Pre-EMI vs Full-EMI: जब भी आप किसी अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी में इंवेस्ट करना चाहते हैं और उसके लिए होम लोन लेना चाहते हैं तो जनरली बैंक आपको दो ऑप्शन देते हैं. एक Pre-EMI और दूसरा Full-EMI.अब Pre-EMI का ऑप्शन क्या होता है, वो कैसे Full-EMI से अलग होता है, आपको Pre-EMI का विकल्प लेना चाहिए या नहीं, लेना हो तो क्यूं लेना चाहिए ये सारी चीजे आज हम आपको बताएंगे.
EMI किस को कहते हैं. EMI यानी इक्वेटेड मंथली इंस्टोलमेंट. इसमें प्रिंसिपल और इंटरेस्ट दोनों का समावेश होता है. जब बैंक या फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन से बिल्डर को पूरा लोन डिस्बर्स यानी लोन की पूरी एमाउंट मिल जाती है तब इएमआइ शुरू होती है. इसको उदाहरण से समझते हैं. मान लें आपने किसी मकान के लिए 50 लाख रुपये का होम लोन लिया है. अब इसके कंस्ट्रक्शन पूरा होने पर यानी आपको पजेशन मिलने के बाद जो इएमआई स्टार्ट होगी वो फुल इएमआई होगी. इसमें प्रिंसिपल और इंटरेस्ट दोनोंं शामिल होगा.
जब भी कोई अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी में जब तक आपको पजेशन नहीं मिलता है तब तक आप जो इएमआई चुकाते हैं उसको प्री-इएमआई कहते हैं. मान लें आपने किसी फ्लैट के लिए 50 लाख रुपये का होम लोन लिया है और शुरू के दो या तीन साल जब तक कंस्ट्रक्शन चालू है तब तक बैंक बिल्डर को पूरा पेमेंट नहीं करेगी. जैसे-जैसे कंस्ट्रक्शन होता जाएगा बैंक बिल्डर को पैसे देती रहेगी. इस दौरान आप बिल्डर को इएमआइ के जरिये पार्शियल पेमेंट करते हैं. उस में सिर्फ इंटरेस्ट सामेल होता है.
Pre-EMI में हंमेशा सिम्पल इंटरेस्ट लगता है. मान लो आपने 50 लाख रुपये का होम लोन लिया है, लेकिन उसका पहला डिस्बर्समेंट 5 लाख रुपये है और इंटरेस्ट रेट 7.5% है. यानी पजेशन मिलने से पहले बिल्डर को पहली किस्त के तौर पर 5 लाख रुपये मिले हैं. अब 5 लाख का 7.5% हो जाता है 37,500 रुपये. इसको 12 महिने से डिवाइड करने से महिने का इएमआइ आता है 3125 रुपये. अब मान लो छ महिने के बाद बिल्डर को फिर से 5 लाख रुपये का पेमेंट किया तो अब इस में 3125 रुपये एड हो जाएंगे. यानी अब इएमआइ हो गया रु.6250. इस तरह से जैसे जैसे बिल्डर को बैंक पेमेंट करेगा आपका इएमआइ बढता जाएगा.
प्री-एमआइए में सिर्फ डिस्बर्समेंट एमाउंट पे आपको सिंपल इंटरेस्ट चुकाना है. जबकी Full-EMI में प्रिंसिपल और इंटरेस्ट दोनों शामिल होते हैं. Pre-EMI बिल्डर के पहला पेमेंट डिस्बर्समेंट हुआ तब से स्टार्ट हो जाता है जबकी Post EMI पजेशन मिलने के बाद से स्टार्ट होता है. Pre-EMI में प्रिंसिपल एमाउंट कम नहीं होता है जबकी Full-EMI में प्रिंसिपल एमाउंट रीड्युस यानी कम होता जाता है.
अगर आप किराए के मकान में रहते हैं तो आपके लिए अच्छा है क्योंकी शरु में आपकी इएमआइ कम रहती है. आपका इरादा इंवेस्टमेंट का है और पजेशन मिलने के बाद आप प्रोपर्टी को बेचना चाहते है तो ये अच्छा ऑप्शन है. Pre-EMI और EMI के बीच का डिफरंस कहीं इंवेस्ट कर होम लोन के ब्याज से ज्यादा रिटर्न प्राप्त कर सकते हैं
अगर आप अफोर्ड कर सकते हैं तो ये ऑप्शन आपके लिए बेस्ट है क्योंकी आप लोन जल्दी से जल्दी भरना चाहेंगे. बिल्डर कंस्ट्रक्शन में देरी करता है तो उस केस में Full-EMI ही सही विकल्प है क्योंकी इस केस में इंटरेस्ट ज्यादा चुकाना होगा. अगर आप होम लोन से ज्यादा रिटर्न नहीं निकाल सकते तो Full-EMI का ओप्शन ही चुने.
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