Digital Transaction: महामारी की दूसरी लहर के बाद अर्थव्यवस्था के खुलने के साथ ही प्रचलन में मुद्रा (Currency in circulation) में काफी गिरावट आई है, इसके साथ ही डिजिटल पेमेंट के तरीकों में बढ़ोतरी हुई है. फिलहाल यह कहना जल्दबाजी होगी कि क्या लोगों ने नकदी जमाखोरी को लेकर अपने डर पर काबू पा लिया है, लेकिन अगर यह जारी रहता है तो यह प्रवृत्ति उत्साहजनक है. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि प्रचलन मुद्रा में 13 अगस्त तक 10 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है.
कोरोना महामारी का डर अब भी बरकरार है, अर्थव्यवस्था अभी भी उभर नहीं पाई है ऐसे है प्रचलन मुद्रा में 10 फीसद की गिरावट एक बड़ी गिरावट है.
हालांकि, विश्लेषकों का कहना है कि यह दो मुद्दों की ओर इशारा कर सकता है, प्रचलन में मुद्रा पहले ही 29.6 ट्रिलियन के बड़े स्तर पर पहुंच गई है और उसके बाद कोई भी वृद्धि केवल मामूली होगी.
इसका मतलब यह भी हो सकता है कि बैंकिंग प्रणाली से कम रिसाव (less leakage) हो रहा है, जिसका अर्थ है कि प्रचलन में अधिकांश पैसा औपचारिक चैनलों तक पहुंच रहा है. इससे पता चलता है कि डिजिटल भुगतान के लिए लोगों की प्राथमिकता ने बैंकों से नकदी निकालने की आवश्यकता को कम कर दिया है.
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने कहा कि दूसरी लहर के बाद फिलहाल अब बैंकिंग प्रणाली में जमा पूंजी को लेकर काफी सुधार हुआ है.
जमा में यह वृद्धि संभवतः कम अनिश्चितता को दर्शाती है. लेकिन अगर क्रेडिट की कमी में बढ़ोतरी हुई तो बैंकों के लिए काफी समस्या हो सकती है.
खुदरा उपभोक्ताओं के बीच नकदी पर निर्भरता में तेजी से कमी आई है. क्योंकि बड़ी संख्या में लोगों ने लेनदेन के लिए विभिन्न डिजिटल भुगतान प्लेटफार्मों को अपनाया लिया है.
एक्सपर्ट के मुताबिक कोविड -19 महामारी ने भारत में भुगतान को डिजिटाइज़ करने में अहम भूमिका निभाई है. भारत के डिजिटल भुगतान में जो बढ़ोतरी कोरोना की वजह से एक साल में हुई है जानकारों के अनुसार इस बदलाव में कम से कम 10 साल का वक़्त लग जाता.
पीडब्ल्यूसी इंडिया के पार्टनर और लीडर (पेमेंट्स ट्रांसफॉर्मेशन) मिहिर गांधी ने कहा कि डिजिटल भुगतान में तेजी ने प्रचलन में मुद्रा में वृद्धि को कम करने में एक खास भूमिका निभाई है.
लेकिन हम दोनों के बीच सीधा संबंध नहीं बना सकते हैं. केंद्रीय बैंक की डिजिटल मुद्रा उस दिशा में एक कदम आगे होगी. आरबीआई ने धीरे-धीरे बड़े नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया है, जिसने प्रचलन में मुद्रा में वृद्धि को कम करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है.
लेकिन यह कहना जल्दबाजी होगी कि क्या यह चलन कायम रहेगा क्योंकि नोटबंदी के दो साल बाद, हमने देखा कि चलन में मुद्रा वापस वहीं थी जहां नोटबंदी से पहले थी.
पीडब्ल्यूसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2010 से पहले, डिजिटल लेनदेन में एकल अंकों की वृद्धि देखी गई थी. 2010 से 2016 तक, देश में तेजी से भुगतान मोड के शुभारंभ के कारण यह आंकड़ा बढ़कर 28 प्रतिशत हो गया था.
कोविड -19 ने डिजिटल भुगतान मोड में बदलाव को और तेज कर दिया है. विभिन्न खुदरा डिजिटल भुगतान प्लेटफार्मों में, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) पीयर-टू-पीयर भुगतान के लिए सबसे लोकप्रिय और सबसे व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है.