कोविड-19 की दूसरी लहर से पूरे देश में हालात खराब हैं. राज्यों और केंद्र सरकार के हर मुमकिन कदम उठाए जाने के बावजूद संक्रमण की बढ़ती रफ्तार पर लगाम नहीं लग पा रही है. यहां तक कि कई राज्यों ने अपने यहां पूर्ण लॉकडाउन जैसे कड़े कदम भी लगा दिए हैं, इसके बावजूद कोरोना के नए केस और अस्पतालों में आने वाले मरीजों की तादाद थम नहीं रही है.
2 लाख से ज्यादा लोगों की मौत
मंगलवार, 3 मई को भारत में कोविड-19 के मामले 2 करोड़ का आंकड़ा पार कर गए हैं. महज 15 दिनों में ही संक्रमण के 50 लाख से अधिक मामले आए हैं.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मंगलवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, कोरोना वायरस के एक दिन में 3,57,229 नए मामले आने से संक्रमण के मामले बढ़कर 2,02,82,833 पर पहुंच गए हैं.
इस दौरान 3,449 और लोगों के जान गंवानी पड़ी है. इस तरह से देश में अब तक कोविड महामारी से मरने वालों की तादाद 2,22,408 पर पहुंच गई है.
लेकिन, देश में कोविड से मरने वाले लोगों को मुआवजा देने का कोई स्पष्ट नियम नहीं है. न ही अभी तक किसी राज्य ने इसके लिए कोई पॉलिसी तैयार की है.
देश में लगातार कोरोना से बढ़ रही मौतों के बीच लगातार ये सवाल पैदा हो रहा है कि इससे मरने वालों के परिवारों को सरकार की तरफ से मुआवजा दिया जाना चाहिए.
देश में इस वक्त डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट लागू है और इस वजह से आपदा से होने वाली मौतों के लिए सरकार के मुआवजे का तर्क दिया जा रहा है.
कोविड को डिजास्टर मान चुकी है केंद्र सरकार
पिछले साल 14 मार्च को केंद्र सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी करके कोविड-19 महामारी को एक नोटिफाइड डिजास्टर माना था. इसकी वजह ये है कि इस महामारी को डिजास्टर माने जाने से केंद्र को राज्यों को मदद देने में आसानी होती है.
यूपी हाईकोर्ट में आई याचिका
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में कोरोना से मरने वालों को मुआवजा देने को लेकर एक जनहित याचिका हाल में ही दाखिल की गई थी. लेकिन, कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया.
इस याचिका में मांग की गई थी कि कोरोना से हो रही मौतों से लोगों को बचाया जाए और इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ मुकदमे चलाए जाएं.
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि एक अन्य पीआईएल के संबंध में स्वतः संज्ञान लेकर राज्य सरकार को विस्तृत निर्देश जारी किए गए हैं. और इस तरह से इस याचिका को खारिज कर दिया गया.
चुनाव ड्यूटी की वजह से संक्रमित होकर मरने वालों को मुआवजे की मांग
उत्तर प्रदेश में हाल में खत्म हुए पंचायत चुनावों में ड्यूटी पर लगे कई कर्मचारियों की मौत कोविड संक्रमण से हुई है. विपक्षी पार्टियों ने राज्य सरकार से मांग की है कि इन कर्मचारियों के परिवारों को 50-50 लाख रुपये का मुआवजा सरकार को देना चाहिए.
हालांकि, राज्य सरकार ने अभी तक मुआवजे का कोई नियम तय नहीं किया है. साथ ही कोरोना से मरने वालों के लिए किसी तरह के मुआवजे का ऐलान किया गया है.
पिछले साल केंद्र ने वापस ले लिया था आदेश
पिछले साल देश में कोरोना के मामले आना शुरू होने के बाद अपने आदेश में गृह मंत्रालय ने कोरोनावायरस से किसी की मौत होने पर परिवार को 4 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की थी. राहत कार्यों में शामिल व्यक्तियों को भी मुआवजे के दायरे में रखा गया था.
इसके लिए राज्य आपदा राहत कोष से मदद देने की बात कही गई थी. महज 3 घंटे बाद शाम 6.10 बजे इस बारे में सरकार की तरफ से नया आदेश जारी किया गया, जिसमें कोरोनावायरस को आपदा तो माना गया, लेकिन मृतक के परिवार को मुआवजे देने का कोई जिक्र नहीं था.
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका
पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया था. इस याचिका में कोरोना से मरने वालों को मुआवजा देने के लिए केंद्र को दिशानिर्देश जारी करने की मांग की गई थी.
लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हर राज्य के हालात अलग हैं और ऐसे में कोई राष्ट्रीय गाइडलाइंस बनाना मुमकिन नहीं है.
कोरोना वॉरियर्स को मुआवजा
अस्पतालों में काम करने वाले डाक्टरों, नर्सों और अन्य कर्मचारियों को मुआवजा दिया जाता है. मार्च के महीने में कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए जुटे डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए सरकार की तरफ से 50 लाख रुपये के बीमा कवर की घोषणा की गई थी.
इस जीवन बीमा कवर में स्वास्थ्य कर्मियों, सफाई कर्मियों, आशा वर्कर्स और इस लड़ाई में शामिल बाकी सरकारी कर्मचारियों को भी दिया जाता है. लेकिन आम लोगों को इसका फायदा नहीं दिया गया है.
छत्तीसगढ़ में हुआ था प्रावधान लेकिन नहीं मिला पैसा
छत्तीसगढ़ में कोरोना को प्राकृतिक आपदा मानते हुए इसके लिए मुआवजे की कवायद शुरू की थी, लेकिन नियमों में स्पष्टता न होने के चलते इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका.
बिहार में भी मुआवजे का था प्रावधान
बिहार में भी कोरोना से किसी की मौत होने पर परिवार को 4 लाख रुपये आपदा विभाग द्वारा देने का प्रावधान किया गया था. लेकिन, यहां भी इसे जमीनी हकीकत नहीं बनाया जा सका और शायद ही इसके तहत किसी को मुआवजा दिया गया हो.