इस महामारी ने दुनिया भर में लोगों को न केवल मानसिक और शारीरिक तकलीफ दी बल्कि आर्थिक रूप से कमजोर भी किया. ऐसे में भारत को अपने, अंडर फंडेड हेल्थकेयर सेक्टर और पर कैपिटा इनकम (प्रति व्यक्ति आय) लेवल पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा क्योंकि अधिकतर विकसित देश भी इस समस्या से जूझ रहे थे.
महामारी का एक ऑब्जेक्टिव असेसमेंट होगा जिसमें देखा जाएगा कि इस महामारी से लड़ने में देशों ने कैसा प्रदर्शन किया है – शुरुआती असेसमेंट से पता चलता है कि भारत ने अपने कई कॉम्पटीटर्स के मुकाबले में अपने अंडर फंडेड हेल्थकेयर सेक्टर को देखते हुए काफी बेहतर प्रदर्शन किया है.
इस अवसर का इस्तेमाल करते हुए वर्तमान सरकार ने आयुष्मान भारत योजना के जरिए हेल्थकेयर सेक्टर को अनदेखा करने की पिछली सरकारों द्वारा की गई इस गलती को सुधारने की कोशिश की है. नए हेल्थ और वेलनेस सेंटर, नए हॉस्पिटल्स और क्रिटिकल हेल्थ केयर फैसिलिटी को अपग्रेड करके- भारत का मौजूदा हेल्थकेयर सेक्टर पोस्ट COVID के बाद काफी हद तक बदला है, अगर इसकी तुलना 2014 में विरासत में मिले हेल्थकेयर सेक्टर से करें.
हेल्थकेयर सेक्टर में ये बदलाव अगले कुछ सालों में हेल्थकेयर कॉस्ट को कम करने में भी मदद कर सकता है.
लेकिन, भारत का ये ट्रांसफॉर्मेशन केवल हेल्थकेयर सेक्टर तक ही सीमित नहीं है. इसे समझने का सबसे अच्छा तरीका है तुलना करके देखना. फिस्कल इंटरवेंशन के टर्म में देखें तो ज्यादातर सरकार ने डायरेक्ट कैश ट्रांसफर प्रोवाइड किया.
भारत और अमेरिका अलग नहीं थे क्योंकि इन दोनों देशों ने डायरेक्ट कैश सपोर्ट प्रोवाइड करने के लिए एक प्रोग्राम लॉन्च किया था. भारत में, एक बटन के क्लिक के साथ तुरंत सहायता प्रदान की जाती थी – और पैसे का तुरंत इस्तेमाल किया जा सकता था. अमेरिका में, वो ‘चेक’ जारी करने पर निर्भर थे, जिसे बाद में बैंकों में जमा करना पड़ता था.
दो देशों में एक ही पॉलिसी को इस्तेमाल करने के मैकेनिज्म में ये एक बड़ा अंतर – जबकि उनमें से एक इमर्जिंग मार्केट है जबकि दूसरा एक एडवांस इकोनॉमी है.
इंस्टैंट फैसिलिटी प्रोवाइड करने के मामले में भारत द्वारा की गई उल्लेखनीय प्रगति तीन महत्वपूर्ण स्तंभों – जन धन, आधार और मोबाइल – जैम ट्रिनिटी पर निर्भर करती है. डायरेक्ट कैश ट्रांसफर के इस्तेमाल की जरूरत थी क्योंकि हमारे सब्सिडी टार्गेटिंग में लीकेज थे, जिसका मतलब था कि टैक्सपेयर का बहुत सारा पैसा बर्बाद हो गया था – जबकि जो लोग मदद के हकदार थे वो भी अक्सर छूट जाते थे.
डायरेक्ट कैश ट्रांसफर नहीं करना कई दशकों से फाइनेंशियल इन्क्लूजन की कमी का परिणाम था. महत्वाकांक्षी जन-धन योजना इसे ठीक करने के लिए उठाया गया एक कदम था क्योंकि भारत सरकार घरेलू स्तर पर बैंक अकाउंट तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करना चाहती थी.
इस तरह, भारत में अब लोगों को अपने आधार आईडी को अपने बैंक अकाउंट से जोड़ने के लिए JAM ट्रिनिटी बनाने के लिए एक मजबूत तंत्र था.
जन धन योजना के फायदे केवल उन आंकड़ों तक ही सीमित हैं जो बताते हैं कि DBT या ऐसे अन्य आंकड़ों का इस्तेमाल करके कितना पैसा बचाया गया है.
इसका वास्तविक फायदा है कि अब भारत के पास डायरेक्ट कैश ट्रांसफर के रूप में लोगों को तत्काल सहायता पहुंचाने के लिए एक मजबूत डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर है.
