देश में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच केंद्र सरकार द्वारा वैक्सीनेशन और टेस्टिंग दोनों पर जोर दिया जा रहा है, जिसके तहत अब तक कुल 14 करोड़, 77 लाख से ज्यादा नागरिकों को वैक्सीन भी लगाई जा चुकी है. बताना चाहेंगे, बीते 24 घंटों में देशभर में कुल 24 लाख से अधिक नागरिकों को यह वैक्सीन लगाई गई है. वहीं, कोरोना की जांच की बात करें तो देशभर में कई तरह के टेस्ट जैसे रैपिड एंटीजन टेस्ट, RT-PCR टेस्ट इत्यादि हो रहे हैं. लेकिन इन सबके बीच RT-PCR यानि ‘रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन टेस्ट’ को अन्य टेस्टों के मुकाबले ज्यादा सटीक माना गया है.
दरअसल, RT-PCR टेस्ट में CT वैल्यू का पता चलता है, जिससे यह पता चलता है कि अमुक व्यक्ति में इन्फेक्शन का स्तर कितना है. ऐसा इसलिए क्योंकि CT वैल्यू और वायरस एक दूसरे के व्युत्क्रमानुपाती होते हैं. यानी कि CT वैल्यू जितनी कम है, वायरल लोड उतना ही ज्यादा है. आईसीएमआर के दिशा निर्देशों के मुताबिक RT-PCR टेस्ट के तुरंत बाद लिए गए नमूने में संक्रमण का पता चलने पर वायरस की पॉजिटिविटी का पता लगाया जा सकता है.
आईसीएमआर के मुताबिक सीटी वैल्यू के लिए वैश्विक रूप से दिया गया कट ऑफ 35-40 प्रतिशत है. इसलिए अगर किसी व्यक्ति की सीटी वैल्यू 35 या इससे कम है तो वो कोविड मरीज के रूप में जाना जाएगा, और अगर यह आंकड़ा 35 से अधिक है तो इसका मतलब व्यक्ति संक्रमित नहीं है.
RT-PCR में किसी भी वायरस के जेनेटिक मटेरियल को टेस्ट किया जाता है. चूंकि, कोरोना वायरस एक RNA (Ribonucleic acid) वायरस है यानी यह केवल RNA प्रोटीन से बना है. इसलिए कोरोना वायरस के RNA को पहले DNA (Deoxyribonucleic acid) में परिवर्तित किया जाता है. इस प्रक्रिया को रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन कहा जाता है. फिर इस DNA में चेन रिएक्शन करवाई जाती है. इस चेन रिएक्शन के जरिए किसी व्यक्ति के सैंपल में कोरोना वायरस की मौजूदगी का पता लगाया जाता है.