भारत का ऑयल इंपोर्ट बिल (Oil Import Bill) चालू वित्त वर्ष 2024-25 में बढ़कर 101-104 अरब डॉलर हो सकता है. बीते वित्त वर्ष यानी FY24 में यह 96.1 अरब डॉलर था. रेटिंग एजेंसी इक्रा (ICRA) ने कहा है कि ईरान-इजराइल युद्ध के कारण आया प्रभावित हो सकता है. इक्रा के अनुसार, रूस से आने वाले तेल की कम कीमत से वित्त वर्ष 2023-24 के 11 महीने (अप्रैल-फरवरी) में 7.9 अरब डॉलर की बचत होने का अनुमान है जो वित्त वर्ष 2022-23 में हुए 5.1 अरब डॉलर की बचत से अधिक है.
बढ़ सकती है भारत की तेल निर्भरता
इक्रा ने कहा है कि चालू वित्त वर्ष में भारत की तेल आयात निर्भरता उच्च स्तर पर बनी रह सकती है. अगर रूस क्रूड आयल की खरीद पर छूट मौजूदा समय के हिसाब से बनी रहती है और कच्चे तेल की औसत कीमत 85 डॉलर प्रति बैरल रहे तो भारत का आयल इंपोर्ट बिल वित्त वर्ष 2023-24 के 96.1 अरब डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 101-104 अरब डॉलर हो जाएगा.
इक्रा ने कहा है कि ईरान-इजराइल के बीच चल रहा युद्ध अगर और बढ़ता है तो उससे कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है. क्रूड ऑयल की कीमत में बढ़ोतरी से चालू वित्त वर्ष में नेट ऑयल इंपोर्ट की कीमतें भी प्रभावित होंगी.
नेट ऑयल इंपोर्ट पड़ेगा महंगा
भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों के 85 फीसद से अधिक के लिए आयात पर निर्भर है. कच्चे तेल को रिफाइनरी में पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधन में बदला जाता है. इक्रा के विश्लेषण के आधार पर इस वित्त वर्ष में कच्चे तेल की औसत कीमत में अगर 10 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी होती है तो नेट ऑयल इंपोर्ट की कीमतों में 12-13 अरब डॉलर की बढ़ोतरी होगी. इस दबाव से सीएडी (चालू खाता घाटा) सकल घरेलू उत्पाद के 0.3 फीसद तक बढ़ जाएगा.
तेल आयात पर खतरा!
गौरतलब है कि यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद से कुछ पश्चिमी देशों ने रूस से तेल आयात बंद कर दिया. इसके बाद रूस ने बाकी के देशों के लिए क्रूड आयल पर छूट की पेशकश की. इसके बाद, भारतीय के रिफाइनरियों ने रूस से छूट वाला तेल लेना शुरू कर दिया. लेकिन इस बीच पश्चिम एशिया में चल रहे उठा-पटक के चलते आयात पर खतरा बढ़ता जा रहा है. दरअसल, भारत सऊदी अरब, इराक और UAE से तेल आयात करता है. इसके अलावा, होर्मुज जलडमरूमध्य के जरिए कतर से तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) का आयात करता है, जो ओमान और ईरान के बीच का समुद्री रास्ता है.