भारत ने बढ़ाई US ट्रेजरी बॉन्ड खरीदारी, विदेशी मुद्रा भंडार में भी जबरदस्त उछाल

RBI के अलावा बैंकों ने सरप्लस फंड्स को ओवरसीज सॉवरेन पेपर्स में भी रखना शुरू कर दिया है, जिसके लिए रिजर्व बैंक ने हाल ही में नियमों को उदार बनाया है.

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Image: Unsplash, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार करीब 30 अरब डॉलर बढ़कर 600 अरब डॉलर का आंकड़ा पार कर गया.

Image: Unsplash, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार करीब 30 अरब डॉलर बढ़कर 600 अरब डॉलर का आंकड़ा पार कर गया.

मार्च और जून के बीच अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड की खरीदारी में भारत की 10 फीसदी की वृद्धि हुई है. बॉन्ड मार्केट एनालिस्ट्स का कहना है कि RBI के अलावा बैंकों ने सरप्लस फंड्स को ओवरसीज सॉवरेन पेपर्स (overseas sovereign papers) में भी रखना शुरू कर दिया है, जिसके लिए रिजर्व बैंक ने हाल ही में नियमों को उदार बनाया है. अमेरिकी ट्रेजरी विभाग द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, इस साल जून में US ट्रेजरी सिक्योरिटीज में भारत का एक्सपोजर बढ़कर 220 अरब डॉलर हो गया, जो मार्च में 200 अरब डॉलर था.

रिजर्व बैंक सबसे बड़े निवेशकों में से एक

अमेरिकी सरकार के पेपर (US government paper) में रिजर्व बैंक सबसे बड़े निवेशकों में से एक है. हालांकि भारतीय बैंक अमेरिका में काम कर रहे हैं और अब यहां तक कि स्थानीय बैंक भी सॉवरेन पेपर्स में फंड जमा करते हैं. रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) पर अपनी नवीनतम रिपोर्ट में बताया है कि सुरक्षा और तरलता (liquidity) भारत में रिजर्व मैनेजमेंट के दोहरे उद्देश्यों का गठन करती है, इस ढांचे के भीतर प्रतिफल अनुकूलन (return optimization) को ध्यान में रखा जाता है.

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ी वृद्धि

मजबूत विदेशी निवेश प्रवाह (strong foreign investment flows) की अवधि के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार करीब 30 अरब डॉलर बढ़कर 600 अरब डॉलर का आंकड़ा पार कर गया. इसके अलावा कमर्शियल बैंक भी अब अतिरिक्त लिक्विडिटी (surplus liquidity) मैनेजमेंट को सुविधाजनक बनाने के प्रयास में अन्य अर्थव्यवस्थाओं के सॉवरेन पेपर में निवेश करने के एलिजिबल हैं.

यील्ड बढ़ने पर सरकारी बांडों में निवेश अरुचिकर (unattractive) हो जाता है. जब बॉन्ड यील्ड (yield) बढ़ती है तो कीमतें गिरती हैं. इसका परिणाम इन्वेस्टर्स को बाजार में बड़े नुकसान के रूप में होता है. RBI ज्यादातर सबसे सुरक्षित मुद्राओं में निवेश करता है और अमेरिकी डॉलर केंद्रीय बैंक की प्राथमिक आरक्षित मुद्रा (primary reserve currency) है.

सौम्यजीत नियोगी, एसोसिएट डायरेक्टर क्रेडिट एंड मार्केट रिसर्च ने बताया कि पिछले एक साल में आरबीआई घरेलू प्रतिभूतियों (domestic securities) को खरीदकर घरेलू प्रतिफल के प्रबंधन की चुनौती का सामना कर रहा है, जबकि भुगतान संतुलन की स्थिति (balance of payments position) घरेलू रुपये की तरलता को बढ़ा रही है. इसलिए डॉलर-आधारित प्रतिभूतियों (purchasing dollar-denominated securities) की खरीद के माध्यम से तरलता की निकासी एक रणनीतिक विकल्प (tactical option) बन गया है.

Published - August 18, 2021, 06:30 IST