भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपनी नीतिगत चर्चाओं में ग्रीन फाइनेंस और क्लाइमेट इश्यू पर चर्चा को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है. दुनिया भर में नीति निर्माण में एक्सट्रीम वेदर एक महत्वपूर्ण कंपोनेंट बन गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि बेमौसम बारिश, चक्रवात, जंगल की आग जैसी घटनाएं कुछ ही दिनों में अरबों की संपत्ति को राख में बदल देती है. यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने भी एक ऑफिशियल क्लाइमेट रोड मैप तैयार किया है.
सेंट्रल बैंक एंड सुपरवाइजर्स नेटवर्क फॉर ग्रीनिंग ऑफ द फाइनेंशियल सिस्टम (NGFS) और टास्क फोर्स ऑन क्लाइमेट-रिलेटेड फाइनेंशियल रिस्क (TFCR) दो महत्वपूर्ण प्लेटफॉर्म हैं, जिसके जरिए केंद्रीय बैंक जलवायु एजेंडे पर आपस में समन्वय करते हैं. बासेल कमेटी (Basel Committee) का सदस्य होने के कारण आरबीआई पहले से ही TFCR का हिस्सा है. हालांकि आरबीआई 83 सदस्यीय NGFS में काफी लेट शामिल हुआ है. रिजर्व बैंक NGFS के शुरू होने के 4 साल बाद इस साल अप्रैल के अंत में NGFS में शामिल हुआ है.
डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने हाल के एक भाषण में कहा था, ‘RBI सदस्य केंद्रीय बैंकों और नियामकों से सीखकर और ग्रीन फाइनेंस पर वैश्विक प्रयासों में योगदान देकर NGFS की सदस्यता से लाभान्वित होने की उम्मीद करता है.’ अन्य प्रमुख केंद्रीय बैंकों के विपरीत, भारत के पास अभी तक कोई ग्रीन स्टैंडर्ड नहीं है या रेगुलेशन की सस्टेनेबल प्रोजेक्ट फंडिंग को कैसे प्राइज किया जाए. ग्रीन फाइनेंस प्राथमिकता वाले क्षेत्र का हिस्सा है, लेकिन केवल 16 करोड़ रुपये तक के विशिष्ट ऋणों के लिए. हालांकि यह तेजी से बदल सकता है क्योंकि भारत NGFS का हिस्सा बन गया है.
भारत में बैंक ग्रीन टारगेट के लिए कमिट कर रहे हैं, और निवेशकों को सस्टेनेबल प्रोजेक्ट पर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उधार लेने की कम लागत से लाभ हो रहा है. एक्सिस बैंक ने हाल ही में 2026 तक सस्टेनेबल लेंडिंग देने के लिए 30,000 करोड़ रुपये की प्रतिबद्धता जताई है. भारत का सबसे बड़ा मॉर्गेज लेंडर हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन ‘ग्रीन एंड सस्टेनेबल’ डिपॉजिट को स्वीकार करता है. कई अन्य बैंक पर्यावरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए सस्टेनेबिलिटी रिपोर्ट पेश कर रहे हैं.
हाल के एक वैश्विक सर्वेक्षण में, स्टैंडर्ड चार्टर्ड ने पाया कि सस्टेनेबल इन्वेस्टमेंट बढ़ रहा है, और विशेष रूप से भारतीय निवेशकों की इसमें वैश्विक औसत 82 प्रतिशत की तुलना में अधिक रुचि है. कंपनियों को भी पता चल रहा है कि ग्रीन फाइनेंस सस्ता है, और शायद अंतरराष्ट्रीय बाजारों में परियोजनाओं के लिए आसानी से उपलब्ध फाइनेंसिंग है. क्लाइमेट बॉन्ड इनिशिएटिव के इंडिया प्रोजेक्ट्स मैनेजर संदीप भट्टाचार्य का अनुमान है कि अब तक जुटाए गए ग्रीन बॉन्ड की कुल राशि लगभग 16-17 बिलियन डॉलर है, जिसमें से सिर्फ 14-15 फीसदी रुपये में है.
ग्रीन फाइनेंस को लेकर सभी एकमत नहीं है. कुछ इसके समर्थन है तो कुछ विरोध में. आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने पिछले महीने कहा था कि ग्रीन फाइनेंस के बारे में बात करना केंद्रीय बैंक का काम नहीं है. दूसरी ओर आरबीआई में राजन के उत्तराधिकारी उर्जित पटेल ने केंद्रीय बैंकों को अपनी नीति निर्धारण में क्लाइमेट रिस्क कैल्कुलेशन को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया था.
रिजर्व बैंक के एजेंडे के कुछ मुद्दों को डिप्टी गवर्नर राव ने अपने भाषण में बताया. उन्होंने भविष्य के एजेंडे में जलवायु संबंधी जोखिमों को रेखांकित किया. वहीं भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के एक पूर्व चेयरमैन ने बताया कि आरबीआई के प्रवेश करने से पहले से ही बैंक क्लाइमेट फाइनेंस के मुद्दों पर काम कर रहे हैं. एसबीआई देश का पहला बैंक था जिसने एक सस्टेनेबिलिटी रिपोर्ट प्रकाशित की, और जहां भी संभव हुआ, अंतरराष्ट्रीय हरित मानदंडों के अनुरूप अपने कार्यालयों को बदल दिया.
क्लाइमेट बॉन्ड्स के भट्टाचार्य ने कहा, ‘रिनिवेबल पावर पारंपरिक स्रोतों की तुलना में सस्ती हो रही है. उद्योग धीरे-धीरे कोयले से दूर जा रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘बैंकों को अचानक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को उधार देना बंद करने के लिए कहना संभव नहीं होगा, लेकिन एक रोड मैप रखा जा सकता है जहां हरित परियोजनाओं की हिस्सेदारी चरणों में बढ़ाई जा सकती है.’