नेशनल मॉनेटाइजेशन पाइपलाइन के तहत पहला कदम एयरपोर्ट अथॉरिटी (AAI) की तरफ से उठाया जा चुका है. प्राधिकरण ने 13 छोटे हवाई अड्डों का कामकाज प्राइवेट कंपनियों को सौंपने की अनुमति दे दी है. हालांकि, इन एयरपोर्ट्स का मालिकाना हक सरकार के पास ही होगा.
योजना के तहत छह बड़े हवाई अड्डों को सात छोटे एयरपोर्ट के साथ जोड़ा जाएगा. इससे छोटे एयरपोर्ट्स का विकास हो सकेगा, जिनपर अब तक खास ध्यान नहीं दिया जा सका है. विकास कार्य और सुविधाएं बेहतर बनाने से इनपर ट्रैफिक बढ़ सकता है, जिससे ये प्रॉफिटेबल बनेंगे. साथ ही देश में हवाई यात्रा की सुविधा का विस्तार हो सकेगा.
देश में 100 से अधिक एयरपोर्ट हैं. इनमें से ज्यादातर को AAI संभालता है. खराब मैनेजमेंट और फेसिलिटी के चलते कइयों की हालत खराब हो रखी है. देश के चार बड़े एयरपोर्ट – दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और हैदराबाद का पहले से निजीकरण हो चुका है. इनकी सुविधाएं विदेशी एयरपोर्ट्स के टक्कर की हैं. इसी तरह कोच्चि में देश का पहला ग्रीनफील्ड प्राइवेट एयरपोर्ट है, जिसकी सुविधाएं काबिल ए तारीफ हैं.
अब सरकार का दायित्व बनता है कि निजीकरण के लिए लगने वाली बोलियों की प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए. चुनिंदा कंपनियों को ही जिम्मेदारियां उठाने का मौका नहीं मिलनी चाहिए. बीते साल अडानी एंटरप्राइजेज ने बीते साल लखनऊ, अहमदाबाद, जयपुर, मंगलौर, तिरुवनंतपुरम और गुवाहाटी हवाई अड्डों के लिए लगाई गईं सभी बोलियां जीती थीं. कंपनी लखनऊ, मंगलौर और अहमदाबाद एयरपोर्ट का कामकाज संभाल चुकी है. बचे हुए तीन को भी जल्द टेकओवर करेगी.
सरकार को यह भी पक्का करना होगा कि निजीकरण के लिए चुने जाने वाले अड्डों में काम कर रहे स्टाफ के साथ भी डील के कारण किसी तरह की नाइंसाफी न हो. ट्रांसपेरेंट प्रोसेस से सबको निश्चिंत करते हुए ग्राहकों के लिए बेहतर सुविधाओं का रास्ता बनना चाहिए. प्रक्रिया में ज्यादा तामझाम से बचते हुए, कम से कम विरोध के साथ जल्द पूरा करना होगा.
प्राइवेट कंपनियों से जुड़ने का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं के लिए बेहतर सुविधाएं तैयार करना होना चाहिए. वर्ल्ड क्लास सर्विस तैयार करने का मतलब सेवाओं को अनअफोर्डेबल बनाना नहीं होता है.