ज़ोमैटो जैसे फूड डिलीवरी ऐप से खाना मंगाना होगा महंगा, पड़ सकती GST की मार

GST On Food Delivery App: जीएसटी काउंसिल स्विगी और ज़ोमैटो जैसे फूड डिलीवरी ऐप को रेस्तरां सर्विस की तरह मानने के प्रस्ताव पर चर्चा करेगी.

GST On Food Delivery App

image: pixabay, नए प्रस्ताव पर 17 सितंबर को लखनऊ में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में होने वाली 45वीं जीएसटी काउंसिल की बैठक में चर्चा होने की संभावना है और यह परिषद की मंजूरी के अधीन होगी. वर्तमान में, जीएसटी का भुगतान रेस्तरां की ओर से किया जाता है. नया परिवर्तन 1 जनवरी, 2022 से प्रभावी हो सकता है, ताकि ई कॉमर्स ऑपरेटर्स को अपने सॉफ्टवेयर आदि में बदलाव करने का समय मिल सके.'

image: pixabay, नए प्रस्ताव पर 17 सितंबर को लखनऊ में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में होने वाली 45वीं जीएसटी काउंसिल की बैठक में चर्चा होने की संभावना है और यह परिषद की मंजूरी के अधीन होगी. वर्तमान में, जीएसटी का भुगतान रेस्तरां की ओर से किया जाता है. नया परिवर्तन 1 जनवरी, 2022 से प्रभावी हो सकता है, ताकि ई कॉमर्स ऑपरेटर्स को अपने सॉफ्टवेयर आदि में बदलाव करने का समय मिल सके.'

GST On Food Delivery App: फूड डिलीवरी सर्विसेज महंगी होने की संभावना है. जीएसटी काउंसिल स्विगी और ज़ोमैटो जैसे फूड डिलीवरी ऐप को रेस्तरां सर्विस की तरह मानने के प्रस्ताव पर चर्चा करेगी. क्लाउड किचन को भी इसके दायरे में शामिल किया जा सकता है और इस पर 5% जीएसटी लगाया जा सकता है. फिटमेंट कमेटी ने इसे लेकर सुझाव दिए हैं. इस कमेटी में विभिन्न राज्यों के अधिकारी शामिल होते हैं.

नए प्रस्ताव पर 17 सितंबर को लखनऊ में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में होने वाली 45वीं जीएसटी काउंसिल की बैठक में चर्चा होने की संभावना है और यह परिषद की मंजूरी के अधीन होगी. वर्तमान में, जीएसटी का भुगतान रेस्तरां की ओर से किया जाता है. नया परिवर्तन 1 जनवरी, 2022 से प्रभावी हो सकता है, ताकि ई कॉमर्स ऑपरेटर्स को अपने सॉफ्टवेयर आदि में बदलाव करने का समय मिल सके.’

फिटमेंट कमेटी ने अपने प्रस्ताव में क्या कहा?

वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, फिटमेंट कमेटी ने प्रस्ताव दिया है कि सभी ई-कॉमर्स कंपनियां जो फूड डिलीवरी करती है, उन्हें रेस्तरां सर्विस के रूप में माना जाना चाहिए और उन्हें सीजीएसटी एक्ट के सेक्शन 9 (5) के तहत लाकर टैक्स लगाया जाना चाहिए.
इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक पैनल ने कहा कि रेस्तरां सेवाओं को शामिल करने के लिए केंद्रीय जीएसटी अधिनियम में संशोधन करना होगा.

हालांकि 7,500 रुपये प्रति दिन और उससे अधिक के टैरिफ वाले होटलों के रेस्तरां को इससे बाहर रखा जा सकता है.

सरकार को टैक्स से प्रपोशनल रेवेन्यू नहीं मिल रहा

कमेटी ने नोट किया कि महामारी के दौरान फूड डिलीवरी ऐप के माध्यम से ऑनलाइन खाना ऑर्डर करने में काफी बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन सरकार को टैक्स से प्रपोशनल रेवेन्यू नहीं मिल रहा था.
वर्तमान में, रेस्तरां अपनी सर्विसेज की सप्लाई पर (फूड और पेय पदार्थों की सप्लाई सहित) बिना इनपुट टैक्स क्रेडिट के 5% जीएसटी चार्ज करते हैं.
यहां हम आपको ये भी बता दें कि स्विगी और ज़ोमैटो जैसे फूड एग्रीगेटर सोर्स पर टैक्स कलेक्टर्स (टीसीएस) के रूप में रजिस्टर्ड हैं.

ऐसे में अगर कमेटी की सिफारिशों को स्वीकार किया जाता है, तो फूड डिलीवरी ऐप्स पर भी रेस्तरां के समान जीएसटी लगेगा. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक कमेटी ने दो विकल्प प्रस्तावित किए हैं.

-पहले में ऐप बेस्ड ई कॉमर्स ऑपरेटर्स (ECOs) को दो कैटेगरी के तहत ‘डीम्ड सप्लायर्स’ के रूप में नोटिफाई करना शामिल है.

-दूसरा प्रस्ताव ECOs को एग्रीगेटर के रूप में नोटिफाई करना और बाद में रेट तय करने का है. इस कदम के साथ, ECOs को रेस्तरां सर्विस के लिए की जाने वाली सभी सप्लाई पर जीएसटी का भुगतान करना होगा.

क्या कहा अभिषेक जैन ने?

ईवाई में टैक्स पार्टनर अभिषेक जैन ने ईटी से कहा, ‘इस कदम से सरकार को जीएसटी के दायरे में छोटे रेस्तरां को कवर करने में मदद मिलेगी और जीएसटी कलेक्शन में बढ़ोतरी होगी.
दूसरी तरफ छोटे रेस्तरां जिन्हें वर्तमान में जीएसटी का भुगतान नहीं करना पड़ता है, उन पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा.’
Published - September 15, 2021, 06:17 IST