कोविड की दूसरी लहरः पिछले साल से कम हुई हैं इलाज की दरें

कोविड-19 की पहली लहर के दौरान अस्पतालों ने इलाज के लिए भारी बिल वसूले. लेकिन, सरकारों के कंट्रोल के बाद इस साल इलाज का खर्च कम हुआ है.

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PTI, क्रिटिकल प्लान हर साल रिन्यू होता है और तब नो क्लेम बोनस मिलता है.

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कोविड-19 की दूसरी लहर से एक गंभीर चिंता पैदा हो गई है. गुजरे एक साल में कई लोगों को अपनी नौकरियां गंवानी पड़ी हैं, कइयों की सैलरी में कटौती हुई है और तमाम लोगों के कामधंधे खत्म हो गए हैं. ऐसे में वक्त में इलाज पर होने वाले भारी खर्च ने एक बड़ी परेशानी खड़ी कर दी है.
2020 में कोविड की पहली लहर के बाद से हॉस्पिटल्स में इलाज की सबसे तगड़ी चोट मध्यम वर्ग पर पड़ी है. बिना वेंटिलेटर सपोर्ट के अस्पताल में 10-14 रहने का खर्च करीब 10 लाख रुपये बैठ रहा था.

अभी तक दूसरी लहर में राहत की बात ये लग रही है कि इसमें मृत्यु दर कम है, हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर थोड़ा मजबूत हुआ है और वैक्सीनेशन प्रोग्राम भी तेजी से बढ़ रहा है. लेकिन, जिस तरह से वायरस पैर पसार रहा है, ऐसे में आपकी जेब के लिए यह कितना बड़ा खतरा साबित हो सकता है?

हॉस्पिटल अधिकारियों का कहना है कि दूसरे चरण में अस्पताल में रुकने की अवधि कम हुई है. 2020 में यह 10 दिन से ज्यादा थी. अब यह घटकर 5-7 दिन पर आ गई है.

कोलाकाता के AMRI हॉस्पिटल के एक अधिकारी ने कहा, “जनरल बेड पेशेंट्स के लिए इलाज का खर्च करीब 10 फीसदी कम हुआ है, लेकिन ICU का खर्च वही है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज कितने दिन वेंटिलेटर या HDU में रहता है.”

एक अन्य अफसर ने बताया कि सरकारी गाइडलाइंस के मुताबिक, ऐसा कोई भी मरीज जिसे लगातार तीन दिनों तक बुखार नहीं आता है, उसे डिस्चार्ज कर दिया जाता है और होम क्वारंटीन के लिए घर भेज दिया जाता है.
हालांकि, कोविड का इलाज आयुष्मान भारत स्कीम में कवर होता है. इसमें हर परिवार सालाना 5 लाख रुपये का इलाज करा सकता है.

पश्चिम बंगाल के स्वास्थ्य विभाग के एक अफसर ने बताया, “पहले चरण के मुकाबले अब हॉस्पिटलाइजेशन का खर्च कम है. हालांकि, राज्य सरकार अपने अस्पतालों में कोविड मरीजों का फ्री में इलाज करा रही है, लेकिन मरीज निजी अस्पतालों में भी स्वास्थ्य साथी इंश्योरेंस कवर के तहत कोविड का इलाज करा सकता हैं.”

2020 में कोविड की पहली लहर के दौरान पूरे देश में हाहाकार का माहौल था. उस वक्त अस्पतालों ने मरीजों से भारी-भरकम वसूली की थी. उस वक्त अक्सर हॉस्पिटल 1 लाख रुपये रोजाना का बिल ले रहे थे.

इसे लेकर मचे बवाल के बाद अलग-अलग राज्य सरकारों ने अस्पतालों के चार्ज पर लगाम लगाई. दूसरी लहर के साथ अब ये कंट्रोल फिर से लागू हो गए हैं.

पिछले साल जून-जुलाई में तकरीबन सभी राज्यों ने पीपीई किट, डॉक्टर कंसल्टेशन, आइसोलेशन बेड, आईसीयू चार्ज की ऊपरी सीमा तय कर दी थी.
नीति आयोग ने जून के तीसरे हफ्ते दिल्ली में निजी अस्पतालों में इलाज के खर्च की सीमा तय कर दी थी.

कोलकाता के एक हॉस्पिटल के प्रवक्ता ने कहा, “लोगों की जेब पर कितनी चोट लगेगी यह हॉस्पिटल की दर और हॉस्पिटलाइजेशन की अवधि पर निर्भर करता है.”

केरल में निजी अस्पतालों में इलाज का खर्च काफी कम है. जुलाई में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने निजी अस्पतालों के लिए रोजाना के चार्ज को 2,300 रुपये पर सीमित कर दिया था. आईसीयू वॉर्ड में यह खर्च 6,500 रुपये तय कर दिया गया. हालांकि, केरल में सरकारी अस्पतालों में इलाज बिलकुल फ्री है.

महाराष्ट्र में भी अस्पतालों में इलाज के खर्च को सीमित किया गया था. हॉस्पिटलाइजेशन का खर्च अधिकतम 4,000 रुपये रोजाना रखा गया, जबकि बिना वेंटीलेटर के ICU का खर्च 7,500 रुपये और वेंटीलेटर वाले ICU वॉर्ड का खर्च 9,000 रुपये रखा गया है.
तेलंगाना में भी बेड चार्ज महाराष्ट्र जितना ही रखा गया है.
महाराष्ट्र में कॉस्ट में पीपीई किट और महंगी दवाइयां और टेस्ट शामिल नहीं किए गए हैं.

जून में तमिलनाडु सरकार ने ऐलान किया कि चीफ मिनिस्टर्स कॉन्प्रिहैंसिव हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम के लाभार्थियों से 15,000 रुपये रोजाना से ज्यादा नहीं लिए जा सकते हैं. नॉन-क्रिटिकल मरीजों के लिए चार्ज 5,000 रुपये प्रतिदिन से ज्यादा नहीं लिया जा सकता है.

उत्तर प्रदेश में प्रशासन ने इलाज के खर्च को 8,000 रुपये और 15,000 रुपये प्रतिदिन रखा है. टियर ए, बी, सी शहरों में ये दरें अलग-अलग हैं.

Published - April 8, 2021, 04:09 IST