रिजर्व बैंक ने बैंकों को ऐसे मामले में नर्म रुख रखने के लिए कहा है.
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह वित्तीय तनाव के चलते कोविड-19 से मरने वाले लोगों के परिवारों को मुआवजा नहीं दे सकता है. ऐसी उम्मीद जताई जा रही थी कि केंद्र इन पीड़ित परिवारों को 4 लाख रुपये का मुआवजा देगा. भारत में अब तक आधिकारिक रूप से 3.88 लाख लोग कोविड की वजह से जान गंवा चुके हैं. इस आंकड़े को अगर 4 लाख भी मान लिया जाए तो ये बिल करीब 1.6 लाख करोड़ रुपये बैठता है जो कि वाकई में एक बड़ा आंकड़ा है.
लेकिन, अगर आप थोड़ा गहराई से सोचते हैं तो शायद ये आंकड़ा आपको ज्यादा डराने वाला न लगे.
सबको मुआवजा देने पर विचार करने की बजाय सरकार को इसमें नियम लगाने चाहिए और ये देखना चाहिए कि किस तरह से ज्यादा से ज्यादा परिवारों को वाकई में मदद की जरूरत है. इस हिसाब से ये आंकड़ा काफी नीचे आ जाएगा.
पैन, बैंक खातों और IT रिटर्न के आधार से लिंक होने के साथ ही अब सरकार के लिए ऐसे परिवारों की आमदनी का स्तर पता करना बेहद आसान है जिनकी कमाई कम है. इस तरह से तय क्राइटेरिया वाले कोविड पीड़ित परिवारों को पता किया जा सकता है.
मिसाल के तौर पर, ऐसे लोग जो कि 10,000 रुपये महीने से ज्यादा कमाते हैं, या जिनके पास दुपहिया, ऑटोमोबाइल, फ्रिज, या टीवी है या जो इनकम टैक्स चुकाते हैं या जिनके पास एक तय सीमा से अधिक जमीन है उन्हें इससे बाहर रखा जा सकता है. सरकार की कई स्कीमों में इस तरह की पाबंदियां हैं.
अगर सरकार ये पता कर सकती है कि किन्हें मुफ्त अनाज की जरूरत है, तो निश्चित तौर पर सरकार ये भी पता कर सकती है किन परिवारों को नकदी की जरूरत है.
इस बात को लेकर भी सवाल उठाए जा सकते हैं कि केवल कोविड पीड़ितों को मुआवजा देना दूसरी बीमारियों से मरने वाले गरीबों के परिवारों के साथ अन्याय होगा क्योंकि आखिरकार उन्हें भी मदद की जरूरत है.
ये तर्क तब तक जायज जान पड़ता है जब तक कि इस बात पर नजर न डाली जाए कि ये महामारी एक सदी में एक बार आने वाली घटना जैसी है और इसने पूरी दुनिया को तबाह कर दिया है, साथ ही इस त्रासदी की तुलना किसी दूसरी चीज से नहीं की जा सकती है.
सरकार को मुआवजे से संबंधित अपनी एप्रोच को बदलना चाहिए. सभी परिवारों को इस मदद की जरूरत नहीं है.