Black Fungus: बिना चिकित्सीय परामर्श के लंबे समय से जिंक और आयकर की गोलियां खाकर खुद को स्वस्थ समझने वाले लोगों के लिए ये सावधान होने का वक्त है. क्योंकि आपकी ये लापरवाही आपको ब्लैक फंगस (Black Fungus) जैसी जानलेवा बीमारी का शिकार बना सकती है.
जी हां, यह हम नहीं कह रहे, यह खुलासा किया है पुणे के मशहूर “केईएम” हॉस्पिटल में ईएनटी विभाग की सीनियर कंसल्टेंट डॉ. नीलम वैद ने.
डॉ. वैद के मुताबिक शरीर में जिंक और आयरन ज्यादा होने पर ब्लैक फंगस तेजी से बढ़ता है. हालांकि ये खतरनाक तभी होता है, जब शरीर की इम्यूनिटी बहुत कम होती है.
हाल में ब्लैक फंगस या म्यूकरमायकोसिस महामारी फैलने का एक कारण जिंक और आयरन का अधिक सेवन भी माना जा रहा है. डॉ. वैद का कहना है कि जिंक, आयरन, विटामिन सी और विटामिन डी जैसी दवाएं भी पूरी जांच पड़ताल के बाद और डॉक्टर की सलाह पर ही लेनी चाहिए, क्योंकि शरीर में इनकी अधिकता से भी कई समस्याएं हो सकती हैं.
कई लोग डॉक्टरों की सलाह के बिना ही इम्यूनिटी बढ़ाने के नाम पर कई दवाएं लंबे समय से ले रहे हैं. इनमें मलेरिया की दवा एचसीक्यू भी शामिल हैं. ये सब घातक साबित हो सकता है.
इनकी अधिकता से कई बीमारियां हो सकती हैं. एक बड़ा संकट ये भी हो सकता है कि जब इन दवाओं की जरूरत हो, तब शरीर में इनके लिए रेजिजटेंस विकसित हो जाएं और ये दवाएं काम ही नहीं करें.
जब कोरोना के गंभीर रोगियों में ब्लैक फंगस फैलने लगा तब इस तरह की कई समस्याएं सामने आयीं. दरअसल, फंगस और बैक्टीरिया हमारे देश की हवा में हर जगह मौजूद हैं.
यहां तक कि ये हमारे शरीर में भी मौजूद हैं, लेकिन जब हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत होता है, तो ये कोई नुकसान नहीं कर पाते हैं, लेकिन जब इम्यून सिस्टम कमजोर होता है तो ये घातक बन जाते हैं.
अप्रैल में जब ब्लैक फंगस एक महामारी की तरह फैलने लगा, तब इसके लिये स्टेरॉइड के अधिक इस्तेमाल को जिम्मेदार ठहरा दिया गया, लेकिन अब जो तथ्य सामने आ रहे हैं उससे पता चलता है कि इसके कई कारण हैं.
जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर और मेडिसिन विभाग के हेड डॉ. हेम शंकर शर्मा बताते हैं कि उनके अस्पताल में अप्रैल में ब्लैक फंगस के 16 मरीज भर्ती हुए, इनमें से 14 डायबिटीज के पुराने मरीज थे.
जाहिर है कि ये डायबटीज के रोगियों के लिए ज्यादा खतरनाक है, लेकिन एक बड़ा सवाल ये है कि कोरोना के पहली लहर में ये बीमारी क्यों नहीं फैली.
सरकार के एक बयान में स्टेरॉइड के अधिक उपयोग और उसके चलते डायबिटीज को इसके लिए जिम्मेदार तो ठहरा दिया गया, लेकिन इसे साबित करने के लिए कोई आंकड़ा नहीं दिया गया. इसके चलते कोरोना की एक मात्र जीवन रक्षक दवा स्टेरॉइड पर सवाल उठने लगा.
ब्रिटेन के वरिष्ठ डॉ. अशोक जैनर का कहना है कि स्टेरॉइड से शुगर बढ़ सकता है, लेकिन उसे नियंत्रित रखने के लिए इंसुलिन भी दिया जाता है. स्टेरॉइड एक पुरानी दवा है और इसके इस्तेमाल का प्रोटोकॉल पहले से तय है.
सभी डाक्टर इसके इस्तेमाल को समझ चुके हैं और इसमें चूक होना मुश्किल है. फेफड़े में इन्फेक्शन के इलाज लिए सिर्फ स्टेरॉइड ही अचूक दवा है. इसलिए सरकार को स्टेरॉइड पर सवाल उठाने की जगह ब्लैक फंगस का स्रोत पता करने के लिए गहरी जांच पड़ताल करनी चाहिए.
डॉ. जैनर का ये भी कहना है कि मेडिकल ऑक्सीजन की कमी होने पर रोगियों को इंडस्ट्रियल आक्सीजन दिया गया. इस बात की जांच की जानी चाहिए कि इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन की क्या भूमिका है. ब्लैक फंगस महामारी तभी शुरू हुई, जब इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन का इस्तेमाल शुरू हुआ.
ये भी देखना चाहिए कि इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन की आपूर्ति के समय टैंकर की साफ सफाई का उसी तरह ध्यान रखा गया या नहीं, जिस तरह मेडिकल आक्सीजन की आपूर्ति में रखा जाता है.
इम्युनॉलॉजिस्ट डॉ. विक्रम सरभई मानते हैं कि ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ लगे पानी और गैस मास्क या ट्यूब को साफ नहीं किया जाए, तो भी फंगल इन्फेक्शन की आशंका होती है.
सर्जन डॉ. समीर शाह ने एक पोस्ट में बताया है कि उनके पास दो ऐसे रोगी आए जिन्हें कोरोना तो हुआ था, लेकिन न तो उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया न आक्सीजन दिया गया और न स्टेरॉइड देने की जरूरत पड़ी.
इन्हें डायबिटीज भी नहीं थी. उनके मुताबिक जो मास्क वो पहन रहे थे वो भी ब्लैक फंगस का कारण हो सकता है. हमारे सांस की नमी से मास्क भी नम होता रहता है, जिसका हमें पता भी नहीं चलता है.
इस नमी के कारण मास्क पर ब्लैक फंगस पनप सकता है और सांस के जरिए हमारे शरीर में पहुंच सकता है. इसलिए डाक्टरों की सलाह है कि मास्क रोज बदलें या फिर उसे 20 सेकेंड तक साबुन से धोकर सुखाने के बाद ही दोबारा इस्तेमाल करें.
Disclaimer: शैलेश वरिष्ठ पत्रकार हैं और ‘कोरोना – जानो, समझों, बचो’ किताब के मुख्य लेखक भी हैं.