Home Loan: होम लोन लेने जा रहे लोगों के मन में अक्सर यह सवाल रहता है कि वे फिक्स्ड रेट पर लोन लें या फिर फ्लोटिंग रेट पर. फ्लोटिंग रेट में ब्याज दरें परिवर्तित होती रहती हैं, जबकि फिक्स्ड रेट पर अर्थव्यवस्था में होने वाले बदलाव का कोई असर नहीं होता और दरें पूरी अवधि में समान रहती हैं. इसके अलावा, लोन की शर्तों में एक और विकल्प मौजूद होता है. इसे ‘फिक्स्ड फ्लोटिंग रेट’ कहते हैं. इसका मतलब होता है कि लोन की कुछ अवधि में ब्याज दरें फिक्स्ड होती हैं और उसके बाद यह फ्लोटिंग हो जाती है.
BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी बताते हैं, “यह जरूरी नहीं है कि फिक्स्ड लोन पूरी अवधि के लिए निश्चित हो. कुछ बैंक सेमीफिक्स्ड लोन ऑफर करते हैं, जो 2 से 5 साल तक फिक्स्ड होता है और उसके बाद फ्लोटिंग होता जाता है. कुछ बैंक एक निश्चित अवधि के बाद दरें बदलने का भी विकल्प देते हैं.”
शेट्टी कहते हैं कि फिक्स्ड रेट के बारे में बैंक रेपो रेट को ध्यान में रखते हैं और अनुमानित औसत के आधार पर रेट तय करते हैं. वे यह देखते हैं कि यदि रेपो रेट बढ़ता भी है तो उनका लोन लाभदायक बना रहे.
फ्लोटिंग रेट में रेपो रेट बदलने पर वे अपना मार्जिन समान बनाए रखते हैं जबकि अपने खर्च को समायोजित करते हैं. आम तौर पर फिक्स्ड लोन बैंकों के लिए बेहतर होता है, खास तौर पर जब रेपो दरें नीचे की ओर बढ़ती हैं.
PlanAhead Wealth Advisors के फाउंडर विशाल धवन का कहना है कि फ्लोटिंग रेट में रेपो दरों में होने वाले बदलाव के साथ परिवर्तन का लाभ जुड़ा होता है.
शेट्टी के मुताबिक, फिक्स्ड लोन के बारे में स्पष्ट समझ होनी चाहिए. इसमें प्रीपेमेंट चार्ज भी जुड़े होते हैं. यदि कोई ग्राहक समय से पहले अपना लोन चुकाना चाहे तो उसे चार्ज देना पड़ता है, ऐसे में फिक्स्ड लोन ज्यादा महंगा पड़ता है.
शेट्टी के अनुसार, फ्लोटिंग रेट में समय के साथ बदलाव तो होता ही है, साथ में इसमें प्रीपेमेंट को लेकर कुछ लचीलापन होता है. अलग-अलग बैंकों की अलग शर्तें होती हैं. इसलिए ग्राहक को लोन लेने से पहले पूरी जानकारी ले लेनी चाहिए.
हालांकि, मौजूदा वक्त में ब्याज दरें स्थिर हैं, इसलिए फ्लोटिंग रेट को ज्यादा बेहतर माना जा सकता है. धवन की सलाह है कि लंबी अवधि में ब्याज दरों की कल्पना करना कठिन है.
ग्राहकों कम से कम अवधि के लिए लोन लेना चाहिए ताकि ब्याज को कम अदा की जाए. यदि ब्याज दरें कम होती जाएं तो ईएमआई को स्थिर रखना चाहिए, इसे कम नहीं करना चाहिए.
यदि ब्याज दरें बढ़ रही हो तो उन्हें अपना ईएमआई भी बढ़ा देना चाहिए. ताकि ब्याज की लागत को नियंत्रण में रखा जा सके.
ब्याज दरें कुछ बेंचमार्क दरों से लिंक होती हैं. इनमें रेपो रेट और कुछ अन्य बेंचमार्क दरें शामिल हैं. इनमें होने वाले परिवर्तन का असर ब्याज दरों में दिखलाई देता है.
अक्टूबर 2019 में आरबीआई ने बैकों के लिए होम लोन दरों को रेपो रेट से जोड़ने को अनिवार्य कर दिया.
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