कोविड-19 से लड़ाई में कई स्तरों पर काम जारी है. एक ओर ग्लोबल वैक्सीन को भारत में एंट्री आसान करने के लिए बदलाव किए गए हैं और प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए करार किए जा रहे हैं, वहीं रिसर्च संस्थान और दवा और वैक्सीन कंपनियां नए-नए प्रयोगों के जरिए कोरोनावायरस की रोकथाम की ओर काम कर रहे हैं. इसमें गेमचेंजर साबित हो सकती हैं नाक से दी जाने वाली वैक्सीन जो ज्यादा प्रभावी मानीं जा रही हैं.
5 मई को WHO द्वारा दी जानकारी के मुताबिक कुल 7 इंट्रानेजल वैक्सीन पर काम जारी है. इनका क्लिनिकल ट्रायल यूके, यूएस, भारत, चीन जैसे देशों में जारी है.
नीति आयोग के सदस्य वी के पॉल की दी जानकारी के मुताबिक अगले 5 महीनों के बीच 216 करोड़ वैक्सीन डोज उपलब्ध कराई जाएंगी. उन्होंने आगे बताया है कि दिसंबर तक भारत बायोटेक अपनी नेज़ल वैक्सीन (नाक से दी जाने वाली वैक्सीन) के 10 करोड़ डोज बना सकते हैं.
नाक से वैक्सीन दिए जाने के कई फायदे हैं, पहला ये कि इससे सुइयों की जरूरत खत्म हो जाएगी जिससे इंजरी और इन्फेक्शन जैसे खतरे नहीं रहेंगे. साथ ही इनमें से कई नेज़ल वैक्सीन को बच्चों के लिए भी ट्रायल किया जा रहा है, इसके अलावा इन वैक्सीन को एडमिनिस्टर करना भी आसान होता है.
कोवैक्सीन बनाने वाली स्वदेशी वैक्सीन कंपनी भारत बायोटेक का कहना है कि उनकी नेज़ल वैक्सीन BBV154 वायरस की एंट्री पर हरी इम्यून सिस्टम के जरिए रिस्पॉन्स दिलाने में कामयाब होगी जिससे संक्रमण का खतरा कम रहेगा. साथ ही कंपनी ने कहा है कि ये वैक्सीन बच्चों और वयस्कों दोनों के लिए कारगर साबित हो सकती है.
भारत बायोटेक का कहना है कि इस नेज़ल वैक्सीन का उत्पादन भी ज्यादा तेजी से बढ़ाया जा सकता है. वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल जारी है.
अमेरिकी कंपनी कोडाजेनिक्स (Codagenix) भारत के सीरम इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर इंट्रानेज़ल वैक्सीन COVI-VAC पर काम कर रही है. ये सिर्फ एक डोज वाली वाली कोविड-19 रोधी वैक्सीन होगी. वैक्सीन का पहले चरण का क्लिनिकल ट्रायल जारी है. कंपनी का कहना है कि ये वैक्सीन कोविड-19 के कई स्ट्रेन के खिलाफ इम्यूनिटी देने के लिए तैयार की जा रही है.
कोडाजेनिक्स के मुताबिक इस वैक्सीन से ज्यादा लंबे समय तक सेलुलर इम्यूनिटी हासिल होगी. इस इंट्रानेज़ल वैक्सीन में कोविड का ही कमजोर किया वायरस (live-attenuated) शामिल किया जाता है.
कैनडा स्थित कंपनी सैनोटाइज (SaNOtize) ने डेवलप किया है और युनाइटेड किंग्डम में किए गए दूसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल सफल भी रहे है. कंपनी के को-फाउंडर और CSO क्रिस मिलर ने मनी9 के साथ ई-मेल वार्ता में बताया है कि कंपनी अब भारत में एंट्री के लिए पार्टनर तलाश रही है.
मिलर कहते हैं कि कोरोना संक्रमण (COVID-19) के संपर्क में आने के बाद असरदार है – ठीक जैसे सैनेटाइजर हाथ या सामान पर से कोरोना वायरस को खत्म करता है वैसे ही ये दवा नाक में ही वायरस का खात्मा करती है जिससे उसे पूरे शरीर में संक्रमण फैलाने का मौका ही ना मिले.
यूके में हुए टेस्ट में ये 79 कोरोना पॉजिटिव मामलों में ये पाया गया कि सैनेटाइज का इलाज कोविड-19 के शुरुआती इलाज में कारगर रहा – 24 घंटों के अंदर ये वायरल लोड को 95 फीसदी घटाने में कारगर हुआ तो वहीं 72 घंटों में 99 फीसदी घटाने में सफल रहा. कंपनी का कहना है कि ये कोरोना के अलग-अलग वेरिएंट पर कारगर है, जिसमें यूके वेरिएंट भी शामिल हैं.
ऑल्टइम्यून (Altimmune) नाम की कंपनी एडकोविड (AdCOVID) नाम की वैक्सीन बना रही है जिसे नाक के जरिए दिया जाएगा. ये वैक्सीन भी क्लिनिकल ट्रायल के पहले चरण में है. फरवरी में ही कंपनी ने वैक्सीन के पहले चरण के क्लिनिकल ट्रायल की शुरुआत की है. कंपनी का कहना है कि साल 2021 की दूसरी तिमाही तक इस ट्रायल के नतीजे आ सकते हैं. ऑल्टइम्यून के मुताबिक इस वैक्सीन का उत्पादन ज्यादा तेजी से बढ़ाया जा सकेगा.
कंपनी का कहना है कि क्योंकि नाक में ही वायरस रिपॉजिटरी बनाता है इसलिए मांस में सुई के जरिए वैक्सीन देने से ज्यादा प्रभावी होगा नाक के जरिए दी जाने वाली वैक्सीन होगी.
फइनलैंड की कंपनी रोकोटे लैबोरेट्रीज भी एक इंट्रानेज़ल वैक्सीन पर काम कर रही है. हालांकि, कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक प्राइवेट इन्वेस्टर्स और निवेश को लेकर कंपनी कुछ दिक्कतों में है.