भारत में बड़ी संख्या में इस्तेमाल में हो रही कोविशील्ड जिस कंपनी ने बनाई है उस कंपनी की वैक्सीन को कई देशों में सस्पेंड कर दिया गया है. कोविशील्ड को ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका (AstraZeneca Vaccine) ने मिलकर डेवलेप किया है जिसे भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया बना रही है. एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन पर डेनमार्क, नॉर्वे, आइसलैंड ने ब्लड क्लॉटिंग की शिकायतों के बाद रोक लगा दी है. यूरोपीय संघ ने इस पर जांच के भी आदेश दे दिए हैं.
भारत के लिए कितनी बड़ी चिंता?
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के पूर्व डायरेक्टर जनरल प्रोफेसर एन के गांगुली मानते हैं कि भारत के लिए इसमें ज्यादा डर की बात नहीं है. उनके मुताबिक, शुरुआती जांच में ब्लड क्लॉटिंग का वैक्सीन से संबंध स्थापित नहीं हो पाया है. उनके मुताबिक, “अब तक भारत और विदेश में करोड़ों लोगों को एस्ट्राजेनेका (AstraZeneca) की वैक्सीन दी जा चुकी है और इनमें इस तरह का कोई दुष्प्रभाव सामने नहीं आया है. कई बार किसी और बीमारी का इलाज करा रहे लोग या अन्य दवा ले रहे लोगों में ऐसे आकस्मिक मामले आए हैं.”
उनके मुताबिक, यूके में एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रही है और वहां की अथॉरिटी ने डाटा की जांच की है और ये माना है कि इन मामलों का संबंध एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन से नहीं है.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) की दुनियाभर में वैक्सीन पहुंचाने की मुहिम कोवैक्स (COVAX) के तहत एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन का भी कई देशों में वितरण और इस्तेमाल हो रहा है.
क्या वैक्सीन को हर साल लगवाना होगा?
वैक्सीन लगाने के बाद शरीर में कोविड-19 की प्रतिरोधी एंटीबॉडी बनती हैं. फिलहाल एंटीबॉडी को बूस्ट देने के लिए भारत में 28 दिन के अंतराल में दो डोज लगाए जा रहे हैं. प्रोफोसर गांगुली के मुताबिक, वैक्सीन लगने के एक महीने के बाद तक अधिकतर मामलों में 10 यूनिट एंटीबॉडी शरीर में बन जाती है.
भारत बायोटेक (Bharat Biotech) के दिसंबर के एक ब्लॉग के मुताबिक, कोवैक्सीन के फेज-2 क्लीनिकल ट्रायल के बाद ये पाया गया कि 3 महीनों तक सभी केस में एंटीबॉडी का स्तर ऊंचा रहा. इस आधार पर कंपनी का मानना है कि कोवैक्सीन से बनी एंटीबॉडी 6-12 महीनों तक शरीर में रह सकती है. हालांकि, प्रोफेसर गांगुली ने कहा है कि इसपर टिप्पणी के लिए क्लिनिकल ट्रायल के बाद के डाटा को देखना होगा.
उनके मुताबिक, फाइजर और कोविशील्ड (AstreaZeneca Vaccine) जैसी वैक्सीन देने पर 10 फीसदी मामलों को छोड़कर अन्य में 4 महीनों तक एंटीबॉडी सही मात्रा में हैं. दूसरा इंजेक्शन इस समय सीमा के अंदर ही देने से बेहतर नतीजे आएंगे . इस समय एंटीबॉडी घटने से पहले ये बूस्टर देने पर जोर है.
प्रोफेसर गांगुली कहते हैं कि मौजूदा डाटा के मुताबिक ये बूस्टर हर साल देना पड़ सकता है. हालांकि अभी और डाटा का इंतजार करना होगा.
जॉन्सन एंड जॉन्सन की एक डोज वाली वैक्सीन से उम्मीदें
क्वाड की पहल के तहत भारत जॉन्सन एंड जॉन्सन (Johnson & Johnson) की एक डोज वाली वैक्सीन की मैन्युफैक्चरिंग कर सकता है. प्रोफेसर एन के गांगुली को जॉन्सन एंड जॉन्सन की वैक्सीन से बड़ी उम्मीदें हैं. J&J की वैक्सीन को रेफ्रिजरेटर के तापमान में भी स्टोर किया जा सकता है. साथ ही इस वैक्सीन की एफिशियंसी भी है. प्रोफेसर गांगुली मानते हैं कि एक डोज वाली वैक्सीन होने की वजह से लोगों को दोबारा अस्पताल नहीं आना होगा जिससे ज्यादा तेजी से वैक्सीनेशन दी जा सकेगी. इससे लॉजिस्टिक्स में भी कमी आएगी.
यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी ने जॉन्सन एंड जॉन्सन की वैक्सीन (Johnson & Johnson Vaccine) को यूरोपीय संघ के 27 देशों में इस्तेमाल के लिए मंजूरी दे दी है. यूरोपीय संघ में मंजूरी पाने वाली ये चौथी वैक्सीन है. संघ के दवा रेगुलेटर के मुतबिक वैक्सीन का बारीकी से आकलन किया गया है और सुरक्षा, क्वालिटी और कार्यक्षमता के पैमानों पर खरी साबित हुई है.
इससे पहले जॉन्सन एंड जॉन्सन की वैक्सीन को अमेरिका में इस्तेमाल किया जा रहा है. अमेरिका ने J&J की एक डोज वाली वैक्सीन (Vaccine) को फरवरी में ही मंजूरी दी थी. अमेरिका में फिलहाल फाइजर, मॉडर्ना और जॉन्सन एंड जॉन्सन की वैक्सीन इस्तेमाल में लाई जा रही है. अमेरिकी प्रेसिडेंट जो बाइडन ने ऐलान किया है कि 1 मई से देश में सभी व्यस्क वैक्सीनेशन के लिए पात्र होंगे.
भारत में बढ़ते कोरोना मामले
स्वास्थ्य मंत्रालय के डाटा के मुताबिक, पिछले एक दिन में देश में साल 2021 के सबसे ज्यादा कोरोना मामले दर्ज हुए हैं. प्रोफेसर गांगुली का कहना है कि इसके लिए टेस्टिंग पर जोर होना चाहिए – मामले बढ़ने से पहले इसका अनुमान पाया जा सके और इन्हें बढ़ने से रोका जा सके.