बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक नवगठित सहकारिता मंत्रालय (Ministry of Cooperation) शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) के लिए एक नई लाइसेंस व्यवस्था लागू कर सकता है. सूत्रों के मुताबिक नई लाइसेंसिंग व्यवस्था पर विचार विमर्श जारी है. यूनियन कोऑपरेटिव बैंक को लेकर मंत्रालय बड़े बदलाव करने की तैयारी में है. 100 करोड़ रुपये से अधिक की जमा राशि वाले यूनियन कोऑपरेटिव बैंक के लिए बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट में भी बदलाव किए जा सकते हैं. इसके अलावा काम करने के तरीकों को अम्ब्रेला ऑर्गेनाइजेशन के तौर पर बदलाव करने के लिए विचार किया जा रहा है.
एक शीर्ष नियामक अधिकारी (top regulatory official) के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया है कि इन मुद्दों को नॉर्थ ब्लॉक स्थित सहकारिता मंत्रालय और आरबीआई द्वारा संसद के मानसून सत्र के समाप्त होने के बाद उठाए जाने की उम्मीद है. ऐसी उम्मीद है कि आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर एन एस विश्वनाथन की अध्यक्षता में प्राथमिक सहकारी बैंकों का एक पैनल भी इस बाबत अपनी एक रिपोर्ट मंत्रालय को सौंप सकता है. इसके मैन्डेट में वर्तमान नियामक (current regulatory) और पर्यवेक्षी दृष्टिकोण की समीक्षा शामिल है.
बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 ((BR Act, 1949) में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को शहरी सहकारिता बैंक को विनियमित करने का अधिकार दिया गया है. बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक शहरी सहकारिता बैंक पर इसकी नियामक(regulatory) और पर्यवेक्षी शक्तियां (supervisory powers) अब अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के बराबर हैं. आरबीआई की 31 दिसंबर, 2019 की अधिसूचना में कहा गया है कि बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट में अकाउंटेंसी, कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था, बैंकिंग, सहयोग, अर्थशास्त्र, वित्त, कानून, लघु उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी के विशेषज्ञ शामिल होंगे.
सहकारी बैंक अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई कई सालों से लड़ रहे हैं. लगातार इन बैंकों पर संकट का बादल मंडरा रहा है जिसको लेकर सरकारें भी चिंतित हैं. शहरी सहकारी बैंकों की संख्या अब घटकर 1,539 हो गई है, जो 2003-04 में 1,926 थी. एक सप्ताह पूर्व आरबीआई ने गोवा स्थित मडगाम अर्बन कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड पर करवाई करते हुए वहां का लाइसेंस रद्द कर दिया था. आरबीआई ने यह कहते हुए लाइसेंस रद्द कर दिया कि बैंक अपनी मौजूदा वित्तीय स्थिति के साथ अपने वर्तमान जमाकर्ताओं को पूरा भुगतान करने में असमर्थ है.