गुजरात उच्च न्यायालय (Gujarat High Court) ने कोविड-19 वैश्विक महामारी से निपटने के राज्य सरकार के तरीके पर मंगलवार को नाराजगी जताते हुए कहा कि इस पूरी प्रक्रिया में ‘‘पारदर्शिता’’ का अभाव है और ‘‘चिकित्सकों के मरीजों को नहीं देखने के कारण’’ अस्पतालों के बाहर संक्रमितों की मौत हो रही है.
अदालत ने लॉकडाउन लागू नहीं करने की भी सलाह दी और कहा कि वैश्विक महामारी से निपटने के लिए यह कोई समाधान नहीं है.
उसने गुजरात सरकार (Gujarat Government) से सभी अस्पतालों को निर्देश देने को कहा कि वे केवल ‘108’ (हेल्पलाइन) एंबुलेंस सेवा के जरिए आने वाले मरीजों के बजाए अस्पताल आने वाले सभी कोविड-19 मरीजों को भर्ती करें.
मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति बी डी कारिया की एक खंडपीठ ने कहा, ‘‘हम यह नहीं कह रहे हैं कि सरकार कुछ नहीं कर रही है या (अहमदाबाद नगर) निगम कुछ नहीं कर रहा है, लेकिन जिस तरीके से काम किया जा रहा है, वह संतोषजनक नहीं है, पारदर्शी नहीं है और इसी लिए समस्याएं पैदा हो रही हैं.”
अदालत ने कहा, ‘‘चिकित्सकों के मरीजों को नहीं देखने के कारण अस्पतालों के बाहर जो असामयिक मौत या दुर्भाग्यपूर्ण मौत हो रही हैं, वे नहीं होनी चाहिए.’’
पीठ ने गुजरात (Gujarat) में कोविड-19 संबंधी हालात का स्वत: संज्ञान लेते हुए दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. गुजरात में पिछले कुछ सप्ताह में कोरोना वायरस से मामलों में तेज बढ़ोतरी हुई है.
मामले में पेश हुए एक वकील ने जब संक्रमण की श्रृंखला रोकने के लिए लॉकडाउन लागू करने की सलाह दी, तो पीठ ने कहा, ‘‘लॉकडाउन समाधान नहीं है. क्या आप जानते हैं कि लॉकडाउन लागू करने से कितने लोगों की आजीविका छिन जाएगी? यह जर्मनी , न्यूजीलैंड या लंदन नहीं है, यह भारत है.’’
अदालत ने सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि कोविड-19 मरीजों को रेमडेसिविर इंजेक्शन की पूरी खुराक मिले.
इस जनहित याचिका पर चार मई को आगे की सुनवाई की जाएगी.