किसी भी अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए उपभोक्ताओं का विश्वास (Consumer Confidence) सबसे ज्यादा जरूरी है. यह खर्च को बढ़ाता है, जिससे मांग अधिक होती है. इसके कारण उत्पादन में वृद्धि होती है और क्षमता का विस्तार होता है. इसी के साथ ज्यादा रोजगार का सृजन भी होता है, जिससे ज्यादा आय होती है. हालांकि देश के अधिकांश हिस्सों में दूसरी लहर में होने वाले संक्रमण में कमी आ गई है और अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर लौटने लगी है.
भारतीय रिजर्व बैंक के सर्वेक्षण से पता चला है कि अर्थव्यवस्था के डगमगाने का एक बड़ा कारण उपभोक्ता के विश्वास में कमी आना भी है. सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश परिवारों ने एक साल पहले की तुलना में आय के निम्न स्तर और अधिकांश चीजों की कीमत के अपने उच्च स्तर पर पहुंचने की बात कही है. हालांकि दोनों ही महामारी की दूसरी लहर के कारण होने वाले परिणाम थे.
छह अगस्त को जारी सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक आरबीआई का मानना था कि जुलाई महीने में ग्राहकों का कॉन्फिडेंस लेवल काफी कम देखने को मिला. वर्तमान स्थिति को लेकर लोगों का नजरिया मंदी को लेकर था जोकि बैंकों के जरिए बताए कारणों में से एक था. हालांकि भविष्य ( सर्वे में एक अन्य फैक्टर) में स्थिति में सुधार होने, अर्थव्यवस्था के वापस मजबूत होने के साथ साथ जॉब सेक्टर में फिर से रोजगार मिलने की उम्मीद है.
इसी पर राज्य और केंद्र की सरकार को अपना ध्यान बढ़ाना चाहिए. दोनों ही सरकारें सटीक नीतियां बनाकर इसे बेहतर दिशा दे सकती हैं. केवल विकास उन्मुख नीतियां जैसे चल निधि कारोबार को लीड कर सकती है और रोजगार भी पैदा कर सकती है.
उधार देने से कतरा रहे बैंकों को उद्यमियों की मदद के लिए एक कदम आगे बढ़ाने की जरूरत है. शेयर बाजार और रिटेल इन्वेस्टर उद्यमियों की क्षमता विस्तार और नए कारोबार शुरू करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. विडंबना है कि यह सब रिकवरी बेहतर उपभोक्ता विश्वास पर निर्भर करेगी लेकिन इसके लिए सरकार को तीसरी लहर के सक्रिय प्रबंधन और सक्रिय नीतिगत हस्तक्षेप जारी रखना होगा.
यदि लोग लापरवाही से कोविड सुरक्षा नियमों का पालन नहीं करें या फिर सरकार टीकाकरण कार्यक्रम को आगे बढ़ाने में विफल रहती है, तो तीसरी लहर काफी नुकसान दे सकती है. फिर यह उपभोक्ता के कॉन्फिडेंस (Consumer Confidence) को लेकर भी गलत असर डालेगी.