निवेश के मामले में हेराफेरी पर बाजार नियामक सेबी कड़ा रुख अपना रहा है. पूंजी बाजार में घोटाला उजागर होने पर ताबड़तोड़ कार्रवाई की जा रही है. ताजा मामला ब्रोकिंग फर्म कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग से जुड़ा है. सेबी ने कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग और उसके प्रवर्तक व प्रबंध निदेशक (एमडी) सी. पार्थसारथी पर सात साल का प्रतिबंध लगा दिया है. अब ये लोग बाजार में स्टॉक मार्केट में सात साल तक प्रवेश नहीं कर पाएंगे.
21 करोड़ का जुर्माना
निवेशकों के साथ हेराफेरी के मामले बाजार नियामक ने कंपनी कंपनी पर 21 करोड़ रुपए का जुर्माना भी लगाया है. सेबी ने यह कार्रवाई कंपनी की ओर से ग्राहकों के साथ पॉवर ऑफ अटार्नी का दुरुपयोग और उनकी रकम का हस्तांतरण समूह की दूसरी कंपनियों को करने पर लगाया है. यह तीन साल से ज्यादा पुराना है. घोटाला उजागर होने पर स्टॉक एक्सचेंजों ने दिसम्बर 2019 में कार्वी के ट्रेडिंग टर्मिनल निलंबित कर दिए थे. ग्राहकों के पैसों का दुरुपयोग करने पर कंपनी को डिफॉल्टर घोषित कर दिया गया.
पैसे लौटाने का आदेश
सेबी ने कार्वी रियल्टी और कार्वी कैपिटल को तीन महीने के भीतर ग्राहकों के 1443 करोड़ रुपए लौटाने का आदेश दिया है. रकम लौटाने में विफल रहने पर पर नेशनल स्टॉक एक्सचेंज को रिकवरी के लिए उसकी परिसंपत्तियों पर नियंत्रण का निर्देश दिया गया है. साथ ही पार्थसारथी को किसी सूचीबद्ध कंपनी या अन्य कंपनी में पद लेने पर 10 साल तक रोक लगा दी है जिसका इरादा आम लोगों से रकम जुटाने का हो. कंपनी के दो अन्य निदेशकों को भी दो साल तक कोई पद लेने पर रोक लगाई गई है और 5-5 लाख रुपए जुर्माना लगाया गया है. इस तरह सेबी की कार्रवाई का दायरा लगाता बढ़ता जा रहा है.
तीन लाख ग्राहक पीड़ित
सेबी की जांच में पता चला है कि कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग के करीब तीन लाख ग्राहक अपने फंडों व शेयरों के निपटान के लिए अभी भी प्रतीक्षा कर रहे हैं जबकि तीन साल पहले अंतरिम आदेश पारित किया गया था. अगर सेबी उधार देने वाले वित्तीय संस्थानों को गिरवी शेयर के बदले दिए गए कर्ज की वसूली का आदेश जारी कर देता तो बाजार में उथल-पुथल मच सकती है. इससे बाजार के अन्य निवेशक भी प्रभावित होते. इस वजह से सेबी वित्तीय धोखाधड़ी के मामलों में सख्त संदेश देने के लिए धीरे-धीरे कार्रवाई कर रहा है.
कैसे हुआ खुलासा?
घोटाले से पहले स्टॉक ब्रोकिंग क्षेत्र में कार्वी बड़ी कंपनी थी. ब्रोकिंग कंपनी ने अपने ग्राहकों के बिना बताए फाइनेंस कंपनियों को शेयर गिरवी रखकर कर्ज उठा लिया. कंपनी ने सितंबर 2016 में 789.41 करोड़ रुपए का कर्ज लिया. कर्ज की यह रकम लगातार बढ़ती चली गई. साल 2019 में कुल कर्ज बढ़कर 2,032.67 करोड़ रुपए हो गया. ब्याज जोड़कर यह रकम 2700 करोड़ रुपए हो गई. शेयर बाजार में या घोटाल डीमैट स्कैम के नाम से चर्चित हुआ.