कोरोना काल (COVID-19) में जड़ी-बूटियों की डिमांड काफी बढ़ गई है. जिन जड़ी-बूटियों (Herbs) को लोग पूछते भी नहीं थे वो अब बाजार में बेहद महंगे दामों पर बिक रही हैं. प्राचीन समय से तमाम बीमारियों (COVID-19) के इलाज के लिए रामबाण जड़ी बूटियों को लोगों ने भुला दिया था, उसे जंगल समझ कर बर्बाद कर रहे थे लेकिन जब कोरोना के मामले बढ़ने पर इन्हीं जड़ी-बूटियों को लोग खोज रहे हैं.
इंटरनेट पर इनमिटी बूस्टप और वायरस जनित बीमारियों को दूर रखने वाले जड़ी-बूटियों (Herbs) की खोज हो रही है, आयुर्वेदिक तत्वों (Herbs) की खोज रहो रही है. बेड पर चाय-कॉफी से दिन की शुरुआत करने वाले लोग काढ़ा पी रहे हैं और वह काढ़ा, जिसमें कोई केमिकल नहीं, सिर्फ प्राकृतिक चीजें हैं.
काढ़ा के बढ़े डिमांड को लेकर सबसे अधिक मांग गिलोय (गूरीच) की हो रही है. गांव के पेड़ पौधे और जंगलों पर जब बड़ी मात्रा में गिलोय होता था, लेकिन आधुनिक मनुष्यों ने उसे काट कर फेंकना शुरू कर दिया. जब कोरोना वायरस आया तो गिलोय की जोर-शोर से तलाश हो रही है और व्यापारी दो सौ रुपये किलो बेच रहे हैं. दो सौ रुपये किलो में भी बहुत स्कार्सिटी हो रही है.
गिलोय एक ऐसी बेल है, जो व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर उसे बीमारियों से दूर रखती है. इसमें भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने का काम करते हैं. यह खून को साफ करती है, बैक्टीरिया से लड़ती है. लिवर और किडनी की अच्छी देखभाल भी गिलोय के बहुत सारे कामों में से एक है.
अगर किसी को बार-बार बुखार आता है तो उसके लिए गिलोय का सेवन अचूक उपाय है. गिलोय हर तरह के बुखार से लड़ने में मदद करती है. इसलिए डेंगू के अलावा मलेरिया, स्वाइन फ्लू में आने वाले बुखार से भी गिलोय छुटकारा दिलाती है.
यही हाल जंगली जिलेबी का है. इंटरनेट से जब पता चला कि जंगली जिलेबी (पेड़ पर फलने वाला) इम्यूनिटी बूस्टप करता है. वायरस खत्म करता है, कैंसर के लिए रामबाण है, चर्म रोग और पेट के लिए भी बहुत अधिक गुणकारी है. इसके बाद अचानक जंगली जिलेबी की डिमांड बढ़ गई और यह जिलेबी आज दो सौ रुपये किलो भी नहीं मिल रहा है. लोग हैरान हैं, परेशान हैं, कुल मिलाकर कहा जाय तो कोरोना ने बहुत कुछ सिखा दिया. बता दिया कि प्रकृति से जुड़ कर रहो, प्रकृति में वह सब कुछ है जो आज के भागम-भाग वाले युग के लिए सबसे बड़ी जरूरत है.