लोन डिफॉल्‍ट हो गया है तो भी बैंक नहीं कर सकता ये 5 काम, चूकाने वालों के पास होते हैं ये अधिकार

कर्जदाता अपना लोन वसूलने के लिए रिकवरी एजेंटों की सेवाएं ले सकते हैं. लेकिन, ये अपनी हद पार नहीं कर सकते हैं.

  • Team Money9
  • Updated Date - November 13, 2021, 01:09 IST
Seven smart ways to reduce loan burden without stressing your wallet

लोन चाहे कोइ भी हो, भले ही वो होम लोन, पर्सनल लोन, कार लोन, क्रेडिट कार्ड का लोन हो या कोइ और लोन हो, कोई आम आदमी अपने लोन की EMI नहीं चुका पाता और डिफॉल्ट कर जाता है तो ऐसा नहीं है कि लोन देने वाली कंपनी या फिर बैंक आपको परेशान करने लगे. याद रखें कि लेनदार कर्ज के भुगतान में डिफॉल्ट करता है तो भी वह एसेट पर सभी अधिकार नहीं खो देता है. उसे मानवीय व्यवहार पाने का पूरा हक है. आइए जानते हैं की आपकी स्थिति खराब होने पर भी बैंक कौन से एसे काम है जो नहीं कर पाएगा.

जोर जबर्दस्ती करने का अधिकार नहीं

कर्जदाता अपना लोन वसूलने के लिए रिकवरी एजेंटों की सेवाएं ले सकते हैं. लेकिन, ये अपनी हद पार नहीं कर सकते हैं. इस तरह के थर्ड पार्टी एजेंट ग्राहक से मिल सकते हैं. पर, उन्हें ग्राहकों को धमकाने या जोर जबर्दस्ती करने का अधिकार नहीं है. वे ग्राहक के घर सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे के बीच जा सकते हैं.

बैंक एफआइआर नहीं कर सकता

लोन डिफोल्ट होना एक सिविल मामला है, कोइ आपराधीक केस नहीं है. लेकिन यदी केस के तथ्य बता रहे हैं की आपने कोइ फ्रोड पेपर्स बनाए, बैंक को नकली पेपर देकर लोन लिया तो उस केस में बैंक एफआइआर कर सकता है. या आप एक विलफुल डिफोल्टर हो यानी आप जानबुझ कर बैंक को पैसे नहीं दे रहे हो तो भी फ्रोड की इंटेशन हो सकती है. तो एसी परिस्थितियों मे एफआइआर दर्ज हो सकती है लेकिन आप एक जेन्युइन कस्टमर है आपकी नौकरी में सेलेरी नहीं मिली है या बिजनेस में दिक्कत हो गइ है तो आप पर एफआइर दर्ज नहीं हो सकती.

नोटिस देना जरूरी

लेनदार के खाते को तब नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) में डाला जाता है जब 90 दिनों तक वह बैंक को किस्त का भुगतान नहीं करता है. इस तरह के मामले में कर्ज देने वाले को डिफॉल्टर को 60 दिन का नोटिस जारी करना पड़ता है. अगर नोटिस पीरियड में बॉरोअर भुगतान नहीं कर पाता है तो बैंक एसेट की बिक्री के लिए आगे बढ़ सकते हैं. हालांकि, एसेट की बिक्री के लिए बैंक को 30 दिन और का पब्लिक नोटिस जारी करना पड़ता है.

एसेट का सही दाम पाने का हक

एसेट की बिक्री से पहले बैंक/वित्तीय संस्थान को एसेट का उचित मूल्य बताते हुए नोटिस जारी करना पड़ता है. इसमें रिजर्व प्राइस, तारीख और नीलामी के समय का भी जिक्र करने की जरूरत होती है. लोन की वसूली के बाद बची अतिरिक्त रकम को पाने का लेनदार को हक है. बैंक को इसे लौटाना पड़ेगा.

तीन साल बाद केस नहीं बनता

अगर लोन चूकाने की ड्यू डेट निकल चूकी है और तीन साल का समय बीत चूका है तो लिमिटेशन एक्ट 1963 के तहत बैंक सिविल कोर्ट में आपके खिलाफ कोइ भी रिकवरी का केस फाइल नहीं कर सकता. लेकिन बैंक का पैसे लेने का अधिकार खत्म नहीं होता.

Published - November 13, 2021, 01:09 IST