कच्चे तेल के आयात पर भारत का खर्च बढ़ गया है. कोरोना पूर्व से कहीं कम ईंधन खपत होने के बावजूद ऐसा हुआ है. चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भारत का कच्चे तेल का आयात लगभग तीन गुना हो गया. तेल की वैश्विक कीमतों में आई तेज उछाल ने यह बढ़त दर्ज कराई है.
भारत में संसाधित कच्चे तेल का 80% से अधिक आयात किया जाता है. महामारी की दूसरी लहर के दौरान देश के कई हिस्सों में लगे लॉकडाउन के कारण इसमें तेज गिरावट आई.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारत का फ्यूल इंपोर्ट बिल जून तिमाही में 24.7 अरब डॉलर का रहा. बीते वित्त वर्ष की समान तिमाही में यह 8.5 अरब डॉलर था. आयात किए गए तेल की मात्रा 14.7 फीसदी बढ़कर 5.14 करोड़ टन रही.
घरेलू खपत अभी पूर्व-कोविड स्तर तक नहीं पहुंच पाने के बावजूद तेल आयात बिल में यह वृद्धि हुई है. निकट भविष्य में तेल की वैश्विक कीमतों में गिरावट की संभावना कम है.
कोरोना से लगी पाबंदियों में ढिल मिलने और आर्थिक गतिविधियों के रफ्तार पकड़ने से ईंधन की खपत में वृद्धि होना तय है. मिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन दो फैक्टर को ध्यान में रखते हुए वित्त वर्ष 2022 में टोटल इंपोर्ट बिल 100 अरब डॉलर के पार जा सकता है.
महामारी से पहले की खपत का स्तर
पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (PPAC) के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने 2020-21 में 19.8 करोड़ टन से थोड़ा अधिक कच्चे तेल के आयात में 62.7 अरब डॉलर खर्च किए थे. पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के आधिकारिक डेटा को PPAC संभालती है.
ऊर्जा विशेषज्ञ एससी शर्मा का मानना है कि चालू वित्त वर्ष में भारत के तेल आयात बिल में बढ़ोतरी का श्रेय वैश्विक बाजारों में कच्चे तेल की ऊंची कीमतों को दिया जा सकता है। कच्चे तेल के एक बैरल की कीमत वित्त वर्ष 2021 की औसत आयात मूल्य 44.82 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 67.44 डॉलर पहुंच चुकी है.
PPAC के अनुसार, जुलाई में औसत तेल आयात मूल्य बढ़कर 73.54 डॉलर प्रति बैरल था. कच्चे तेल की कीमतें फिलहाल अस्थिर हैं और 70 डॉलर प्रति बैरल से कहीं ऊपर हैं।