ऑनलाइन ‘डार्क पैटर्न’ के खतरे से निपटने के तरीके सुझाने के लिए गठित टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय इस पर विचार कर रहा है। ‘डार्क पैटर्न’ लोगों को ऑनलाइन धोखा देने या उनकी पसंद में हेरफेर करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति है. इस रणनीति के जरिए e-Commerce कंपनियां ग्राहकों के साथ धोखा करके उन्हें सामान खरीदने के लिए मजबूर करती हैं. कई बार ग्राहक के कार्ट में उन चीजों को भी शामिल कर दिया जाता है जिनका ग्राहक ने चुनाव नहीं किया होता, कई बार ऑर्डर देने से पहले ग्राहक को अलग भाव दिखाया जाता है और पेमेंट करते समय भाव बदल दिया जाता है. कई बार किसी प्रोडक्ट के बारे में भ्रामक जानकारी देकर ग्राहक को उसे खरीदने के लिए प्रेरित किया जाता है.
इस टास्क फोर्स का गठन 28 जून को किया गया था. उसने 14 अगस्त को नोडल उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय को दिशानिर्देशों का मसौदा सौंपा. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘‘ मंत्रालय दिशानिर्देशों के मसौदे पर गौर कर रहा है और जल्द ही इस संबंध में जानकारी दी जाएगी.’’
मसौदे में टास्क फोर्स ने स्पष्ट रूप से ‘डार्क पैटर्न’ को परिभाषित किया है कि यह उपभोक्ता हितों के खिलाफ है और ऑनलाइन मंचों द्वारा इसका इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. इसमें ‘डार्क पैटर्न’ के विभिन्न प्रकार को भी वर्गीकृत किया गया है जिनका विभिन्न e-Commerce प्लेटफॉर्म पर इस्तेमाल किया जाता है.
अमेजन, फ्लिपकार्ट, गूगल, मेटा, ओला कैब्स, स्विगी, ज़ोमैटो, शिप रॉकेट, गो-एमएमटी और नैसकॉम के प्रतिनिधि कार्यबल का हिस्सा हैं. सभी ने विस्तृत चर्चा के बाद मसौदे को अंतिम रूप दिया है. अधिकारी ने कहा, ‘‘ इस समस्या से निपटने के लिए पूरा उद्योग एकसाथ है।’’ अभी ‘डार्क पैटर्न’ भ्रामक विज्ञापनों के तौर पर नजर आते हैं.