भारत के सबसे बड़े एयरपोर्ट्स- दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु के ऑपरेटरों ने केंद्र सरकार से क्षमता और कीमत पर लगे कैप को हटाने का आग्रह किया है. उनका कहना है कि इससे यात्रियों की वापसी में रुकावट आ रही है और भारत के टॉप एयरपोर्ट्स (Airports) की वित्तीय स्थिति को नुकसान हो रहा है. उन्होंने सरकार से क्षमता को सीमित किए बिना इंटरनेशनल एयर ट्रैवल को फिर से शुरू करने का भी आग्रह किया है.
दिल्ली और हैदराबाद का एयरपोर्ट जीएमआर ग्रुप के पास है. जबकि अडानी ग्रुप के पास मुंबई और छह अन्य रीजनल एयरपोर्ट है. बेंगलुरु एयरपोर्ट का स्वामित्व अरबपति निवेशक प्रेम वत्स के फेयरफैक्स ग्रुप के पास है. इस घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों ने कहा कि पिछले हफ्ते जब एयरपोर्ट्स के चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर्स ने सिविल एविएशन मिनिस्टर ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुलाकात की थी उस वक्त ये सुझाव दिए गए थे.
प्राइवेट एयरपोर्ट ऑपरेटर के एक एक्जीक्यूटिव ने कहा, सरकार के नियमों की वजह से एयरलाइन्स मैक्सिमम कैपेसिटी डिप्लॉय नहीं कर सकती है. इस वजह से पहले की तरह एयरपोर्ट ट्रैफिक होने में रुकावट आ रही है. इससे भी बड़ी समस्या प्राइज कैप है, जिसकी वजह से कई रूट पर एयरलाइन ठीक तरह से ऑपरेट नहीं हो पा रही है.
एक एयरपोर्ट का राजस्व सीधे पैसेंजर फुटफॉल से जुड़ा होता है. अगर एयरपोर्ट पर ज्यादा फ्लाइट्स आएंगी तो ज्यादा लैंडिंग और पार्किंग शुल्क मिलेगा. यात्रियों की संख्या भी बढ़ेगी, जिससे एयरपोर्ट का ज्यादा रेवेन्यू जनरेट होगा. एयरपोर्ट पर जो पैसेंजर शॉपिंग और अन्य चीजों पर अपना पैसा खर्च करते हैं उसकी एयरपोर्ट रेवेन्यू में करीब 30% की हिस्सेदारी होती है.
एविएशन कंसल्टेंसी फर्म CAPA- सेंटर फॉर एविएशन के एक अनुमान के अनुसार, इंडियन एयरपोर्ट ऑपरेटरों को 2020-21 में 7,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. वहीं 2019-20 में एयरपोर्ट ऑपरेटरों को 5,160 करोड़ रुपए का प्रॉफिट हुआ था.
भारत ने 1994 में एविएशन इंडस्ट्री को डी-रेगुलेट किया था. इससे किराया निर्धारित करने की अनुमति मार्केट को मिल गई. पिछले साल 25 मई को एयर ट्रांसपोर्ट के फिर से शुरू होने के बाद मिनिस्ट्री ऑफ सिविल एविएशन (MCA) ने एयरक्राफ्ट एक्ट, 1934 के एक क्लॉज के तहत कैपेसिटी और प्राइज कैप बैंड को तय करना शुरू कर दिया. MCA ने कहा कि स्पाइसजेट और गो एयर जैसी कमजोर वित्तीय स्थिति वाली एयरलाइनों को दिवालियापन से बचाने के लिए ये नियम लाए गए हैं.
सरकार ने एयरलाइंस को कोविड से पहले की कैपेसिटी का 65 प्रतिशत डिप्लॉय करने की अनुमति दी है. एयरपोर्ट्स ने कहा कि कैपेसिटी पर सरकार की पाबंदी नेटवर्क में स्टेबिलिटी लाने के एयरलाइनों के विकल्पों को सीमित करती है. उदाहरण के लिए, यदि एक एयरपोर्ट को सात सिटी पेयर जोड़ते हैं, तो संभव है कि उनमें से तीन को ट्रैफिक नहीं मिल रहा है, जबकि चार अन्य में ट्रैफिक काफी ज्यादा है. इस वजह से कई जगहों पर देखा गया है कि एयरलाइनों ने ज्यादा ट्रैफिक वाले रूट को जोड़ने के लिए कम ट्रैफिक वाले रूट पर फ्लाइट बंद कर दी है.
सरकार की ओर से किराया तय किए जाने की वजह से एयरलाइन अब पैसेंजर्स को कम कीमतों पर टिकट ऑफर नहीं कर पा रही है. इस वजह से डिमांड प्रभावित हुई है. एक प्राइवेट एयरपोर्ट के सीईओ ने कहा, सरकार की ओर से तय की गई टिकटों की न्यूनतम कीमत बाजार की सोच से अधिक है. दिल्ली-कोयंबटूर के बीच का किराया 9,000 रुपए तक बढ़ गया है. कई परिवारों के लिए इतना किराया देना संभव नहीं है. इससे पैसेंजर ट्रैफिक प्रभावित हो रहा है. टूरिज्म पर भी फर्क पड़ रहा है.
इंडस्ट्री से जुड़े एक एक्सपर्ट ने कहा, एक समान दरें रखना उन लोगों के साथ भी अनुचित है जो अपनी यात्रा की योजना पहले से बनाते हैं. कीमतें समान होंगी तो एयरलाइन एडवांस में अपना प्लान नहीं बना सकेंगी. आखिरी समय में किराए में बढ़ोतरी पैसेंजर और एयरलाइन दोनों के लिए बड़ा फैक्टर है. इस पर करीब एक साल से सरकार की पाबंदी है. अगर सरकार इस पर से पाबंदी नहीं हटाती है तो ये एयरलाइन के लिए मुश्किल होगा. उन्होंने कहा कि सरकार को कीमत तय करने की जिम्मेदारी मार्केट पर छोड़ देना चाहिए जैसा की दुनियाभर में होता है.
इंडस्ट्री से जुड़े सूत्रों के मुताबिक इस मामले को लेकर एयरलाइन्स डिवाइडेड है. जहां स्पाइसजेट और गो एयर जैसी एयरलाइंस ने सरकार के दखल का समर्थन किया है, तो वहीं मार्केट लीडर इंडिगो और टाटा संस के स्वामित्व वाली विस्तारा ने इसका विरोध किया है.