इंटरनेट के आगमन के अलावा पिछले 75 वर्षों में भारत में बैंकिंग में सबसे बड़ा संरचनात्मक उपभोक्ता-केंद्रित परिवर्तन 1987 में स्वचालित टेलर मशीन या एटीएम की शुरुआत के रूप में हुआ. सबसे पहले एचएसबीसी ने मुंबई में एटीएम लगाया था. पीसीओ क्रांति की तरह ही चौबीसों घंटे सेवा देने वाली इस मशीन को लोगों ने हाथों-हाथ लिया. इन वर्षों में एटीएम ने किसी भी समय रुपयों की निकासी की सेवा के जरिए लोकप्रियता हासिल की है. जैसे-जैसे इसका उपयोग बढ़ता गया, एक नई अड़चन पैदा हो गई, वह है एटीएम मशीन में रुपये नहीं रहना. हालांकि, एटीएम कई सेवाएं प्रदान करते हैं, लेकिन नकदी की निकासी सबसे लोकप्रिय उपयोगिता बनी हुई है.
इसलिए 10 घंटे या उससे अधिक समय तक एटीएम के आउट ऑफ कैश रहने पर बैंकों को दंडित करने का आरबीआई का कदम स्वागत योग्य है. केंद्रीय बैंक ने सख्त कदम उठाते हुए बैंकों को हर महीने के पांचवें दिन तक एक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है कि उसके एटीएम कितने घंटे आउट ऑफ कैश रहे. बैंकों को महीने में 10 घंटे से ज्यादा समय तक एटीएम के आउट ऑफ कैश रहने पर प्रति एटीएम 10,000 रुपये का जुर्माना देना होगा.
एटीएम वस्तुतः बड़ी संख्या में लोगों के लिए पूरे बैंक का प्रतिनिधित्व करते हैं. बहुतों को बैंक शाखा जाने की जरूरत नहीं होती और एटीएम से ही काम चल जाता है. हालांकि, मोबाइल फोन ऐप ने डिजिटल क्रांति को एक कदम आगे ला दिया है. लगभग सभी खुदरा परिचालन सिर्फ कुछ क्लिक्स पर उपलब्ध हैं. इसलिए लोगों का एक बड़ा वर्ग एटीएम के साथ सहज है. हालांकि, एटीएम को परिचालन में रखने की लागत एक मुद्दा है और उनकी संख्या में थोड़ी गिरावट आई है. लेकिन देश में एटीएम के बिना बैंकिंग सेवाओं की कल्पना नहीं की जा सकती है.
इसके अलावा, महामारी के कारण अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रचलन एक दशक से अधिक के उच्च स्तर पर पहुंच गया है. निकट भविष्य में सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा प्रोटोकॉल के कारण कम भीड़ की आवश्यकता होगी. एटीएम इन दोनों महत्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं. यही कारण है कि जन-धन खाताधारकों को एटीएम-सह-डेबिट कार्ड जारी किए जा रहे हैं. यह नॉन-फिजिकल बैंकिंग में पहला कदम है.
नो कैश एटीएम के लिए बैंकों को दंडित करने का केंद्रीय बैंक का कदम बैंकों को उचित ग्राहक सेवा के लिए चेतावनी देता है. बिना कैश वाला एटीएम बिना मक्खन वाली ब्रेड की तरह है.