सरकार ने शुक्रवार को एयर इंडिया (AI) में अपनी 100% हिस्सेदारी (stake) बेचने की घोषणा की. टाटा (TATA) संस की विजेता बोली ₹18,000 करोड़ की है. टाटा को इससे एयर इंडिया में 100 फीसदी हिस्सेदारी के साथ ही इसकी ग्राउंड-हैंडलिंग कंपनी एयर इंडिया SATS एयरपोर्ट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड (AISATS) और एयर इंडिया एक्सप्रेस लिमिटेड (AIXL) में भी हिस्सेदारी मिलेगी. टाटा के लिए AI के सभी कर्मचारियों (Employees) को भी एक साल तक रखना अनिवार्य होगा. दूसरे साल उन्हें VRS दिया जा सकेगा. ऐसे में आज हम आपको एयर इंडिया की सेल का फाइन प्रिंट बताने जा रहे हैं:
टाटा की 18,000 करोड़ रुपये की कुल बोली में 15,300 करोड़ रुपये का कर्ज शामिल है और शेष राशि, 2,700 करोड़ रुपये का भुगतान नकद में किया जाएगा. ट्रांजैक्शन में भूमि और भवन सहित नॉन-कोर एसेट शामिल नहीं है, जिसका मूल्य 14,718 करोड़ रुपये है. भारत सरकार की एयर इंडिया एसेट होल्डिंग लिमिटेड (AIAHL) को इसे ट्रांसफर किया जाएगा. कैरियर के लिए बोलियां एंटरप्राइज वैल्यू पर मांगी गई थीं. फॉर्मूले (formula) के तहत कम से कम 15% (minimum 15%) सरकार को जाना था और बाकी का इस्तेमाल मौजूदा कर्ज (existing debt) को कम करने में किया जाना था.
टाटा के स्पेशल पर्पज व्हीकल (SPV) टैलेस प्राइवेट लिमिटेड की विनिंग बिड – ₹18,000 करोड़
एयर इंडिया पर 31 अगस्त 2021 तक कुल कर्ज – ₹61,562 करोड़
AIAHL को ट्रांसफर किया जाने वाला कर्ज – ₹46,262 करोड़
टाटा की ओर से उठाया जाना वाला AI का कर्ज – ₹15,300
2009-10 से अब तक सरकार की मदद – ₹1,10,276
61,562 करोड़ रुपये के कुल कर्ज में से टाटा की ओर से 15,300 करोड़ रुपये का कर्ज लिए जाने और सरकार को अतिरिक्त 2,700 करोड़ रुपये नकद का भुगतान करने के बाद भी 43,562 करोड़ रुपये का कर्ज बच जाएगा. वही सरकार के पास भूमि और भवन सहित नॉन-कोर एसेट है जिससे करीब 14,718 करोड़ रुपये मिलेंगे. लेकिन इसके बाद भी सरकार को 28,844 करोड़ रुपये का कर्ज चुकाना होगा जो की भारत के टैक्सपेयर्स का बोझ बढ़ाएगा. इसलिए, यह तर्क दिया जा सकता है कि अगर सरकार ने एआई को अच्छी तरह से चलाया होता, तो वह मुनाफा कमा सकती थी और एयरलाइन को बेचने के बजाय कर्ज का भुगतान कर सकती थी.
इस सौदे ने टाटा ग्रुप को घरेलू बाजार में 26.7 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी के साथ दूसरा सबसे बड़ा एयरलाइन ऑपरेटर बना दिया है. पहले नंबर पर इंडिगो है जिसकी 57 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी है. टाटा ग्रुप को इंडियन एयरपोर्ट पर एयर इंडिया के 4,400 डोमेस्टिक (Domestic) और 1,800 इंटरनेशनल (International) लैंडिंग और पार्किंग स्लॉट मिलेंगे. वहीं इंटरनेशल एयरपोर्ट पर 900 स्लॉट मिलेंगे. टाटा के पास पहले से ही दो एयरलाइंस हैं- विस्तारा और एयरएशिया.
एयर इंडिया में सरकार की हिस्सेदारी को कम करने का पहला प्रयास 2001 में तत्कालीन एनडीए सरकार के तहत किया गया था. लेकिन वह प्रयास 40% हिस्सेदारी बेचने का था जो विफल रहा. 2018 में, अपने पहले कार्यकाल के दौरान, नरेंद्र मोदी सरकार ने सरकारी हिस्सेदारी बेचने का एक और प्रयास किया. इस बार, 76% हिस्सेदारी बेचना का प्रयास था लेकिन ये भी विफल रहा. नवीनतम प्रयास जनवरी 2020 में शुरू किया गया था. इस बार पूरी 100% हिस्सेदारी (100% stake) बेचने के लिए बोली मंगाई गई थी. 2021 में जाकर यह प्रयास सफल हुआ.