बैंकों के जमा को आकर्षक बनाने के लिए छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर घटाने की दरकार

छोटी बजत योजनाओं के लिए अगर बाजार के हिसाब से फॉर्मूला बना हुआ है तो उसे पूरी तरह से लागू किया जाए तभी बैंक जमाकर्ताओं के लिए बराबर का मौका तैयार होगा

the case to cut interest rates of small savings schemes to make bank deposits attractive

अगर छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरें तय फॉर्मूले के हिसाब से बदली गई तो बैंकों को अपनी जमाओं पर ब्याज दरों को तर्कसंगत बनाने में मदद मिलेगी.

अगर छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरें तय फॉर्मूले के हिसाब से बदली गई तो बैंकों को अपनी जमाओं पर ब्याज दरों को तर्कसंगत बनाने में मदद मिलेगी.

रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट आई है. इसमें कहा गया है कि अगर नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (NSC), पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF), सुकन्या समृद्धि योजना या फिर किसान विकास पत्र जैसे 12 किस्म की छोटी बचत योजनाओं पर फॉर्मूले के हिसाब से चला जाता तो इन पर ब्याज दर मौजूदा के मुकाबले 0.47 से लेकर 1.78 फीसदी तक कम होती.

छोटी बचत योजनाओं पर पिछली छह तिमाहियों में ब्याज दर में बदलाव नहीं हुआ है. श्यामला गोपीनाथ समिति के सुझाव के मुताबिक 2016 में बनाया गया फॉर्मूला कहता है कि समान मियाद की सरकारी प्रतिभूति यानी जी सेक पर ब्याज दर के बराबर से लेकर 1 फीसदी ज्यादा तक, छोटी बचत योजना पर ब्याज दिया जा सकता है. सरकारी प्रतिभूतियों पर ब्याज दर में कमी आयी है फिर भी छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर नहीं घटी.

वैसे 31 मार्च को वित्त मंत्रालय ने बाजार के मुताबिक चलने की कोशिश की, लेकिन इस बाबत सूचना सार्वजनिक होने कुछ घंटों के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसे ‘भूल’ बताते हुए आदेश वापस लेने की बात कही. मतलब साफ था कि ब्याज दरों 2020-21 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितम्बर) से जिस स्तर पर चला आ रहा है वो जारी रहेगा और अभी कम से कम 31 दिसम्बर तक तो यही स्थिति रहेगी.

ध्यान रहे कि अगले वर्ष की शुरुआत में उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं, लिहाजा पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमत और ऊंची जा रही महंगाई दर से परेशान आम जनता और खास तौर पर वेतनभोगियों को नाराज करने का जोखिम यह सरकार नहीं उठाएगी और छोटी योजनाओं पर ब्याज दर को कम से कम मार्च तक नहीं छेड़ना चाहेगी.

यह तस्वीर का एक पहलू है. अब दूसरी ओर देखें तो रिजर्व बैंक की ही रपट बताती है कि सरकारी व निजी बैंकों में जमा पर ब्याज दरें, मार्च 2020 से लेकर अब तक 1.5 फीसदी से ज्यादा घटी हैं. बचत खाते के बात करें तो यहां लंबे समय तक ब्याज दर 4 फीसदी पर टिकी रही, लेकिन अक्टूबर 2017 के बाद यह घटकर 3.5 फीसदी और फिर जून 2020 से तीन फीसदी पर आ गयी. अब इन सब का मतलब क्या है?

यह मतलब समझने के लिए पहले देखिए कि महंगाई दर क्या है? बीते कुछ समये से यह पांच फीसदी से ज्यादा के स्तर पर है और बीच के एक महीने में तो यह छह फीसदी से ज्यादा हो गया.

इसी के आधार पर भारतीय स्टेट बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंक जमाओं पर ब्याज दर ‘नेगेटिव’ बनी हुई है. मतलब आपको भले ही बैंक में पैसा जमा कराने पर एक तय समय के बाद ज्यादा मिले, लेकिन सच यह है कि इस ज्यादा पैसे से आप जितना सामान पहले खरीद सकते थे, अब वो कम हो गया.

मत भूलिए कि आप अगर बैंक से सस्ते कर्ज की उम्मीद करते हैं तो वहां जमा पर आपको ज्यादा ब्याज कैसे मिलेगा? बैंक आपसे जमा के जरिए जो पैसा लेते हैं, उस पर अपना कुछ मार्जिन जोड़कर कर्ज के लिए ब्याज दर तय करते हैं. मतलब जमा सस्ता तो कर्ज सस्ता.

लेकिन, ध्यान रहे, SBI की रपट के मुताबिक, बैंक में जमा कराने वालों की संख्या अगर 207 करोड़ है तो कर्ज लेने वालों की संख्या वर्ष 27 करोड़. यानी औसतन 9 जमाकर्ताओं पर एक कर्ज लेने वाला.

ऐसे में किसके हित के बारे में ज्यादा सोचा जाना चाहिए, जमाकर्ता या कर्ज लेने वाले का? बैंकों के लिए अभी तो यह सुविधा है कि उनके पास नकदी काफी है, क्योंकि कर्ज लेने की रफ्तार कम रही है, लेकिन परेशानी यह है कि उपलब्ध नकदी ऊंची दर पर जुटायी गई है.

अब अगर कर्ज सस्ता करते हैं तो उनके मार्जिन पर असर पड़ेगा और अंत में बैंक की वित्तीय स्थिति प्रभावित होगी. 12 सरकारी बैंकों को सरकार से मदद मिल जाती है, लेकिन असल परेशानी मध्यम आकार के निजी बैंक और दूसरे बैंकों की होती है.

तो ऐसे में विकल्प क्या है? यह विकल्प है छोटी बजत योजनाओं के लिए अगर बाजार के हिसाब से फॉर्मूला बना हुआ है तो उसे पूरी तरह से लागू किया जाए तभी बैंक के जमाकर्ताओं के लिए बराबर का मौका तैयार होगा.

आप कह सकते हैं कि वो छोटी बचत योजनाओं के तरफ ज्यादा ब्याज के लिए रुख कर सकते हैं, लेकिन इससे पहले बैंकों के पास नकदी कम होगी और उससे ब्याज दर बढ़ाने का दवाब बनेगा जिसका नुकसान अंत में आम ग्राहकों को ही उठाना होगा.

दूसरी ओर, अगर छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरें तय फॉर्मूले के हिसाब से बदली गई तो बैंकों को अपनी जमाओं पर ब्याज दरों को तर्कसंगत बनाने में मदद मिलेगी. ध्यान रहे कि बैंक में जमा कराने वालों की अच्छी खासी संख्या है और उनमें भी 5 करोड़ बुजुर्ग नागरिक हैं. इन बुजुर्गों को थोड़ा ज्यादा ब्याज तो मिल रहा है, लेकिन फिर भी वास्तविक ब्याज दर नेगेविट ही है.

जरूरत है कि छोटी बजत योजनाओं को लोकलुभावन नीतियों के दायरे से बाहर निकाला जाए.

Published - October 24, 2021, 01:18 IST