RBI के सामने महंगाई की चुनौती, सोच-समझकर तय करने होंगे पॉलिसी रेट

RBI Monetary Policy: कच्चे तेल की कीमतों में वैश्विक स्तर पर बढ़त देखने को मिल रही है. इससे पेट्रोल और डीजल की रिटेल प्राइस देशभर में बढ़ेंगी

job and demand will increase only if industry loan disbursement increases

बैंकों ने दूसरी तिमाही में इंडस्ट्री से अधिक पर्सनल लोन दिए. ब्याज दरें घटने, आक्रामक मार्केटिंग और उपभोक्ताओं का खर्च पर हाथ खुलने से ऐसा हुआ

बैंकों ने दूसरी तिमाही में इंडस्ट्री से अधिक पर्सनल लोन दिए. ब्याज दरें घटने, आक्रामक मार्केटिंग और उपभोक्ताओं का खर्च पर हाथ खुलने से ऐसा हुआ

किसी भी देश के केंद्रीय बैंक के सामने दुविधा का वित्तीय खतरा हर वक्त सामने खड़ा होता है. रिजर्व बैंक (RBI) की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (Monetary Policy Committee – MPC) के सामने ग्रोथ के लिए लिक्विडिटी बनाए रखने और बढ़ती महंगाई की चिंताओं के बीच का असमंजस बढ़ गया है. महामारी के बाद से RBI लगातार ऐसे मुद्दों के बीच फंसा हुआ है. चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कुछ रियायत बरतने के बाद उसने फिर से आक्रामक रुख अपनाया है.

इसका कारण यह है कि कच्चे तेल की कीमतों में वैश्विक स्तर पर बढ़त देखने को मिल रही है. यह 81 डॉलर प्रति बैरल के स्तर से ऊपर जाकर 82 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया. इसमें कोई शक नहीं है कि इससे पेट्रोल और डीजल की रिटेल प्राइस देशभर में बढ़ेंगी.

मार्च 2020 में लॉकडाउन लगने के बाद से केंद्रीय बैंक के सामने हर MPC बैठक में चुनौतियां रही हैं. बैंक ने विकास को प्राथमिकता देते हुए बैंकिंग सिस्टम में पैसे का फ्लो बनाए रखा. बैंकों ने बुरी तरह से प्रभावित हुए कंजम्पशन में वापस जान डालने के लिए ब्याज दरें घटाईं.

अर्थशास्त्रियों का सोचना है कि MPC इस बार भी ऐसा ही रुख अपनाएगी. हालांकि, सबको इस बात की भी चिंता है कि एनर्जी प्राइसेज बढ़ने से CPI आधारित इंफ्लेशन छह प्रतिशत के पार जा सकता है. RBI इसके लिए दो-छह फीसदी का टॉलरेंस बैंड लेकर चलता है.

इसी तरह बीते कुछ महीनों से ऊंचे स्तर पर बने हुए एडिबल ऑयल भी महंगाई दर बढ़ा सकते हैं. इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का कहना है कि रूस और इंडोनेशिया/मलेशिया के अगले हार्वेस्ट सीजन से पहले इनके दाम घटने की गुंजाइश कम है.

अगस्त में RBI ने अनुमान दिया था कि इस वित्त वर्ष रिटेल इंफ्लेशन लेवल 5.7 प्रतिशत के लगभग रह सकता है. उस महीने महंगाई दर चार महीने के अपने निचले स्तर 5.3 फीसदी पर थी.

परेशानी की बात यह है कि कच्चे तेल, एडिबल ऑयल, मेटल और कोयला (देश का 85 प्रतिशत से अधिक बिजली उत्पादन थर्मल पावर से होता है) एक बार फिर महंगाई की मार दे सकते हैं. ये इंफ्लेशन को छह प्रतिशत के पार ले जा सकते हैं. इससे विकास के लिए लिक्विडिटी पर जोर देने वाले फैसले को चुनौती मिल सकती है.

अगले दो महीनों के लिए पॉलिसी रेट तय करते समय RBI को गंभीरता से इसपर विचार करना होगा कि क्या हम लिक्विडिटी के लिए एक बार फिर महंगाई का जोखिम उठाने की स्थिति में हैं? इंफ्लेशन के चलते डिमांड पर असर पड़ सकता है, जो खुद में विकास के लिहाज से बेहद जरूरी है.

Published - October 6, 2021, 06:20 IST