करुणाशंकर अपने खेत में लगी गेहूं की फसल की बाली को हथेली से मसलकर दाने के आकार को परख रहे हैं. बीते एक साल से बाजार में गेहूं के दाम ऊंचे हैं. लेकिन इसका कोई फायदा करुणाशंकर को नहीं मिल पाता था. छोटी जोत के किसान है करुणाशंकर. परिवार के खाने भर को ही गेहूं खेत में हो पाता है. वो भी मानसून मेहरबान रहे तब महंगी खाद, दवा, पानी, बिजली की लागत के बाद मानसून की मिन्नतें करनी पड़ती हैं.
इस बार का बजट चुनावी!
अभी राहत इसलिए है कि क्योंकि सरकार ने मुफ्त अनाज की गारंटी दे रखी है, तो दो बीघा में जो 7 – 8 क्विंटल गेहूं हो जाता उसे मंडी में बेच देते. कुछ कमाई हो जाती है. करुणाशंकर को इस साल बजट का बेसब्री से इंतजार है. पूरी उम्मीद है कि उन्हें सरकार से नई गारंटी मिलेगी. इस बार बजट चुनावी होगा. यानी सरकार केवल मंशा बताएगी कि अगर सरकार में वापस आए तो आपके लिए क्या करेंगे. जुलाई में नई सरकार लाएगी इस साल का पूरा बजट. इस बार का बजट तो बस चुनावी होगा.
क्या चाहते हैं किसान?
लेकिन अपने खेत की मेड़ पर बैठकर करुणाशंकर पिछला चुनावी बजट इसलिए बिसूर रहे हैं क्योंकि उन्हें याद है कि वह 2019 का चुनावी बजट ही था जब सरकार ने किसानों को 6000 रुपए की सीधी मदद देने का ऐलान किया था. यह पहला ऐसा मौका था जब सरकार ने सीधे पैसे हाथ में रखे थे. खाद सब्सिडी, बीमा, कर्ज माफी तो कैसे मिली, किसे मिली इसकी सटीक नापजोख मुश्किल है. लेकिन किसान के खाते में सीधी मदद खुशियों की गारंटी है.
किसानों को चाहिए ये दो गारंटी
करुणाशंकर को इस बार बजट से दो गारंटियां चाहिए. पहली, किसान सम्मान निधि के रास्ते सरकार कुछ सीधी मदद बढ़ा दे. चर्चा है कि सरकार महिला किसानों को सीधी मदद दे सकती है. दूसरा, मनरेगा का आवंटन बढ़े जिससे बेटा और बहु को ज्यादा काम मिल सके. यही नियमित आय का जरिया है. सरकार को इस साल भी अनुमान से ज्यादा बजट इस खाते में डालना पड़ा है.
करुणाशंकर जैसे छोटे किसान बजट से गारंटियों की उम्मीद लगाएं हैं तो बड़े किसान कृषि पर पर सरकार कोई टैक्स न लगा दे इस घोषणा को कान लगाकर सुनने को तैयार बैठे हैं.