निर्यातकों के एक समूह (group of exporters) ने अगस्त में घोषणा की थी कि वह शिपिंग लाइनों के संभावित कार्टेलाइजेशन (समान स्वतंत्र कंपनियों का एक समूह जो कीमतों को नियंत्रित करने और प्रतिस्पर्धा को सीमित करने के लिए एक साथ जुड़ते हैं) की जांच के लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग से संपर्क करेगा. शिकायतों का आधार माल ढुलाई दरों (freight rates) में तेजी से बढ़ोतरी है. पिछले एक साल में दरों में तीन से चार गुना से ज्यादा बढ़ोतरी देखी गई है. वहीं कंटेनर उपलब्धता में 15% की गिरावट आई है.
हालांकि शिपिंग कंपनियों का दावा है कि लॉजिस्टिक्स कॉस्ट (logistics costs) में यह भारी बढ़ोतरी दुनिया भर में राष्ट्रीय लॉकडाउन से आए व्यवधानों का परिणाम है. केवल भारतीय निर्यातक ही इससे पीड़ित नहीं हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने फेडरल मरीनटाइम कमीशन को शिपिंग सेक्टर में ‘अन्यायपूर्ण और अनुचित शुल्क’ (unjust and unreasonable fees) पर नकेल कसने का निर्देश दिया है. बिजनेस स्टैंडर्ड ने इसे लेकर एक रिपोर्ट पब्लिश की है.
भारत में शिपिंग के डायरेक्टर जनरल अमिताभ कुमार ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘यह संकट एक वैश्विक मुद्दा है. अगर कार्टेलाइजेशन के आरोप की जांच करनी है, तो इसकी वैश्विक स्तर पर जांच करनी होगी. 2008 के संकट के बाद 600-700 जहाजों वाली कंपनियों को अपने ऑपरेशन बंद करने पड़े थे. कुमार ने कहा, ‘अगर यह एक कार्टेल होता, तो ये लाइनें 10 साल तक घाटे में नहीं चलतीं.’
वास्तव में, माल ढुलाई और कंटेनर दरों में मौजूदा उछाल उस इंडस्ट्री के लिए जीवन रक्षक के रूप में आया है जो 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से संघर्ष कर रही है. उदाहरण के लिए, 2009 में, दुनिया की सबसे बड़ी शिपिंग लाइन, मायरस्क (Maersk), ने 1904 में कंपनी की स्थापना के बाद से अपना पहला पूर्ण-वर्ष का नुकसान ($1.31 बिलियन) पोस्ट किया. यह शिपिंग इंडस्ट्री के संघर्ष का ट्रेलर भर था.
2016 में दुनिया के सातवें सबसे बड़ा कंटेनर ऑपरेटर, हंजिन शिपिंग (Hanjin Shipping) को अपने ऑपरेशन बंद करने पड़े. कई विलय और अधिग्रहण और कंटेनर शिपिंग गठबंधनों का निर्माण इस संकट को दिखाते हैं. अमेरिकन प्रेसिडेंट लाइन्स द्वारा शिपिंग लाइन सीएमए सीजीएम का अधिग्रहण और चाइना ओशन शिपिंग कंपनी के साथ चाइना शिपिंग कंटेनर लाइन्स का विलय इसका उदाहरण है. 2000 में, 10 सबसे बड़ी शिपिंग कंपनियां बाजार के 12% को नियंत्रित करती थी. आज, उनका ग्लोबल बिजनेस में 80% से ज्यादा का योगदान है.
भारत सरकार के स्वामित्व वाली शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SCI) भी इससे बच नहीं पाई है. एससीआई की आय 2008-09 के 4,564.5 करोड़ रुपये से 21 प्रतिशत घटकर 2017-18 में 3,617.5 करोड़ रुपये रह गई. 2020-21 में, यह 3,828.8 करोड़ रुपए थी. वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार 2008 और 2018 के बीच, सी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज के वर्ल्ड एक्सपोर्ट में औसतन 1 प्रतिशत की वार्षिक दर से गिरावट आई है. 2011 और 2018 के बीच, वर्ल्ड मर्चेंडाइज की एवरेज ग्रोथ 1987-2007 में 7 प्रतिशत के मुकाबले 2.4 प्रतिशत रही.
क्लार्कसी इंडेक्स (ClarkSea Index) (टैंकर, बल्क कैरियर, कंटेनर शिप और गैस कैरियर आय का एक भारित औसत) ने दिखाया कि जून 2008 में प्रति दिन माल ढुलाई आय $46,800 प्रति दिन से घटकर अगस्त 2021 में लगभग $37,400 प्रति दिन हो गई, जो अभी भी 2008 के शिखर से कम है. यह 2009 और जनवरी 2021 के बीच प्रतिदिन $8,100 और $15,400 के बीच रही.
शिपिंग कंपनियों का कहना है कि उन पर भी दबाव होता है. ग्लोबल ट्रेड में व्यवधान से कंटेनरों की भारी कमी हो गई है क्योंकि शिपिंग कंपनियों ने मालवाहक जहाजों की संख्या को कम करना शुरू कर दिया है. शिपिंग कंपनियों का कहना है कि उनकी लागत भी बढ़ गई है. एक 6,500 टीईयू (20-फुट समतुल्य इकाई) किराए पर लेने की लागत केवल छह महीनों में 11,000 डॉलर से बढ़कर 68,000 डॉलर प्रति दिन हो गई है, जबकि बंकर की कीमतों में 32 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई (बंकर की कीमतें एक जहाज को फिर से भरने की लागत को संदर्भित करती हैं).
दुनिया के सबसे बड़े इंडिपेंडेंट कॉमन कैरियर्स एक्स-प्रेस फीडर के मैनेजिंग डायरेक्टर जेएस गिल ने कहा, ‘शिपिंग लाइनों पर भी दबाव है. लगभग पांच वर्षों से वे लगातार घाटे में चल रहे थे; फिर ईंधन नीति में बदलाव आया, जिससे ईंधन की दरों में वृद्धि हुई, और यहां तक कि कोविड की पहली तिमाही के दौरान, शिपिंग कंपनियों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा था.