विशेष रूप से उन देशों में जो इसके प्रमुख चालक थे. रिटेल सेल, वैश्विक स्तर पर कारों की बिक्री, औद्योगिक उत्पादन से वैश्विक व्यापार प्रभावित हुआ है.
बंदरगाहों पर भीड़भाड़ ने बिगाड़ा शेड्यूल, व्यापार प्रभावित –
लेख में कहा गया है कि अमेरिका, यूरोप और एशिया में बंदरगाहों पर भीड़भाड़ ने नौकायन कार्यक्रम और उपकरण की कमी को बाधित कर दिया है, इससे आयात और निर्यात काफी प्रभावित हुआ है.
उक्त रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि विकसित और विकासशील देशों के बीच बढ़े हुए मुद्रास्फीति के स्तर को व्यापक रुप से क्षणभंगुर माना जाता है, लेकिन यहां इसके लंबे समय तक रहने की उम्मीद है शायद 2022 तक.