आसान तरीके से समझें बैंक गारंटी और लेटर ऑफ क्रेडिट के बीच के अंतर को, कब करें इस्तेमाल

ये दोनों नॉन फण्ड बेस्ड क्रेडिट फैसिलिटी होती हैं. जो एक बैंक अधिकतर ट्रेडिंग फाइनेंस के अंदर देता है.

  • Team Money9
  • Updated Date - November 18, 2021, 12:45 IST
आसान तरीके से समझें बैंक गारंटी और लेटर ऑफ क्रेडिट के बीच के अंतर को, कब करें इस्तेमाल

सूत्रों ने कहा कि अगर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी घटकर 26 फीसदी हो जाती है तो संस्थागत और सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा मिलेगा, जिससे सरकारी खजाने को बेहतर कमाई होगी.

सूत्रों ने कहा कि अगर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी घटकर 26 फीसदी हो जाती है तो संस्थागत और सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा मिलेगा, जिससे सरकारी खजाने को बेहतर कमाई होगी.

LC और BG अर्थात Letter of Credit और Bank Guarantee क्या है और इनमे क्या अंतर होता है. ये दोनों नॉन फण्ड बेस्ड क्रेडिट फैसिलिटी होती हैं. जो एक बैंक अधिकतर ट्रेडिंग फाइनेंस के अंदर देता है. कुछ लोग दोनों को एक सा ही इंस्ट्रूमेंट समझने लगते हैं, जबकि ये बहुत अलग-अलग होते हैं और अलग-अलग जगहों पे इस्तेमाल किये जाते हैं.

बैंक गारंटी (BG) क्या है

जब एक बायर और सेलर एक एग्रीमेंट पे आते हैं जिसमे seller buyer को सामान भी बेच सकता है, कोई कॉन्ट्रैक्ट के जरिये उसके साथ काम करना चाह रहा हो, या एक कांट्रेक्टर और टेंडरिंग एजेंसी का भी एग्रीमेंट हो सकता है. इस स्थिति में seller को buyer पर तुरंत भरोसा नहीं होता. इसलिए वो buyer से परफॉरमेंस गारंटी मांगता है कि यदि वो दोनों साथ में काम करेंगे और उसमे यदि buyer द्वारा कोई गलती होती है, तो seller उसका मुआबजा buyer की परफॉरमेंस गारंटी से लेगा. और इस केस में buyer एक बैंक से रिक्वेस्ट करेगा कि वो इस बात की गारंटी ले कि यदि buyer द्वारा कोई गलती होती है तो बैंक उसका मुआबजा सेलर को देगा.

Letter of Credit (LC) क्या है

सामान्यतः इसका उपयोग इंटरनेशनल ट्रेड में होता है. यहां buyer और seller एक दूसरे को नहीं जानते हैं. अधिकतर ये एक्सपोर्टर और इम्पोर्टर के टर्म में उपयोग किया जाता है. इसमें सेलर बायर को ये कहता है की में आपको गुड्स तब शिफ्ट करुंगा जब आप मुझे एक लेटर ओफ क्रेडिट दे देंगे. इस केस में buyer, issuing bank (buyer’s bank) से रिक्वेस्ट करता है लेटर ऑफ़ क्रेडिट की.

वहीं जब issuing bank buyer की रिक्वेस्ट मान लेती है, तो वो advising bank जो की seller की बैंक होती है उसके पास लेटर ऑफ़ क्रेडिट भेज देती है. फिर advising bank लेटर ऑफ़ क्रेडिट (साख पत्र) सेलर को भेजता है जिससे सेलर संतुष्ट हो जाता है कि buyer अब business को लेके सीरियस है और फिर सेलर buyer को goods सप्लाई कर देता है. इस हाल में advising bank, seller को उसका पैसा देती है और issuing bank, advising bank को पेमेंट करती है और buyer, issuing बैंक को पेमेंट करता है.

बैंक गारंटी तथा LC में क्या अंतर होता है?

Letter of credit तथा Bank guarantee में यह डिफरेंस होता है कि LC में पेमेंट ट्रांजैक्शन पहले हो जाती है, लेकिन Bank gurantee में वास्तविक ट्रांजैक्शन जब होती है जब Buyer पेमेंट देने में विफल हो जाता है.

एलसी में एक तरह की ट्रांजैक्शन होती है और ये एक तरह की श्योरिटी हो जाती है सेलर को की पेमेंट 100 प्रतिशत उसे ही मिलेगी. दूसरी तरफ बैंक गारंटी केवल डिफॉल्ट के केस में ही काम करती है. ये एक प्रकार की सुरक्षा है कोई ट्रांजेक्शन नहीं है.

Bank Guarantee केवल किसी सामान को खरीदने बेचने में ही इस्तेमाल नहीं होती बल्कि इसे सरकारी टेंडरों में, प्राइवेट टेंडरों में भी Bank Guarantee का इस्तेमाल किया जाता है. दूसरी तरफ लेटर ऑफ क्रेडिट मुख्यतः इंटरनेशनल ट्रेडिंग में उपयोग की जाती है. बैंक BG और LC इश्यू करने से पहले बायर के बैंक के साथ रिलेशन, समय पर पेमेंट, बेलेंस शीट इत्यादी चेक करते हैं.

Published - November 18, 2021, 12:45 IST