कोविड की दूसरी लहर के बाद थम सी गई इंडस्ट्रियल मैन्युफैक्चरिंग (industrial manufacturing) में एक बार फिर तेजी नजर आने लगी है. कोरोना महामारी के दौरान लगे प्रतिबंधों की वजह से उत्पादन पर असर पड़ा था. मूडीज एनालिस्ट की एशिया-पेसिफिक रीजन पर आधारित रिपोर्ट के मुताबिक, प्रतिबंधों में ढील के बाद भारत का इंडस्ट्रियल उत्पादन भी तेजी से आगे बढ़ रहा है.
इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित खबर के अनुसार, उत्पादन में वृद्धि के बाद खाद्य और तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव की वजह से मुद्रास्फीति पर भी असर पड़ेगा.
मूडीज एनालिटिक्स के मुख्य APAC इकोनॉमिस्ट स्टीव कोचरन ने भारत में इंडस्ट्रियल मैन्युफैक्चरिंग बढ़ने के लिए दो तथ्यों को मुख्य रूप से जिम्मेदार बताया. उन्होंने कहा कि मोबिलिटी रजिस्ट्रेशन में ढील और देसी सामान की डिमांड बढ़ने से उत्पादन में तेजी आई है.
कोचरन के मुताबिक, जुलाई के बाद से प्रॉडक्शन में तेजी आना शुरू हो गई थी. सितंबर आते-आते प्रॉडक्शन काफी बेहतर हो गया. कोविड की दूसरी लहर के दौरान उत्पादन में जो कमी थी, वह सितंबर तक काफी हद तक पूरी हो गई.
कोचर ने ये भी कहा कि प्रतिबंधों में ढील बढ़ने के साथ ही भारतीय वस्तुओं की मांग और बढ़ेगी. इससे सप्लाई चेन को आसान बनाने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि गतिशीलता प्रतिबंधों में ढील से उत्पादन पर काफी फर्क पड़ेगा. उत्पादन में तो तेजी आएगी ही, सप्लाई चेन भी आसान हो जाएगी.
इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटो एलिमेंट्स की क्लाइंट्स तक आपूर्ति भी आसान होगी. इसके साथ ही वर्कर्स की संपूर्ण संख्या के साथ उत्पादन में बढ़ती सुविधाएं ओवरसीज बिजनेस में भी फायदेमंद साबित होंगी.