Pradhan Mantri Ujjwala Yojana: देश के दूर-देहात इलाकों में भी अब एलपीजी चूल्हों पर खाना बनाती महिलाएं देखी जा सकती हैं. इन्हें देखकर आप यदि अपने जहन में लकड़ी या उपला जलाकर चूल्हे पर रोटी पकाने वाले उस पुराने दौर को याद करें तो प्रतीत होगा कि अब उनकी जिंदगी में कितना बड़ा बदलाव आया है. जी हां, केंद्र सरकार के प्रयासों से भारत की अनेक ग्रामीण महिलाओं को धुएं से आजादी मिली है.
कमजोर वर्ग के परिवारों को मिली बड़ी राहत
केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री उज्जवला योजना से कमजोर वर्ग के परिवारों खास तौर पर महिलाओं को काफी राहत मिली है. दरअसल, ‘पीएम उज्जवला योजना’ के तहत सरकार गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों को घरेलू रसोई गैस का कनेक्शन देती है.
बताना चाहेंगे कि ‘प्रधानमंत्री उज्जवला योजना’ केंद्र सरकार के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के सहयोग से चलाई जा रही है. इसी योजना के जरिए उत्तराखंड के सीमांत इलाके पिथौरागढ़ की तस्वीर भी बदली है.
यहां प्रधानमंत्री उज्जवला योजना से महिलाओं के जीवन में धरातल पर परिवर्तन नजर आ रहा है. पिथौरागढ़ की अनेकों महिलाओं को उज्जवला योजना की मदद से अब जंगल में लकड़ी तलाशने नहीं जाना पड़ता और साथ ही उन्हें अब चूल्हे से निकलने वाले धुएं से भी मुक्ति मिल गई है.
गांवों की महिलाओं के जीवन में आया परिवर्तन
जी हां, भारत के गांवों में खाना बनाने के लिए परंपरागत रूप से लकड़ी और गोबर के उपले का इस्तेमाल किया जाता रहा है. इससे निकलने वाले धुएं का खराब असर खाना बनाने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ता है.
प्रधानमंत्री उज्जवला योजना से ऐसी महिलाओं को काफी राहत मिली है. गांव में ज्यादातर महिलाओं का समय दो वक्त के ईंधन का इंतजाम करने में ही गुजरता था. केवल इतना ही नहीं गांव से दूर जंगलों से लकड़ी लाना जोखिम भरा काम भी होता है.
वहीं इसके चलते महिलाएं, परिवार और बच्चों को भी समय नहीं दे पाती हैं. लेकिन, पीएम उज्जवला योजना ने उन्हें न केवल धुएं के खराब असर से मुक्ति दिलाई है बल्कि इन तमाम जोखिमों से भी दूर किया है.
लकड़ी वाले चूल्हे की जगह एलपीजी सिलेंडर वाले चूल्हे पर बन रहा खाना
उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ में प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत अब तक 36 हजार से अधिक गरीब परिवारों को मुफ्त गैस कनेक्शन मिल चुके हैं, जिससे हजारों महिलाओं की जिंदगी में बड़ा बदलाव आया है.
महिलाएं अब लकड़ी वाले चूल्हे की जगह एलपीजी सिलेंडर वाले चूल्हे पर भोजन पका रही हैं, जिससे प्रदूषण तो कम हुआ ही है साथ ही गांव में स्वच्छता भी आई है और पर्यावरण को भी फायदा हो रहा है. ऐसे में इस पहाड़ी इलाके में फिर से वातावरण तरोताजा हो रहा है.