उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राज्य सरकारों से जेट फ्यूल पर VAT में कटौती करने की अपील की है. इससे संकेत मिलते हैं कि अर्थव्यवस्था के सुधार पर जोर दिया जा रहा है. मगर असल परेशानी की बात यह है कि आम आदमी हमेशा से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच पिसता आ रहा है.
भारत में मिडिल-क्लास होना आसान नहीं है. सामाजिक दबाव और सीमित आय के चलते मध्य वर्ग वाले सरकारी खजाने में होते उतार-चढ़ाव का खामियाजा भुगतते रहते हैं.
बढ़ती महंगाई के साथ आय का घटना अलग मुश्किल खड़ी किए है. कोरोना महामारी के आने से पहले ही अर्थव्यवस्था सुस्त हो चुकी थी. कइयों के सामने अब वित्तीय रूप से स्थिर बने रहने की चुनौती है. इसमें देश की कर व्यवस्था उनका किसी रूप से सहयोग नहीं कर रही.
फ्यूल की बढ़ती कीमतों पर सरकार की प्रतिक्रिया और तमाम प्रॉडक्ट्स के दाम घटाने पर उसका जोर काफी जटिल है. कर्ज पर जोर भर देने के बजाय, सरकार को टैक्स-संबंधित मुद्दों पर कुछ सेगमेंट्स को लेकर फ्लेक्सिबल होने की जरूरत है. इससे मांग बढ़ाने में मदद मिलेगी.
टैक्स का बोझ हल्का करने की सख्त जरूरत है. खासतौर पर फ्यूल पर लगने वाले कर का भार, ताकि जनता को कुछ राहत मिल सके. कई राज्यों ने बीते साल टैक्स कलेक्शन में कमी के डर से VAT में बढ़ोतरी की थी. अब यह कलेक्शन बढ़ने के बावजूद उन्होंने VAT में किसी तरह की कटौती नहीं की है.
सही मायने में तो VAT में कुछ रियायत के साथ एक्साइस टैक्स में भी कटौती करने चाहिए थी. इससे फ्यूल की कीमतों को घटाने में मदद मिलती. कोरोना का कहर अभी कुछ और साल बना रहने वाला है. केंद्र और राज्य सरकारों को सोच-समझकर टैक्स स्ट्रक्चर में बदलाव करना होगा.