वर्क फ्रॉम होम (Work From Home) आज के दौर की हकीकत है. कोरोना की रोकथाम के लिए सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना सबसे जरूरी है, इसके लिए पूरी दुनिया में लोगों को ऑफिस आने की बजाए वर्क फ्रॉम होम के लिए कहा गया. यहां तक कि, भारत में कई कॉरपोरेट और बिजनेस कंपनियां इस नए ट्रेंड को भविष्य में स्थाई करने के लिए विचार कर रही हैं. इसके बाद से लोगों में अब घर खरीदने की प्राथमिकताओं में बदलाव आ रहा है. रियल स्टेट एक्सपर्ट्स के मुताबिक वर्क फ्रॉम होम होने के बाद लोगों में सिर्फ लोकेशन को लेकर पसंद नहीं बदल रही है बल्कि घरों के आकार को लेकर भी सोच बदल रही है. लोग बड़े शहरों की जगह कस्बों और बाहरी इलाकों में घर लेने के लिए विचार कर रहे हैं.
मिलवुड केन इंटरनेशनल के सीईओ और फाउंडर निश भट्ट के मुताबिक “महामारी के कारण लोगों में रियल स्टेट को लेकर सोच बदल रही है. कंपनियां अपने कर्मचारियों को स्थाई तौर पर वर्क फ्रॉम पर भेजने के लिए ऑफर दे रही हैं. इन फैसलों के कारण अब रियल स्टेट सेक्टर में सिर्फ बड़े शहरों में ही नहीं बल्कि छोटे शहरों को लेकर डिमांड आ रही है. कर्मचारी इस फैसले के बाद अपने घरों से काम कर रहे हैं, इससे टियर-1 शहरों की तुलना में न सिर्फ उन्हें रहने में आसानी हो रही है बल्कि सस्ता भी पड़ रहा है. ”
ANAROCK के प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स ने अनुज पुरी ने कहा कि “महामारी के कारण घरों की खरीद की रफ्तार में थोड़ी कमी तो दर्ज की गई है. एनारॉक रिसर्च के मुताबिक वित्त वर्ष 2021 में टॉप 7 शहरों में करीब 1.49 लाख यूनिट लॉन्च हुई. इनमें से 58% ऐसी हैं, जो शहरों की परिधियों में मौजूद है. कोरोना से पहले वित्त वर्ष 2019 में इन यूनिट की हिस्सेदारी 51% थी. WFH अब घर खरीदने के निर्णयों का अगला आधार बन गया है. सीबीडी क्षेत्रों के आसपास ऑफिस के करीब रहने की आवश्यकता ने कई लोगों को कॉम्पैक्ट कॉन्फ़िगरेशन का विकल्प चुनने के लिए प्रेरित किया. वर्क फ्रॉम होम के बीच, नए और पुराने खरीददार नॉन सेंट्रल लोकेशन में बड़े घरों की ओर जा रहे हैं, जो जेब के लिए ज्यादा बेहतर साबित हो रहे हैं.”
गेट वाली कम्युनिटी और जमीन भी लोगों की पसंद बनकर उभरी है. कई संभावित घरों के ग्राहक अब गेटेड कम्युनिटी में रहना पसंद करते हैं, जहां उनके पूरे परिवार की जरूरतें पर्याप्त रूप से पूरी होती हैं. ऐसी सोसाइटी ग्राहकों को ज्यादा सुरक्षित माहौल, बेहतर सुविधाएं और बाहरी दखल से आजादी देती हैं. बड़े शहर जैसे बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई, पुणे और गुरुग्राम में कोरोना के बाद घर खरीददारों की डिमांड में इजाफा देखने को मिला है. कई लोग लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट के लिहाज से जमीन देख रहे हैं.
स्क्वायर यार्ड्स, के प्रिसिंपल पार्टनर दीपक खंडेलवाल कहते हैं कि. “घर खरीददार शहरों के बीचों बीच महंगे घर लेने की बजाए कम कीमत वाले खुले और बड़े घरों की ओर शिफ्ट होने की संभावनाएं तलाश रहे हैं. लोगों में बढ़ती इस प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप उपनगरों में घरों की मांग में इजाफा हुआ है. इसके चलते रियल स्टेट के दामों में भी बदलाव देखने को मिल रहा है. खासकर बेंगलुरु, गुरुग्राम और चेन्नई जैसे आईटी हब जैसे शहरों में.
वर्क फ्रॉम के चलते ग्राहक अब बड़े घर तलाश कर रहे हैं. काम करने वाले लोग दरअसल अपने घरों में उस जगह की कमी महसूस कर रहे हैं, जहां वो डेडिकेशन के साथ बिना डिस्टर्ब हुए अपने ऑफिस का काम कर सकें. इसके चलते मिड सेगमेंट में ऐसे घरों की मांग में इजाफा हुआ है.
खंडेलवाल के मुताबिक घर खरीदने वाले ग्राहक की डिमांड 2.5BHK और 3.5 BHK को लेकर काफी ज्यादा हो रही है. ताकि वो अतिरिक्त जगह को अपने ऑफिस के काम के लिए इस्तेमाल कर सकें. पहले किराए पर रहने वाले लोग अब नए घरों में शिफ्ट होने की ओर मूड बना रहे हैं. इसके लिए वो गेटेड कम्युनिटी और बायोफिलिक डिजाइन वाले बड़े घरों की तलाश कर रहे हैं.
घर खरीदने के लिए विचार कर रहे लोगों के लिए ये समय सबसे बढ़िया है. इस वक्त होम लोन ब्याज दर और कीमत काफी कम हो चुकी हैं. जो ग्राहकों के लिए काफी फायदे का सौदा है. बस ये फैसला लेने से पहले ग्राहकों को लोकेशन, इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य सुविधाएं जैसे स्कूल और अस्पताल का आकलन कर लेना चाहिए. इसके साथ ही अपने रिपेमेंट क्षमता और अपनी पसंदीदा प्रॉपर्टी लेने के बाद क्या दूसरी देनदारी बचेंगी, इसका अंदाजा लगा लेना चाहिए. घर खरीददारी का फैसला आपके फाइनेंशियल प्लान का हिस्सा होना चाहिए ताकि ये आपके दूसरे लक्ष्यों को प्रभावित न कर सके.