अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगले कुछ माह में होने वाले आम चुनाव से पहले एक फरवरी को आने वाले अंतरिम बजट में सरकार लोकलुभावन घोषणाओं से बचेगी और राजकोषीय मजबूती पर ध्यान देना जारी रखेगी. हालांकि, अर्थशास्त्रियों का कहना है कि पुरानी पेंशन योजना को लागू करने की मांग के बीच एनपीएस (नई पेंशन प्रणाली) को आकर्षक बनाने के साथ महिलाओं के लिए अलग से कुछ कर छूट मिलने की उम्मीद है. साथ ही चुनावी वर्ष में मानक कटौती की राशि बढ़ाकर नौकरीपेशा और मध्यम वर्ग को कुछ राहत दिए जाने की भी संभावना है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद में एक फरवरी को 2024-25 का अंतरिम बजट पेश करेंगी. यह उनका छठा बजट है. जाने-माने अर्थशास्त्री और वर्तमान में बेंगलुरु स्थित डॉ. बी आर आंबेडकर स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स यूनिवर्सिटी के कुलपति एन आर भानुमूर्ति ने कहा कि सरकार के पिछले रुख को देखते हुए आगामी अंतरिम बजट के लोकलुभावन होने की संभावना नहीं है. इसका कारण यह है कि प्रधानमंत्री पहले ही गरीब कल्याण अन्न योजना जैसे कुछ उपायों की घोषणा कर चुके हैं, जिनके आने वाले वर्ष में भी जारी रहने की संभावना है.
उन्होंने कहा कि हालांकि, ऐसी उम्मीदें हैं कि कई राज्यों में पुरानी पेंशन योजना के राजनीतिक मुद्दा बनने को देखते हुए सरकार पेंशन व्यवस्था (एनपीएस) को आकर्षक बनाने के लिए संभवत: बजट में कुछ घोषणा कर सकती है. उल्लेखनीय है कि पंजाब, राजस्थान समेत कुछ राज्यों में पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू की गयी है. इसको देखते हुए अन्य राज्यों के कर्मचारियों के साथ केंद्रीय कर्मचारी भी पुरानी पेंशन लागू करने की मांग कर रहे हैं. इसको देखते हुए सरकार ने राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) की समीक्षा और उसमें सुधार के लिए वित्त सचिव टी वी सोमनाथन की अध्यक्षता में पिछले साल अप्रैल में समिति बनायी थी. समिति संभवत: इस महीने के अंत में अपनी रिपोर्ट देगी.
चुनाव से पहले नौकरीपेशा और मध्यम वर्ग को कर मोर्चे पर राहत के बारे में पूछे जाने पर भानुमूर्ति ने कहा कि यह अंतरिम बजट होगा. ऐसे में कर व्यवस्था में ज्यादा बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि इसका मकसद पूरे साल का बजट पेश होने तक केवल व्यय बजट के लिए मंजूरी लेनी होता है. वैसे भी कर व्यवस्था और संरचना में बार-बार बदलाव से अनुपालन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. इसलिए, मुझे आयकर व्यवस्था में किसी भी तरह के बदलाव की उम्मीद नहीं है.
सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज के चेयरमैन सुदिप्तो मंडल ने भी कहा कि पिछले अनुभव से पता चलता है कि इस सरकार ने राजकोषीय नीतियों का पालन किया है. उदाहरण के लिए चुनावी वर्ष 2019 में भी बहुत अधिक लोकलुभावन योजनाओं और खर्च का सहारा नहीं लिया गया. इसलिए मुझे आगामी बजट में बहुत अधिक लोकलुभावन योजनाओं की उम्मीद नहीं है. हालांकि, किसान सम्मान निधि जैसी पुरानी योजनाएं बरकरार रखी जा सकती हैं. कर मोर्चे पर राहत के बारे में उन्होंने कहा कि नौकरीपेशा और मध्यम वर्ग को आयकर मोर्चे पर कुछ राहत मिल सकती है. मानक कटौती की राशि बढ़ाकर कुछ राहत दिये जाने की उम्मीद है.
फिलहाल मानक कटौती के तहत 50,000 रुपए की छूट है. आर्थिक शोध संस्थान, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर लेखा चक्रवर्ती ने कहा कि बजट लोकलुभावन नहीं होगा. वित्त मंत्री राजकोषीय मजबूती के रास्ते से नहीं हटेंगी. हालांकि, बढ़ती खाद्य महंगाई और आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान को देखते हुए किसानों को लक्षित नकद हस्तांतरण बना रहेगा. कर राहत के बारे में पूछे जाने पर म्यूनिख स्थित इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस (आईआईपीएफ) की संचालन प्रबंधन मंडल की सदस्य की भूमिका भी निभा रही लेखा चक्रवर्ती ने कहा कि महिला मतदाताओं पर जोर को देखते हुए आयकर कानून की धारा 88सी के तहत महिलाओं के लिए कुछ अलग से कर छूट मिल सकती है. हालांकि, उन्होंने कहा कि चूंकि भारतीय आबादी के मुकाबले आयकरदाताओं की संख्या बेहद कम है, ऐसे में महिलाओं और पुरुषों के लिए कर राहत से जुड़ी घोषणाओं का बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है.