Agriculture Budget 2021: मोदी सरकार पर 2022 तक किसानों की आय दोगुनी (Farmers Income) करने का दबाव बढ़ रहा है. क्योंकि इस वादे को पूरा करने के लिए अब महज एक साल बाकी हैं. इसलिए कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों का मानना है कि सरकार बजट में आय बढ़ाने की दिशा में कुछ अहम फैसले ले सकती है. देश के किसानों ने सरकार से कई बार मनरेगा (MGNREGA) को कृषि क्षेत्र से जोड़ने की मांग की है. ताकि किसानी की लागत घटे और आय में इजाफा हो. लेकिन अब तक इस पर सरकार ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं. क्या इस बार बजट (Budget 2021) में सरकार ऐसी कोई घोषणा करेगी? किसान तो उम्मीद कर ही रहे हैं.
यह मांग काफी पुरानी है. सितंबर 2011 में तत्कालीन कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा था कि मनरेगा को कृषि से जोड़ने पर विचार किया जा रहा है. उन्होंने राज्य सरकारों से इस मुद्दे पर सुझाव देने का आग्रह किया था. किसानों की इस मांग पर सरकार कितने कदम आगे बढ़ी, यह जानने से पहले यह समझना बहुत जरूरी है कि आखिर मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून) को कृषि से कैसे जोड़ा जाएगा. क्योंकि कृषि तो निजी काम होगा. सरकार तो खेती करवाती नहीं. मनरेगा की ड्रॉफ्टिंग कमेटी से जुड़े रहे ग्रामीण अर्थव्यवस्था के जानकार बिनोद आनंद ने हमारे इस सवाल का जवाब दिया.
Agriculture Budget 2021: आनंद कहते हैं, “इस वक्त मजदूर और किसान दोनों संकट में हैं. इसे जोड़ने से दोनों की समस्या का हल हो जाएगा. मजदूर को ज्यादा रोजगार मिलेगा, पैसा होगा और कृषि में लागत कम होगी. मनरेगा में अभी भ्रष्टाचार बहुत है. ग्राम प्रधान, सचिव, बीडीओ और सीडीओ सब मिलकर ज्यादातर काम कागज में करवाते हैं. लेकिन जब इसे कृषि से जोड़ दिया जाएगा तो मजदूर से किसान खेत में काम करवाएगा.”
“मजदूर को प्रति कार्य दिवस 300 रुपये सरकार दे और 100-150 रुपये किसान. इससे इन मजदूरों की मेहनत का इस्तेमाल गैर जरूरी कार्यों में बंद हो जाएगा. इस समय ग्रामीण विकास और कृषि मंत्रालय दोनों एक ही व्यक्ति नरेंद्र सिंह तोमर के पास है इसलिए यह फैसला लेने में तकनीकी दिक्कत नहीं आएगी.”
Agriculture Budget 2021: मनरेगा की शुरुआत साल 2006 में हुई थी. उसके बाद कोविड संकट को देखते हुए पहली बार इसका बजट 1 लाख करोड़ रुपये के पार गया पहुंचा है. चालू वित्त वर्ष (2020-21) में इस पर 1,01,500 करोड़ रुपये खर्च किए जाने का प्रावधान है. इससे पहले 2019-20 में इस पर 71 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे. हालांकि 2020-21 के बजट में सरकार ने 61,500 करोड़ रुपये का बजट ही घोषित किया था. बाद में इसमें 40 हजार करोड़ रुपये और जोड़े गए.
इतना पैसा खर्च करने के बावजूद मनरेगा मजदूरों को एक साल में औसतन 51 दिन ही रोजगार उपलब्ध हो पा रहा है. ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से लोकसभा में पेश की गई 2018-19 की रिपोर्ट से यह सच सामने आया है. जबकि सरकार 100 दिन रोजगार की गारंटी (Employment Guarantee) देती है. बाकी दिन मजदूर या तो खाली बैठता है या फिर दूसरा काम करता है.
अपने आपको सबसे अगड़ा प्रदेश बताने वाले पंजाब और हरियाणा में मनरेगा का और बुरा हाल है. हरियाणा में श्रमिकों को साल में औसतन 34 दिन और पंजाब में महज 30 दिन ही काम मिला. उत्तर प्रदेश और बिहार भी राष्ट्रीय औसत से काफी कम 42-42 दिन ही काम मिलता है. जबकि यह सब कृषि प्रदेश हैं. योजना को खेती के लिए लागू करने के बाद मजदूरों की आर्थिक स्थिति सुधर सकती है.
यह मांग वर्षों पुरानी है. मनरेगा को लागू करने वाली कांग्रेस इस मसले पर किसी अंजाम तक नहीं पहुंची. मोदी सरकार में भी यही हाल है. मोदी सरकार ने नीति आयोग (NITI Aayog) की संचालन परिषद की एक बैठक में 17 जून को कृषि क्षेत्र में मनरेगा के उपयोग के लिए मुख्यमंत्रियों के उप-समूह का गठन किया.
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इसके अध्यक्ष बनाए गए. जबकि आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और सिक्किम के मुख्यमंत्री सदस्य. नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद भी इसमें शामिल किए गए.
उप-समूह की पहली बैठक 12 जुलाई, 2018 को हुई. जिसमें चौहान ने कृषि लागत नियंत्रित करते हुए आय में बढ़ोतरी पर चर्चा की. नीति आयोग के सदस्य डॉ. रमेशचंद ने मनरेगा और कृषि की लागत व उत्पादन के पारस्परिक संबंध पर प्रेजेंटेशन दिया. लेकिन बाद में इस कमेटी का क्या हुआ? कुछ पता नहीं.
2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लिए पीएम मोदी ने जून 2018 में राज्यपालों की हाई पावर कमेटी गठित की थी. इसने अक्टूबर 2018 में ही अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंप दी थी. कमेटी ने मनरेगा को कृषि से जोड़ने की सिफारिश की थी. लेकिन सरकार ने अब तक रिपोर्ट लागू नहीं किया. इस कमेटी के अध्यक्ष यूपी के तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक थे.
हालांकि, अब तक केंद्र सरकार इसके लिए राजी नहीं दिख रही है. एक इंटरव्यू में कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि मनरेगा मजदूरों को किसानों के खेतों में भेजने पर उसका हिसाब-किताब रखना मुश्किल होगा.