31 मार्च 2020 को खत्म हुए वित्त वर्ष में भारतीय जनता पार्टी की आमदनी 3,623 करोड़ रुपए रही. जबकि इस अवधि में कांग्रेस पार्टी की आमदनी 682 करोड़ रुपए रही, जबकि 41 दलों की संयुक्त आय 2,078 करोड़ रुपए रही, जो कि बीजेपी की आमदनी का 57 फीसदी है. इससे पता चलता है कि विजेता ही सबसे अधिक फायदे में होता है.
30 साल पहले जब अर्थव्यवस्था (economy) को उदार बनाया गया था, तब यह लक्ष्य था कि प्रतिस्पर्धा को बढ़ाया जाए और आर्थिक सत्ता का विकेंद्रीकरण किया जाए. ऐसा मानना था कि विकास ऊपर से नीचे तक फैलेगा. हालांकि, कुछ लोगों को इसमें शंका भी थी.
लेकिन, विकास के फैलाव की अवधारणा ने काम किया है. जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था (economy) में विस्तार हुआ, देश में गरीबों की संख्या में गिरावट आई. 1993-94 में जहां इनकी संख्या 40 करोड़ के आसपास थी, वह 2011-12 में 27 करोड़ तक गिर गई.
2008 में आई वैश्विक मंदी ने आर्थिक सुधार को धीमा कर दिया. 2016 में विमुद्रीकरण का झटका लगा. कोरोना महामारी ने तो सुधार को उलटी दिशा में पटक दिया. Centre for Monitoring Indian Economy (CMIE) के सर्वे के अनुसार, जनवरी से अक्टूबर 2020 के बीच ग्रामीण गरीबी में 15 फीसदी जबकि शहरी गरीबी में 20 फीसदी का इजाफा हुआ है. यदि महामारी का दंश नहीं झेलना पड़ता तो, गरीबी करीब 5 फीसदी की और कमी आई होती.
Pew Research Center का कहना है कि कोविड की वजह से गरीबी की संख्या में 7.5 करोड़ लोगों का इजाफा हुआ है. बीते साल के मार्च से अक्टूबर के बीच मध्यम वर्ग की जनसंख्या में 3.2 करोड़ की कमी आई.
असल में कोरोना की दूसरी लहर से आर्थिक विषमता में बढ़ोतरी हुई है. इससे गरीबों की संख्या बढ़ी है, साथ ही लोगों का कर्ज भी बढ़ा है. इस वजह से IMF ने भारत की आर्थिक वृद्धि दर में कमी भी की है. इसके अलावा, बढ़ती महंगाई, कमोडिटी की ऊंची कीमत और ईंधन के दामों में वृद्धि से भी लोगों की आमदनी पर असर पड़ रहा है.
दूसरी ओर बड़ी कंपनियों की बात करें तो, महामारी के दौर के पहले वे अधिक मुनाफा कमाने में जुटी हुई थीं. और अभी भी यह रुझान बढ़ता ही नजर आ रहा है. निवेश प्रबंधन फर्म Marcellus का कहना है कि देश की 12 कंपनियां ऐसी हैं जो कुल कॉरपोरेट प्रॉफिट के 90 फीसदी हिस्से पर कब्जा जमाई हुई हैं.
मुनाफे और आमदनी का ऐसा केंद्रीकरण समाज के लिए अच्छा नहीं होता. यदि भारत को कल्याणकारी राज्य बनाना है तो सरकार को इस दिशा में वाजिब कदम उठाने होंगे, ताकि बाजार केवल गलाकाट प्रतिस्पर्धा का अड्डा न बन जाए.