पिछले साल कोविड -19 महामारी की शुरुआत के बाद से पहली व्यक्तिगत बैठक होने के चलते लखनऊ में हुई जीएसटी परिषद की बैठक काफी अहम मानी जा रही थी. सभी राज्यों के केंद्रीय वित्त मंत्री और उनके समकक्षों की इस परिषद ने कोविड दवाओं पर रियायती जीएसटी दरों को इस साल के अंत तक के लिए बढ़ा दिया है. कोविड के इलाज के लिए आवश्यक उपकरणों से रियायतें हटाने के परिषद के फैसले से आम आदमी को इतना नुकसान नहीं होगा, क्योंकि ज्यादातर लोग इन वस्तुओं को पहले ही खरीद चुके हैं. अधिकांश अस्पतालों ने भी इन्हें खरीद लिया है. काउंसिल ने मांसपेशियों से जुड़ी बीमारियों के इलाज के लिए कुछ दवाओं को भी जीएसटी के दायरे से छूट दी है, जिससे मरीजों को काफी राहत मिली है. ये उच्च मूल्य वाली दवाएं हैं और कर हटाने से मरीजों को कीमतों में कमी लाने में एक हद तक मदद मिल सकती है.
Zomato और Swiggy जैसे फूड डिलीवरी ऐप की सेवा पर 5% GST लगाने का निर्णय निश्चित रूप से उपभोक्ता को प्रभावित करेगा. हालांकि, इसका असर ज्यादातर शहरी मध्यम वर्ग तक ही सीमित रहेगा, जो नियमित रूप से इन ऐप्स की सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं.
हालांकि, जीएसटी परिषद की असली कमी पेट्रोल और डीजल को कर के दायरे में लाने पर चर्चा शुरू करने में असमर्थता रही है. बैठक के बाद ब्रीफिंग के दौरान वित्त मंत्री ने कहा कि अभी पेट्रोल और डीजल कराधान की वर्तमान संरचना के साथ जारी रहेगें. इससे पेट्रोल-डीजल के जीएसटी के दायरे में हाने की उम्मीद पर पानी फिर गया है.
पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने के पक्ष में नागरिकों के बीच भारी समर्थन है. यह पेट्रोल की कीमतों को 100 रुपये या उससे अधिक प्रति लीटर से 75 रुपये और डीजल की कीमतों को 70 रुपये प्रति लीटर तक कम कर देगा. यहां जीएसटी दर उच्चतम 28% आंकी गई थी, जो आमतौर पर विलासिता के सामानों पर होती है. जिस दर पर केंद्र और राज्य दोनों सरकारें इन दोनों ईंधनों से राजस्व प्राप्त करती है, उसने खुदरा कीमतों को अकल्पनीय स्तर पर पहुंचा दिया है. विडंबना यह है कि कुछ शोध एजेंसियों के अनुसार, पेट्रोल और डीजल से प्राप्त राजस्व उस स्तर तक बढ़ गया है, जहां राजस्व अनुमानों के बजट अनुमानों से समझौता किए बिना कीमतों में 8 रुपये प्रति लीटर से अधिक की कमी लाना संभव है. अब समय आ गया है कि सरकार राजस्व के स्थायी स्रोतों की तलाश शुरू करे.