वर्ल्ड बैंक ने कमोडिटी मार्केट को लेकर जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पश्चिम एशिया में युद्ध की वजह से वैश्विक कमोडिटी बाजार को दोहरा झटका लग सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि युद्ध की वजह से अभी तक ग्लोबल कमोडिटी बाजार पर ज्यादा असर नहीं पड़ा है और युद्ध शुरू होने से लेकर अबतक कच्चे तेल की कीमतों में करीब 6 फीसद की बढ़ोतरी ही हुई है, लेकिन हालात ज्यादा बिगड़े और 2003 में इराक युद्ध जैसे हालात बने तो ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल की रोजाना सप्लाई 50 लाख बैरल तक घट सकती है और कच्चे तेल का भाव 121 डॉलर तक जा सकता है.
वहीं हालात अगर 1970 के अरब ऑयल इंबार्गो जैसे बने तो रोजाना सप्लाई में 80 लाख बैरल कमी आएगी और भाव 157 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाएगा. विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री और डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट इंदरमीत गिल के मुताबिक नीति निर्माताओं को मौजूदा हालात में सतर्क रहने की जरूरत है. उनका कहना है कि मध्यपूर्व में तनाव अगर बढ़ता है तो रूस-यूक्रेन युद्ध के साथ ही मध्य पूर्व से भी कई दशक में पहली बार ऊर्जा के मोर्चे पर दोहरा झटका लग सकता है.
रिपोर्ट के मुताबिक संघर्ष का कमोडिटी की कीमतों पर अब तक मामूली प्रभाव पड़ा है और इससे यह साबित होता है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के पास तेल की महंगाई के झटके से बचाव के लिए बेहतर क्षमता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 1970 के दशक के ऊर्जा संकट के बाद से दुनियाभर के देशों ने इस तरह के झटकों से बचने के लिए अपनी सुरक्षा प्रणाली को मजबूत किया है. देशों ने कच्चे तेल की निर्भरता पर कम कर दिया है.
देशों के पास तेल निर्यातकों का ज्यादा बड़ा डायवर्सिफाइड आधार है और रेन्युएबल स्रोतों समेत कई तरह के ऊर्जा संसाधन है. यही नहीं कुछ देशों ने कीमतों के ऊपर ऑयल की कमी के प्रभाव को कम करने के लिए रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार भी स्थापित किए हैं. सप्लाई के समन्वय के लिए व्यवस्था बनाई है और वायदा बाजार विकसित किए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक इन सुधारों से इस बात का पता चलता है कि संघर्ष के बढ़ने पर अतीत की तुलना में कच्चे तेल की कीमतों पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा.