सेक्शन 80DD के तहत दिव्यांग कैसे बचा सकते हैं इनकम टैक्स, जानें यहां

Tax Deduction for Disabled: इनकम टैक्स एक्ट का सेक्शन 80DD सभी भारतीय निवासियों को मेडिकल खर्च के लिए टैक्स डिडक्शन क्लेम करने की इजाजत देता है

here's how disability tax deduction works under section 80dd

सेक्शन 80डीडी के तहत टैक्स डिडक्शन क्लेम करने के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट, दवाओं का बिल और दूसरे सपोर्टिंग डॉक्यूमेंट जमा करने होतो हैं

सेक्शन 80डीडी के तहत टैक्स डिडक्शन क्लेम करने के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट, दवाओं का बिल और दूसरे सपोर्टिंग डॉक्यूमेंट जमा करने होतो हैं

Disability Tax Exemption: सेक्शन 80DD के तहत टैक्स डिडक्शन क्लेम करने के लिए टैक्सपेयर को मेडिकल सर्टिफिकेट की कॉपी देनी होगी जो उस पर आश्रित व्यक्ति के दिव्यांग होने की पुष्टि करता है. 1961 के इनकम टैक्स एक्ट का सेक्शन 80DD सभी भारतीय निवासियों को मेडिकल खर्च के लिए टैक्स डिडक्शन क्लेम करने की इजाजत देता है. डिडक्शन क्लेम करने के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट, दवाओं का बिल और दूसरे सपोर्टिंग डॉक्यूमेंट जमा करने होंगे.

हाल के कुछ सालों में मेडिकल ट्रीटमेंट तेजी से महंगा हो गया है, जिससे भारतीय समाज के गरीब और मध्यम वर्ग के लिए मेडिकल ट्रीटमेंट ले पाना काफी मुश्किल हो गया है.

भारत सरकार इनकम टैक्स एक्ट, 1961 के सेक्शन 80DD के माध्यम से खास तौर से दिव्याग या गंभीर स्थिति वाले लोगों को कुछ राहत देने में सक्षम हो गई है. ज्यादा विस्तार में जाने से पहले, यह समझना महत्वपूर्ण है कि जहां इनकम टैक्स दरें बदल गई हैं और छोटे संशोधन किए गए हैं, वहीं 1961 से टैक्स के कानूनी और राहत पहलू समान हैं.

इन खर्चों पर मिलती है टैक्स से छूट

  • मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए किया गया कोई भी खर्च, जिसमें नर्सिंग, ट्रेनिंग और दिव्यांग आश्रित का पुनर्वास शामिल हैं.
  • दिव्यांग आश्रित की सहायता के उद्देश्य से खास स्कीम या इंश्योरेंस पॉलिसियों पर किया खर्च जैसे जीवन बीमा निगम (LIC), यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया, या किसी अन्य बीमाकर्ता को भुगतान की गई रकम.

दिव्यांग आश्रित कौन कहलाते हैं

यदि कोई व्यक्ति निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करता है, तो उन्हें सेक्शन 80DD के तहत दिव्यांग आश्रित के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, दिव्यांग की देखभाल करने वाला व्यक्ति इनकम टैक्स डिडक्शन क्लेम कर सकता है :

  • इंडिविजुअल, जैसे कि आपके पति, बेटे या बेटी (या कोई भी बच्चा), माता-पिता, और भाई या बहन सभी को दिव्यांग आश्रित माना जा सकता है.
  • यह किसी भी हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) पर लागू होता है, जिसका है मतलब कि HUF का कोई भी सदस्य दिव्यांग आश्रित हो सकता है.
  • यह महत्वपूर्ण है कि दिव्यांग व्यक्ति पूरी तरह से या अधिकतर अपने रखरखाव के लिए टैक्स पर निर्भर हो.
  • उसे सेक्शन 80U के तहत डिडक्शन क्लेम करने से भी बचना चाहिए.

किसे माना जाता है विकलांग

दिव्यांग की शर्त पूरी करने के लिए निम्नलिखित अक्षमताएं शामिल हैं :

  • गंभीर मानसिक बीमारियां
  • कम दृष्टि के कारण अंधापन
  • ठीक हुआ कुष्ठ रोग
  • सुनने में तकलीफ
  • ऑटिज्म
  • सेरेब्रल पाल्सी, यानी ऐसी स्थिति है जो दिमाग को प्रभावित करती है

वैकल्पिक रूप से, आपको कई अक्षमताएं हो सकती हैं.

यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि किसी व्यक्ति की उपरोक्त विकलांगता 40% से कम नहीं हो सकती है. जब गंभीर विकलांगता की बात आती है, तो 80% से ज्यादा विकलांगता को इस दायरे में रखा जाता है.

कैसे तय होता है डिडक्शन अमाउंट

सेक्शन 80DD के तहत डिडक्शन अमाउंट 1961 के इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80DD के तहत डिडक्शन अमाउंट का निर्धारण इस बात से होता है कि आश्रित विकलांग है या गंभीर रूप से विकलांग है.

यदि आश्रित व्यक्ति में कम से कम 40% या उससे ज्यादा विकलांगता है तो उसकी जिम्मेदारी उठाने वाला परिवार का सदस्य उसके मेडिकल खर्च पर 75,000 रुपये तक का टैक्स डिडक्शन क्लेम कर सकता है.

गंभीर विकलांगता के मामले में डिडक्शन क्लेम किया जा रहा है तो आश्रित व्यक्ति में कम से कम 80 प्रतिशत विकलांगता होनी चाहिए. गंभीर विकलांगता वाले आश्रित व्यक्ति के मेडिकल खर्च पर उसकी जिम्मेदारी उठाने वाला परिवार का सदस्य 1,25,000 रुपये तक का टैक्स डिडक्शन क्लेम कर सकता के है.

क्लेम करने के लिए जरूरी डॉक्यूमेंट

1961 के इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80DD के तहत टैक्स बेनिफिट क्लेम करने के लिए, निम्नलिखित डॉक्यूमेंट जमा करने होंगे :

  • मेडिकल सर्टिफिकेट: सेक्शन 80DD के तहत टैक्स डिडक्शन क्लेम करने के लिए, टैक्सपेयर को मेडिकल सर्टिफिकेट की कॉपी देनी होगी जो उस पर आश्रित व्यक्ति के दिव्यांग होने की पुष्टि करता है.
  • फॉर्म 10-IA: यदि आश्रित दिव्यांग को ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, या कई विकलांगताएं है, तो फॉर्म 10-IA को भरना और फाइल करना आवश्यक है.
  • सेल्फ-डिक्लेरेशन सर्टिफिकेट: टैक्सपेयर्स को आश्रित दिव्यांग के मेडिकल ट्रीटमेंट के खर्चों का विवरण देते हुए एक सेल्फ-डिक्लेरेशन सर्टिफिकेट देना होगा.
  • बीमा प्रीमियम भुगतान की रसीद: क्योंकि सेल्फ-डिक्लेरेशन सर्टिफिकेट अधिकांश खर्चों के लिए पर्याप्त होगा, व्यक्ति को वास्तविक रसीदें रखने की जरूरत नहीं है. यदि दिव्यांग आश्रित के लिए खरीदी गई बीमा पॉलिसियों के भुगतान के लिए क्लेम किया जाता है, तो खर्चों की वास्तविक रसीदें जरूर रखनी चाहिए.
Published - November 1, 2021, 02:18 IST