Instant loan- हाल ही में लोगों को तत्काल लोन मुहैया कराने वाली मोबाइल एप्लिकेशंस में काफी अच्छी वृद्धि हुई है. यह क्रेडिट अक्सर शॉर्ट टर्म के लिए होता है. ये ऐसे अनसेक्योर्ड लोन हैं जो थोड़े समय में ही आपके खाते में ट्रांसफर कर दिए जाते हैं. इनमें से कुछ प्रोडक्ट्स 10,000 रुपए से 50,000 रुपए तक के इंस्टेंट क्रेडिट अप्रूवल देते हैं, वहीं दूसरे 24 घंटों के अंदर मंजूरी दे देते हैं.
पिछले कई हफ्तों में अलग-अलग लोगों की तरफ से कई दिलचस्प टिप्पणी की एक सीरीज देखने को मिली है. भारतीय रिजर्व बैंक ने कर्ज लेने वाले और ग्राहकों को इन वेबसाइटों और Instant loan मोबाइल ऐप्स से लोन लेने से आगाह किया है – जो अनिवार्य रूप से अनियमित संस्थाएं हैं. रेगुलेटर्स के निर्देशों के आधार पर इनमें से कुछ एप्लिकेशंस को ऐप स्टोर से हटा दिया गया है. आरबीआई (RBI) की चेतावनी तब आई है, जब लोन लेने वाले कई लोगों ने कलेक्शन एजेंसी की तरफ से होने वाले उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत की, जबकि कई लोग आत्महत्या तक कर चुके हैं.
इन प्लेटफॉर्म की मुख्य रणनीति यही है कि कर्ज लेने वालों को ऊंची ब्याज दर पर छोटा अमाउंट देते हैं. ज्यादा छोटे लोन बांटने के लिए कर्ज लेने वालों की पूरी जानकारी रखने से प्लेटफॉर्म से डिफॉल्ट करने की संभावना काफी कम हो जाती है. लेकिन, ऊंची ब्याज दर की वजह से डिफॉल्ट की पूरी संभावना बनती है. ये ऐप और उनके प्रोडक्ट्स खुद को कर्ज में फंसाने वाला साबित कर चुके हैं, क्योंकि ये झांसे में फंसाने की ही प्रैक्टिस करते हैं. दुर्भाग्य से, ये आरबीआई (RBI) द्वारा विनियमित नहीं थे, जिसने लंबे समय तक किसी का ध्यान नहीं खींचा.
Instant loan एप्लीकेशंस की मौजूदगी ये दर्शाती है कि कई घरों में कैश फ्लो की समस्या से निपटने के लिए शॉर्ट टर्म क्रेडिट लेने की जरूरत पड़ती है. तत्काल मंजूरी जैसी सुविधा के लिए मोबाइल ऐप्स का इस्तेमाल यह सुनिश्चित करता है कि देश में प्रचलित डिजिटल बुनियादी ढांचे की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है. एक तरफ कर्ज लेने वालों के शोषण को रोकने के लिए, झांसा देने वाले और अनियंत्रित एप्लीकेशंस को बंद करना होगा तो वहीं दूसरी ओर हमें समझना होगा कि ऐसे ऐप्स हमारी क्रेडिट व्यवस्था की खामियों को दर्शाते हैं.
COVID-19 महामारी के दौरान यह अंतर और अधिक स्पष्ट हुआ – जब कई लोगों ने कैश-फ्लो की दिक्कतों से निपटने के लिए शॉर्ट टर्म क्रेडिट का सहारा लिया. उदाहरण के लिए, लॉकडाउन ने उन छोटे और मध्यम व्यवसायों को प्रभावित किया जो बहुत छोटे मार्जिन पर काम करते हैं. लॉकडाउन के प्रतिबंध हटने पर इन्हें ऑपरेशन में रहने के लिए बिना किसी राजस्व के भी तय खर्च का बोझ उठाना पड़ रहा था.
अपने इस खर्च को पूरा करने के लिए कई लोगों ने अपनी बचत को भी खत्म कर दिया, जबकि बाकी लोगों ने अपने ऑपरेशंस को चलाए रखने के लिए कर्ज भी लिया होगा. औपचारिक छोटे कारोबार के लिए कुछ क्रेडिट विकल्प हैं, जो बैंकों या NBFCs के माध्यम से उनके शॉर्ट टर्म क्रेडिट (Instant loan) की जरूरतों को पूरा करने के लिए उपलब्ध हैं. लेकिन कई लोगों के लिए फॉर्मल सिस्टम में या तो प्रोडक्ट की कमी है या उसकी प्रोसेसिंग में देरी के कारण पहुंच के बाहर है.
हालांकि, NBFCs, बैंक और दूसरी फिनटेक कंपनियों के लिए यह एक मौका है. यह अवसर आधार और पैन कार्ड जैसे डॉक्यूमेंट्स के साथ मौजूदा डिजिटल बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल करने के संबंध में है, जो थोड़े-थोड़े समय में डिजिटल रूप से लोन देने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं.
बहुत सारे प्राइवेट बैंकों ने अपने प्लेटफॉर्म पर यह सुविधा दी है. जबकि SBI अपनी YoNo एप्लीकेशन के जरिए लोगों को क्रेडिट कार्ड के लिए अप्लाई और एप्लीकेशन सब्मिट करने की सुविधा देता है. हालांकि, जो लोग क्रेडिट कार्ड को लेने में सक्षम नहीं है, उनके बीच शॉर्ट टर्म असुरक्षित लोन जैसे विकल्प की ही डिमांड रहती है.
बैकों, NBFCs और फिनटेक कंपनियों को एक साथ लाकर इस सेगमेंट के लिए नये प्रोडक्ट लाए जा सकते हैं जिससे ये सुनिश्चित होगा कि डिजिटल टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से बैंक भी छोटे टिकट साइज के शॉर्ट टर्म कर्ज मुहैया करा सके और उनकी मार्जिन में भी सुधार हो.
ऐसे लोन्स को पूल करने से काफी हद तक डिफॉल्ट रिस्क डायवर्सिफाई होगा. बेशक बैंकों को गलतियां कम करने के लिए ऑटोमेटिक अप्रूवल के मानदंड तय करने होंगे.
सरकार का छोटी-मझौली कंपनियों को 1 करोड़ रुपये तक का लोन 59 मिनट में मुहैया कराने का सिस्टम अच्छा है. ये सिस्टम पहले से मौजूद जानकारी और तय मेट्रिक्स की मदद से तुरंत अप्रूवल देने में कारगर है जिसके लोग बैंक जाकर लोन ले सकते हैं.
हमें मानना होगा कि शोषण करने वाले लेंडिंग प्लेटफॉर्म्स की भरमार इस वजह से हुई क्योंकि मौजूदा प्रोडक्ट्स और उन लोगों की जरूरतों में गैप था जिन्हें हमारे फाइनेंशियल सिस्टम से मदद नहीं मिल रही थी. देश में लेंडिंग एक्टिविटी को रेगुलेट करना जितना जरूरी है उतना ही ये भी कि इससे सीख लेकर हमारे फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स बेहतर बनाए जाएं.
(करन भसीन- लेखक इकोनॉमिस्ट हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)