वास्तव में, 2014 से सरकार भारतीयों के लिए एक सोशल सिक्योरिटी नेट बनाने के लिए एक मजबूत सिस्टम बनाने पर फोकस कर रही है.
यह शुरू हुआ अटल पेंशन योजना के साथ रिटायरमेंट के बाद पेंशन प्रोवाइड करने से, प्रधान मंत्री सुरक्षा बीमा योजना – एक एक्सीडेंटल जीवन बीमा कवरेज और आयुष्मान भारत योजना जो मेडिकल खर्चों को कवर करती है.
इन सोशल सेफ्टी नेट के बिना में देश की आबादी का वो हिस्सा जो गरीब और कमजोर है उस पर इस महामारी के प्रभाव की कल्पना करना भी मुश्किल है.
यह जानना भी जरूरी है कि ज्यादातर जानकारों ने जन धन को खारिज कर दिया था, जबकि कुछ अन्य ने इस पर कमेंट किया कि कैसे ये किसी यूजफुल पर्पज को पूरा नहीं कर सकता है, बल्कि ये बैंकों के लिए ऑपरेशनल कॉस्ट को बढ़ा सकता है.
COVID-19 ने उन सभी को गलत साबित कर दिया क्योंकि इन इंस्ट्रूमेंट्स ने इस महामारी में खास भूमिका निभाई – महामारी के दौरान इससे प्रभावित लोगों को राहत पहुंचाने में इन इंस्ट्रूमेंट ने काफी मदद की.
कई लोग हाल ही में 1991 के सुधारों के बारे में बात कर रहे हैं – वास्तव में, वो सुधार देश और उसकी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण थे. हालांकि, यह स्वीकार करना भी जरूरी है कि इन सुधारों के बावजूद, भारत बैंक अकाउंटों तक सबकी पहुंच सुनिश्चित नहीं कर सका, या फिर बात चाहे बेहतर सेनिटेशन फैसिलिटी कि हो, या फिर देश के सभी लोगों तक इलेक्ट्रिसिटी पहुंचाने की.
2014 तक लोगों ऐसी आवश्यक सेवाओं के बिना ही रहना पड़ा, जो शासन की विफलता को दर्शाता है. यही वजह है कि 2014
के बाद से न केवल आर्थिक विकास सुनिश्चित करने बल्कि देश के समग्र विकास पर भी ध्यान केंद्रित किया गया.
यहां तक कि जब हम पिछले 7 सालों में हासिल की गई सभी उपलब्धियों को स्वीकार करते हैं, तो ये भी मानते हैं कि अभी भी बहुत कुछ हासिल किया जाना बाकी है.
चाहे वो पाइप के पानी जैसी जरूरत को सब लोगों तक पहुंचाना हो या फिर सभी को घर मुहैया कराना – दोनों ही जरूरतों को 2024 तक हासिल करने की संभावना है.
हमारे पब्लिक हेल्थकेयर सिस्टम को बढ़ाने की भी गुंजाइश है ताकि क्वालिटी हेल्थकेयर को सभी के लिए आसान बनाया जा सके.
आयुष्मान भारत गरीबों और कमजोर लोगों को कवरेज प्रोवाइड करता है, लेकिन इस योजना का और विस्तार किया जा सकता है ताकि ज्यादा आबादी को शामिल किया जा सके. ऐसा करके ज्यादा लोगों के लिए सोशल सेफ्टी नेट तैयार किया जा सकेगा.
भारत का सोशल सेफ्टी नेट अभी बहुत शुरुआती स्टेज में है, और यह काफी हद तक पर कैपिटा इनकम के लोअर लेवल और लो टैक्स की वजह से व्यापक रूप से चलाया नहीं जा पा रहा है. जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था का विस्तार होगा, और टैक्स कलेक्शन में सुधार होगा, सोशल सेफ्टी नेट भी धीरे-धीरे बढ़ेगा.
लेकिन, क्रिटिकल पॉइंट यह है कि अभी हमारे पास एक मोडर्न टैक इनेबल सोशल सेफ्टी नेट शुरुआती स्टेज में है लेकिन ये सोशल सेफ्टी नेट ही था जिसने हमारी आबादी के एक तिहाई निचले हिस्से पर महामारी के कुछ प्रभाव को कम करने में खास भूमिका निभाई.
इसने महामारी के जिन कठिन हालातों में लोगों तक मदद पहुंचाई ये उसकी मजबूती को दिखाता है. क्या पता, शायद कई विकसित देश भी भारत के मॉडल को अपनाएं और ‘डिजिटल स्टैक’ के अपने वर्जन के साथ स्मार्ट पॉलिसियों को
कम्बाइन करने की कोशिश करें.
(सुमित भसीन नई दिल्ली के पब्लिक पॉलिसी रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर हैं. उनकी ट्विटर आईडी @sumetbhasin है.)