ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने बीते कुछ वर्षों के दौरान स्पॉट टेंडर के जरिए कच्चे तेल की खरीदारी में बढ़ोतरी की है. पेट्रोलियम पर बनी संसदीय स्थायी समिति ने महंगे तेल की खरीद पर सवाल उठाए हैं. साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) से कच्चे तेल की खरीदारी की योजना बनाने की सलाह दी है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एक सरकारी अधिकारी का कहना है कि संसदीय समिति की रिपोर्ट के आधार पर पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय जल्द ही इस मामले की जांच शुरू कर सकता है.
संसद में हाल ही में पेश किए गए एक विधेयक में समिति ने इस बात पर जोर दिया है कि स्पॉट टेंडर के जरिए कच्चा तेल खरीद की औसत लागत टर्म कॉन्ट्रैक्ट से कम होनी चाहिए. गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों में स्पॉट टेंडर के जरिए कच्चे तेल की खरीद में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. 2022-23 में किए गए कुल तेल आयात में से स्पॉट टेंडर के जरिए किए गए आयात की हिस्सेदारी 35.13 फीसद तक पहुंच गई थी, जो कि 2017-18 में 27.58 फीसद थी.
समिति ने एक सिफारिश की है कि मंत्रालय के द्वारा एक ऑडिट किया जाना चाहिए ताकि इसकी जानकारी मिल सके की स्पॉट टेंडर के जरिए खरीद से क्या वास्तव में लागत सस्ती रही है. पेट्रोलियम मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक समिति की सिफारिशों पर गौर किया है और एक ऑडिट की जाएगी. उनका कहना है कि ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने स्पॉट टेंडर के जरिए कच्चा तेल आयात बढ़ाने की कोशिश की है. सामान्यतौर पर माना जाता है कि स्पॉट टेंडर के जरिए सावधि सौदों के मुकाबले सस्ती दर पर ऑयल मिल जाता है.