कोविड (Corona) से पहले ही, कई भारतीय लैंडर की स्थिति खराब थी. जिसे हमने IL&FS क्राइसिस टर्म दिया था, लेकिन जो क्राइसिस आने वाला था उसकी तुलना में ये कुछ भी नहीं था. शुरू में अन्य देशों में फैलने वाली कोविड महामारी (इसे अभी तक एक महामारी नहीं कहा गया था) को देखने के बाद, भारत में पहले केस का पता चलने में बहुत समय नहीं लगा. भारत की विशाल आबादी की वजह से हमारा हेल्थ केयर सिस्टम इस संकट से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं था. ये देखते हुए सरकार ने बिना किसी नोटिस के देशव्यापी लॉकडाउन लागू कर दिया. इस कदम से सरकार वायरस के प्रसार में देरी करने में सफल रही, लेकिन इस लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था को खतरे में ला दिया.
2020 की दूसरी तिमाही में, भारतीय अर्थव्यवस्था में 24% की भारी गिरावट आई. इसका लैंडर और लैंडिंग पर असर पड़ना तय था.
जब आर्थिक गतिविधि गिर गई, तो दो चीजों की तरफ तुरंत ध्यान गया: पहला, ये कि रिस्क काफी बढ़ गया, और दूसरा, कि अंडरराइटिंग के पुराने मॉडल जो “सामान्य” आर्थिक स्थितियों पर आधारित हैं, अब वो विश्वसनीय नहीं रहे.
लैंडर्स ने क्रेडिट सप्लाई के ड्रॉब्रिज को बढ़ा दिया. एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया को और कड़ा किया गया; इनकम और क्रेडिट स्कोर लिमिट दोनों में उछाल आया.
लैंडर्स ने उन कस्टमर पर ध्यान केंद्रित किया जिन्हें वो सबसे अच्छी तरह जानते थे यानी उनके मौजूदा उधारकर्ता, और वो नए उधारकर्ताओं से बचते थे.
इसी तरह, यह आपके सबसे सुरक्षित दांव को दोगुना करने का समय था. सुरक्षित उधार में इंटरेस्ट रेट में कमी देखी गई क्योंकि ये सेफ ऑप्शन थे.
निश्चित रूप से कोविड प्रेरित मंदी लोन की मांग को भी प्रभावित करती है. अनिश्चितता और आत्मविश्वास की कमी की भावना बढ़ रही है. बोरोअर स्वाभाविक रूप से पूछते हैं कि क्या वो सैलरी के नुकसान से पीड़ित होंगे, या इससे भी बदतर, अपनी नौकरी पूरी तरह से खो देंगे. छोटे व्यवसाय के मालिकों को अचानक दिवालिया होने के जोखिम का सामना करना पड़ा.
उपभोक्ताओं ने नई देनदारियों को लेने के बजाय अपनी मौजूदा देनदारियों को कम करने का विकल्प चुना. उन्होंने लग्जरी परचेज को होल्ड कर दिया. इसकी वजह से पर्सनल लोन की मांग में भारी गिरावट आई है. फ्यूचर में, बड़े टिकट साइज के लोन में महत्वपूर्ण गिरावट होगी. कोरोना वायरस महामारी के कारण आर्थिक संकट के मद्देनजर, ज्यादातर लोगों का झुकाव इमरजेंसी या फाइनेंशियल जरूरत को पूरा करने के लिए छोटे टिकट साइज के लोन की ओर होगा.
उधारकर्ताओं (बोरोअर) जिन्हें मेडिकल एक्सपेंस को पूरा करने के लिए कैश की जरूरत थी उन्होंने इसके लिए उनके पास जो भी साधन उपलब्ध थे, उनका इस्तेमाल किया. ऐसे वक्त में गोल्ड लोन की सप्लाई में बहुत इजाफा हुआ क्योंकि यही एकमात्र ऐसा एसेट था जिसके बदले उपभोक्ता जरूरत के वक्त में उधार लेने में सक्षम थे. लोग अपने परिवार की विरासत गिरवी नहीं रखना चाहते हैं, लेकिन कभी-कभी उनके पास कोई विकल्प नहीं होता है.
RBI ने पिछले साल लैंडर्स को अपने बोरोअर को लोन मोरेटोरियम ऑफर करने का ऑप्शन दिया था. दरअसल यह बोरोअर को राहत प्रदान करने के लिए था, लेकिन इसने लैंडर्स को भी फायदा पहुंचाया. लगभग 40% कंज्यूमर लोन को मोरेटोरियम में रखा गया था. मोरेटोरियम अब समाप्त हो गया है, लेकिन इसे बड़े पैमाने लोन रिस्ट्रक्चरिंग के रूप में एक बार फिर लाया जा सकता है.
कोविड के साथ, दर्द भी बना हुआ है. कोविड के दौरान लैंडर्स को काफी नुकसान हुआ वो अब भी इस बारे में सोच रहे हैं कि उन्हें अपना पैसा कैसे वापस मिलेगा.
एक लैंडर का संकट दूसरे का अवसर होता है. संकट के समय में कई बिजनेस बनाए गए हैं. दूसरी लहर अब हमारे रियर व्यू मिरर में है, और तीसरी लहर के आने पर इसके कम परिमाण के (मैग्नीट्यूड) होने की संभावना है. लैंडर्स तीसरी लहर के दौरान लोगों को फाइनेंशियली राहत पहुंचाने के लिए मुस्तैदी से तैयारी कर रहे हैं.