जीवन के किसी भी पल में अचानक इमर्जेंसी फाइनेंस की जरूरत पड़ सकती है. ऐसे ही मौकों पर एसेट मैनेजमेंट काम आता है. आपके एसेट आपातकालीन स्थिति में आप ही के काम आते हैं. हमारे देश में रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी अच्छा कंपोनेंट हैं एसेट मैनेजमेंट का.
बड़े-बुजुर्ग हमेशा सुझाव देते हैं कि ऐसी परिस्थितियों के लिए घर-प्रॉपर्टी खरीद लेनी चाहिए. प्रॉपर्टी ओनरों के लिए बैंक कई तरह के फाइनेंसिंग विकल्प देते हैं. कम ब्याज दरों और आसान रीपेमेंट टर्म्स पर कर्ज दिए जाते हैं.
कर्ज लेते समय मोर्टगेज लोन के अलावा होम इक्विटी लोन एक अच्छा विकल्प होता है. होम इक्विटी पर कर्ज लेना एक आम तरीका है, जो लोग घर खरीदने और रेनोवेट कराने के लिए इस्तेमाल करते हैं.
इसे सेकंड मोर्टगेज, होम इक्विटी इंस्टॉलमेंट लोन या सेकंड लोन ऑन हाउस भी कहते हैं. प्रॉपर्टी की मार्केट वैल्यू के आधार पर कर्जदाता लोन देते हैं.
अगर प्रॉपर्टी पर कोई हाउस लोन पहले से चल रहा है, तब भी आप होम इक्विटी लोन ले सकते हैं. उस वक्त प्रॉपर्टी की बाजार में जो कीमत होगी, उसके हिसाब से कर्जदाता लोन वैल्यू तय करेगा. घर की कीमता का 50 से 60 फीसदी तक लोन के लिए एलिजिबल होगा.
होम लोन लेना लाभकारी हो सकता है, मगर यह कर्ज का जाल भी बन सकता है. यह समय के साथ आपकी प्रॉपर्टी की इक्विटी को घटाता है. पेमेंट नहीं होने पर कर्जदाता के पास संपत्ति जब्त करने का अधिकार होता है. इसका मतलब हुआ कि आप अपने रेजिटेंस से हाथ धो बैठेंगे.
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