दुनिया के प्रमुख केंद्रीय बैंक के ब्याज दरों में बढ़ोतरी और अमेरिकी फेडरल रिजर्व (फेड) की बॉन्ड की खरीद में कमी के बाद, मुद्रास्फीति (inflation) बाजारों और विश्व अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का नया विषय बन गई है. उच्च मुद्रास्फीति का डर यूरोप में प्राकृतिक गैस (Natural Gas) की कीमतों में तेज वृद्धि, ब्रिटेन और चीन में बिजली की कटौती और कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से और भी ज्यादा बढ़ गया है.
ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतें पिछले एक महीने में करीब 20 फीसदी बढ़ी हैं और तीन साल के उच्चतम स्तर $80 प्रति बैरल पर पहुंच गई हैं. यह भारत में तेल-विपणन कंपनियों को ईंधन (पेट्रोल-डीजल) की कीमतें बढ़ाने के लिए मजबूर करेगा, जिससे खुदरा या उपभोक्ता मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी होगी. कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से कंज्यूमर गुड्स कंपनियों के प्रोडक्ट प्रोड्यूस करने की कॉस्ट भी बढ़ेगी. विश्लेषकों का कहना है कि कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से कॉरपोरेट मार्जिन में गिरावट आ सकती है.
बिजनेस स्टैंडर्ड ने कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के विश्लेषकों के हवाले से बताया, ‘वैश्विक ऊर्जा कीमतों में तेज वृद्धि और ऊंची कीमतों की संभावनाएं वैश्विक और घरेलू मुद्रास्फीति के लिए जोखिम का एक और स्रोत पैदा कर सकती हैं.’
ऐतिहासिक रूप से, ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतों और भारत में समग्र मुद्रास्फीति (overall inflation) के बीच सकारात्मक संबंध (positive correlation) रहा है. बीपी (https://www.bp.com/en/global/corporate/energy-economics/statistical-review-of-world-energy.html) के आंकड़ों के अनुसार, ब्रेंट क्रूड ऑइल की कीमत 2005 और 2011 के बीच दोगुनी हो गई थी. इसी अवधि में, भारत में समग्र मुद्रास्फीति 2005-06 में 4.6 प्रतिशत से बढ़कर 2010-11 में लगभग 10 प्रतिशत हो गई थी. इसी तरह, 2012 के बाद वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के बाद मुद्रास्फीति में भी तेज गिरावट देखी गई थी.
2019-20 (FY20) में निचले स्तर पर पहुंचने के बाद भारत में महंगाई एक बार फिर से बढ़ रही है. ओवरऑल इन्फ्लेशन 2020-21 में लगभग 60 आधार अंक बढ़कर 4.3 प्रतिशत हो गई, जो FY20 में 3.7 प्रतिशत थी. अप्रैल-अगस्त 2021 में सीपीआई औसतन 5.5 फीसदी था, जबकि डब्ल्यूपीआई दोहरे अंकों में था. आंकड़े ये भी बताते हैं कि अमेरिका में प्राइस राइज तेज रहा है.
जेएम फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशनल सिक्योरिटीज के मैनेजिंग डायरेक्टर और चीफ स्ट्रैटेजिस्ट धनंजय सिन्हा ने कहा, यूरोप और चीन में बिजली की लागत तेजी से बढ़ रही है, जिससे मैन्युफैक्चर्स के लिए ऑपरेटिंग कॉस्ट अधिक हो गई है. वहीं कोविड-19 की वजह से पहले से ही ग्लोबल सप्लाई चेन प्रभावित है. ये मिलकर मैन्युफैक्चर्ड और कंज्यूमर गुड्स की महंगाई को और ज्यादा बढ़ा सकता है.
प्राकृतिक गैस की कीमतों में बढ़ोतरी ने खाद्य मुद्रास्फीति को लेकर भी आशंकाएं बढ़ा दी हैं. स्पाइक ने यूरोप में कुछ उर्वरक कंपनियों को उत्पादन में कटौती के लिए मजबूर किया है.