Ford ने कैसे बदली कार मार्केट की तस्वीर, उत्पादन तकनीकों से मचाई धूम

Ford Exits India: हेनरी फोर्ड ने 1903 में अमेरिका से कंपनी की शुरूआत नहीं की होती तो आज दुनिया कुछ अलग होती. कंपनी के मॉडल T ने दुनिया में धूम मचाई

  • Team Money9
  • Updated Date - September 11, 2021, 05:37 IST
how ford revolutionised car market and manufacturing techniques

फोर्ड को इस बात के लिए याद रखा जाएगा कि बीती शताब्दी के पहले दशक में कंपनी ने कारों की लागत में जोरदार कमी की थी

फोर्ड को इस बात के लिए याद रखा जाएगा कि बीती शताब्दी के पहले दशक में कंपनी ने कारों की लागत में जोरदार कमी की थी

क्या भारतीय उपभोक्ताओं से फोर्ड मोटर्स को विफल कर दिया? या यह कंपनी अपने आप ही असफल हो गई? इस बहस का कोई अंत नहीं, किंतु सच यह है कि अब भारत से फोर्ड मोटर्स जा चुकी है. रह गई है तो उसकी विरासत. बाजार भावनाओं के आधार पर नहीं चलता. वह न इतिहास देखता है, न ही विरासत. लेकिन वाहन उद्योग हमेशा फोर्ड मोटर्स को याद रखेगा.

कहने में भले ही यह ज्यादा लगे, लेकिन हेनरी फोर्ड ने 1903 में अमेरिका से इस कंपनी की शुरूआत नहीं की होती तो आज दुनिया कुछ अलग होती. कंपनी के मॉडल T ने पूरी दुनिया में धूम मचाया.

सबसे पुरानी नहीं

फोर्ड दुनिया की सबसे पुरानी ऑटोमोबाइल कंपनी नहीं है. करीब आधा दर्जन कंपनियां ऐसी हैं जो इससे पुरानी हैं और आज भी कारोबार कर रही हैं. फोर्ड को इस बात के लिए याद रखा जाएगा कि बीती शताब्दी के पहले दशक में कंपनी ने कारों की लागत में जोरदार कमी की थी. हेनरी फोर्ड ने प्रयोग के तौर 1896 में अपने घर पर ही कार बनाई थी. 1903 में कंपनी की पहली कार मॉडल A आई.

उम्मीद

मॉडल T ने ऑटो इंडस्ट्री में बड़ा बदलाव लाया, इसके साथ अमेरिका की आम जनता कार को अपनी उम्मीद में शामिल कर पाई. इस की लॉन्चिंग 1908 में हुई थी. 1911 में जब भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली आ गई, तब हेनरी फोर्ड ने कानसास में असेंबली प्लांट डाला और मैनचेस्टर में कंपनी का पहला विदेशी कारखाना खुला.

लागत में भारी कमी

मॉडल T ने कारों की कीमतों पर क्रांति ला दी. 1908 में एक कार कीमत 850 डॉलर थी, जो कि 1925 में 300 डॉलर हो गई. यह कार चलाने आसान और सस्ते में रिपेयर होने वाली थी. आम कामगारों को इस कार से बहुत फायदा हुआ. इस कार के उत्पादन में बढ़ोतरी करने के लिए कंपनी आठ-घंटों की शिफ्ट के लिए मजदूरी दर 5 डॉलर कर दी, जबकि इसके पहले नौ घंटों के लिए 2.34 डॉलर दिया जाता था.

अमेरिका के शहरों की सड़कों पर फोर्ड का जादू चलने लगा. 1914 तक मॉडल T के 5 लाख कारें चलने लगीं. 1923 तक, कंपनी अमेरिका की आधी कारें बनाने वाली कंपनी बन गई. वैसे तो यह कार कई रंगों में उपलब्ध थी, किंतु ज्यादातर कारें चमकीली काले कलर की थीं.

अब भी मिल सकती है झलक

1927 में मॉडल T की अंतिम कार बनी. ऐसा नहीं था कि इस कार की मांग कम हो गई थी, बल्कि कंपनी बाजार के मुताबिक नए मॉडल पेश करना चाहती थी. उत्पादन बंद होने के समय तक इस मॉडल की करीब 1.5 करोड़ कारें बिकी चुकी थीं.

दूसरी ओर, हिटलर जर्मनी के प्रत्येक व्यक्ति को कार उपलब्ध कराने की योजना बनाने में लगे थे. 1938 में हिटलर ने KDF-Wagen के कारखाने की आधारशिला रखी. यहां बीटल कार बनने लगा. 1972 तक इस कार ने मॉडल T को पीछे कर दिया.

यदि आप अभी भी मॉडल T कारों को देखना चाहते हैं तो भारत के विभिन्न शहरों में आयोजित होने वाले विंटेज कार रैलियों में चले जाएं. आज भी बहुत से भारतीय इन कारों में गर्व के साथ अपने साथ रखें हुए हैं.

भरोसे का मामला

पश्चिम बंगाल में फोर्ड परिवार की यादें आज भी ताजा हैं. हेनरी फोर्ड के पोते एल्फ्रेड फोर्ड ने कोलकाता से 130 किमी उत्तर में नबाद्वीप नामक स्थान में एस्कॉन टेंपल बनाने के लिए 30 मिलियन डॉलर का दान दिया. वह टेंपल के चेयरमैन भी रहे. यह मंदिर अभी निर्माणाधीन है. 1974 से फोर्ड और एस्कॉन के बीच के संबंध स्थापित हुए.

Published - September 11, 2021, 05:37 IST